चुटकियों में खिल गई मायूस चेहरों पर मुस्कान
अमरोहा वह दौर दुश्वारियों भरा था। ठिकाना छूट चुका था बीच मंजिल साइकिल भी जमा हो गईं।
अमरोहा : वह दौर दुश्वारियों भरा था। ठिकाना छूट चुका था, बीच मंजिल साइकिल भी जमा हो गईं। मायूस चेहरों के साथ गंतव्य की ओर रवाना कर दिए गए सैकड़ों श्रमिक। ऐसे में श्रमरत मनुष्यता के लिए दैनिक जागरण ने आर्थिक मदद की छोटी सी पहल की। फिर क्या था, देखते ही देखते कारवां बन गया। पुलिस, प्रशासन, व्यापारी, वकील और चिकित्सक सभी एकजुट हो गए। कबाड़ साइकिलों के बदले 61 श्रमिकों के खातों में पांच-पांच हजार रुपये भेजकर उनके जख्मों पर मरहम लगा दिया।
कोरोना काल के विकराल रूप लेते ही सरकार ने लॉकडाउन घोषित कर दिया था। ऐसे में फैक्ट्री से लेकर तमाम उद्योग धंधों के पहिए भी थम गए। इन हालातों में लाचार सैकड़ों श्रमिक अपने-अपने ठिकाने छोड़कर घरों की ओर रवाना हो गए मगर न ट्रेन थीं और न ही सड़क परिवहन की सुविधा। ऐसे में उन्होंने साइकिल को ही मंजिल तक पहुंचने का जरिया बना लिया। पंजाब और दिल्ली से पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ ही बिहार तक का हजारों किलोमीटर का सफर तय करना था। यह सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि इन श्रमिकों ने इस डगर पर अपना सफर कैसे शुरू कर दिया मगर उन्होंने ऐसा किया। उनके हालात देखकर सरकार भी सकते में आ गई। आननफानन में फरमान जारी किया गया कि इन श्रमिकों को जिले की सीमा पर ही रोक लिया जाए। खाना खिलाया जाए और फिर विशेष बसों के जरिये गंतव्य तक भेजा जाए।
इसी क्रम में ब्रजघाट पर पुलिस और प्रशासनिक अमले ने डेरा डाल दिया। श्रमिकों की आवभगत कर उनकी साइकिलें जमा करा ली गईं। इसके बाद उनका नाम-पता दर्ज कर बसों के जरिये गंतव्य की ओर रवाना कर दिया गया। इन श्रमिकों की खस्ताहाल साइकिलें धनौरा व जोया के एक बैंक्वेट हॉल में जंग खा रही थीं। इस संबंध में दैनिक जागरण ने श्रमिकों के मोबाइल नंबर पर उनसे संपर्क कर उनका हाल पूछा। इस पर श्रमिक सिसक उठे, बोले, घर पर बेरोजगार हैं, साइकिलें भी हाथ से चली गईं। इसके बाद जागरण ने श्रमिकों की व्यथा को जैसे ही खबर के जरिये सार्वजनिक किया, मदद को सैकड़ों हाथ उठ गए।
डीएम उमेश मिश्र ने प्रशासनिक अमले से प्रति साइकिल श्रमिकों के बैंक खातों में पांच-पांच हजार रुपये डालने का आह्वान किया। इसके बाद सभी एसडीएम, तहसीलदार आगे आए। वहीं तत्कालीन एसपी डा. विपिन ताडा ने भी खुद एक साइकिल खरीदी और एक-एक साइकिल थानेदारों को खरीदने का फरमान सुना दिया। फिर क्या था व्यापारी, नेता, वकील, डाक्टर सभी साइकिलें लेने दौड़ पड़े। देखते ही देखते 61 श्रमिकों के खातों में पांच से सात हजार रुपये पहुंच गए। सभी श्रमिकों ने जागरण समेत सभी का तहेदिल से शुक्रगुजार किया। एसडीएम ने निभाई विशेष भूमिका
अमरोहा : कोरोना काल के उस दौर में एसडीएम सदर शशांक चौधरी धनौरा में एसडीएम थे। साइकिलों की बिक्री के साथ श्रमिकों के बैंक खातों में रकम भेजने में उन्होंने विशेष भूमिका निभाई। जिलाधिकारी ने इस मुहिम का नोडल अधिकारी उन्हें ही बनाया था।