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बरबाद होने वाले अन्न के लिए फिक्रमंद संजीव पाल

गजरौला (अमरोहा) : शादी-ब्याह हो, बर्थ डे पार्टी हो या फिर कोई अन्य समारोह। हर जगह रखी डस्टबिन में पड़

By JagranEdited By: Published: Sat, 17 Oct 2020 07:28 PM (IST)Updated: Sat, 17 Oct 2020 07:28 PM (IST)
बरबाद होने वाले अन्न के लिए फिक्रमंद संजीव पाल
बरबाद होने वाले अन्न के लिए फिक्रमंद संजीव पाल

गजरौला (अमरोहा) : शादी-ब्याह हो, बर्थ डे पार्टी हो या फिर कोई अन्य समारोह। हर जगह रखी डस्टबिन में पड़ी प्लेट एक ही बात की चुगली करती नजर आती है कि यहां भोजन की कितनी बरबादी हुई? इसकी चिता सामान्य तौर पर बहुत कम लोग ही करते होंगे लेकिन, पर्यावरण प्रेमी के रूप में पहचान रखने वाले संजीव पाल भोजन की बरबादी रोकने को लोगों को जागरूक करते हैं। वह गोष्ठी व अन्य माध्यमों से शादी-ब्याह के सीजन में इतना लो थाली में बेकार न जाए नाली में स्लोगन लिखे बैनर भी लगवाते हैं ताकि लोग जरूरत के हिसाब से ही थाली में खाना परोसे।

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संजीव पाल यहां बैंक कालोनी के रहने वाले हैं। एक निजी शिक्षण संस्थान में मार्केटिग की जॉब करते हैं। सामाजिक दायित्व समझते हुए पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करते हैं। इसके अलावा वह शादी ब्याह जैसे समारोह में बेकार जाने वाले भोजन को लेकर भी फिक्रमंद रहते हैं। एक तरफ बहुत से गरीबों को पेट भरने को भोजन नसीब नहीं हो पाता तो दूसरी तरफ खासा भोजन बेकार भी चला जाता है। इसकी चिता उन्हें एक समारोह में खाने से भरी डस्टबिन देखकर हुई थी। मध्यम स्तर के इस समारोह में भोजन खत्म हो चुका था। मेहमान खाने से रह गए थे लेकिन झूठा कर फेंके गए खाने से भरी डस्टबिन बता रही थी कि यहां अनाप शनाप खाना थालियों में लेकर खाया कम गया, फेंका ज्यादा गया। इससे उन्हें भोजन की बरबादी का एहसास होने के साथ कुछ पीड़ा भी महसूस हुई। उसके बाद उन्होंने जागरूकता मुहिम चलाने का संकल्प लेकर सोशल मीडिया व गोष्ठी इत्यादि के माध्यम से जुट गए।

वह कहते हैं कि घर की रसोई, रेस्टोरेंट, ढाबों, ठेलों पर मिलने वाले भोजन का स्वाद अलग-अलग महसूस होता हो लेकिन जहां यह अन्न पैदा होता है। उसके लिए किसान को कितनी मेहनत करनी होती है। यह किसान ही अच्छी तरह जानता है। अपना सुख-चैन भूल कर फसल के लिए रात-दिन उसे खेत में गुजराने पड़ते हैं। कभी फसल उगाने के लिए, कभी मौसम की मार से बचाने के लिए तो कभी पशुओं से बचाने के लिए खेत पर मुस्तैद रहना पड़ता है और अन्न को डस्टबिन में डालने वाले उसकी कद्र नहीं करते। आवश्यकता से अधिक प्लेट में लगा लेते हैं। खाते कम हैं, बाकी बचा भोजन बेकार चला जाता है। संजीव पाल कहते हैं भोजन इतना लो थाली में, बेकार न जाए नाली में। यह बात लोग समझ जाए तो अन्न की बरबादी नहीं होगी। समारोह में भोजन की कमी नहीं पड़ेगी। बचने पर उसका कहीं न कहीं, किसी तरह उपयोग हो जाएगा।


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