जमीन पर बैठकर जन्नत में घर तैयार करता है
जागरण संवाददाता अमरोहा हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) के बेटे हजरत इमाम जैनुल आबेदीन (अ.स. के यौमे विलादत के मौके पर महफिल का आयोजन अजाखाना मुहल्ला दरबारे कलां में अंजुमन सज्जादिया की जानिब से किया गया। महफिल का आगाज मौलाना मिकदाद हुसैन ने तिलावते कलामे पाक से किया और नाते पाक का नजराना नाजिम अमरोहवी ने पेश किया। मंच पर मौलाना गुलाम इमाम प्रो. ऐनुल हसन डा. फैजान हसन मौजूद रहे।
अमरोहा: हजरत इमाम हुसैन के बेटे हजरत इमाम जैनुल आबेदीन के यौमे विलादत के मौके पर महफिल का आयोजन अजाखाना मुहल्ला दरबारे कलां में अंजुमन सज्जादिया की जानिब से किया गया। महफिल का आगाज मौलाना मिकदाद हुसैन ने तिलावते कलामे पाक से किया और नाते पाक का नजराना नाजिम अमरोहवी ने पेश किया।
मुशायरे का आगाज प्रो. ऐनुल हसन ने अपने शेर से किया-कैद में हम तो इबादत के लिये तैयार थे, ये बताओ नींद क्यों आई नहीं सैयाद को। नजीर बाकरी ने यूं कहा- कुरआन तेरा सूरहे कौसर भी जद पे था, जैनब निकाल लाई है जलते खयाम से। नौशा अमरोहवी ने कहा-सर कटे राहे खुदा में टुकड़े टुकड़े हो बदन, अजम के शीशे में लेकिन बाल आ सकता नहीं। उसके बाद डा. लाडले रहबर ने कहा-डाल कर आंखों में आंखें पस्त दुश्मन को किया, सामना दुश्मन से था दुश्मन के घर सज्जाद का।
फखरी मेरठी कुछ यूं नमूंदार हुए-खुशी कैसे मनाएंगे भला शब्बीर के कातिल, अभी मौजूद है सज्जाद और कुरआन बाकी है। मुंबई से आए उम्मीद आजमी ने कहा-न जाने कौन सा रूतबा दिया है खालिक ने, इमामे वक्त को देती है मश्वरा जैनब। शरर नकवी ने अपना कलाम पेश किया-उसकी तलवार जो उठती तो कयामत होती, जिसकी जंजीर की झंकार से डर लगता है। महफिल की अध्यक्षता मौलाना सैयद शादाब हैदर ने और संचालन उम्मीद आजमी मुंबई ने किया।
इनके अलावा लियाकत अमरोहवी, अखतर सिरसवी, गुलरेज रामपुरी, डा. मुबारक अमरोहवी, ताजदार अमरोहवी ने भी कलाम पेश किया। मंच पर मौलाना गुलाम इमाम, प्रो. ऐनुल हसन, डा. फैजान हसन मौजूद रहे।
महफिल में अली नकवी, शरफ अली खान, गुलाम सज्जाद, ताहिर अब्बास, शाहनवाज तकी, गदीर अली, विलायत अली, डॉ. फैजान हसन, अबुल हसनैन, गुलजार हुसैन, जहीर हसन, अंजुम अली खान, मोहम्मद मियां, शाने हैदर, आसिफ निसार, मुदस्सिर अली खान, हुसैन अब्बास, मौलाना अंजार नाजिम हुसैन मौजूद रहे।