दल मिले अब दिल मिला रहे सियासी खिलाड़ी
अमरोहा : पुरानी कहावत है कि सियासत में दोस्ती और दुश्मनी कभी स्थायी नहीं होती। उपचुनाव में भी कुछ ऐस
अमरोहा : पुरानी कहावत है कि सियासत में दोस्ती और दुश्मनी कभी स्थायी नहीं होती। उपचुनाव में भी कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है। पिछले चुनाव में एक-दूजे को अदावत दिखाने वाले सियासी दिग्गज इस बार एक मंच पर आ रहे हैं। चुनाव परिणाम कुछ भी हों मगर इसके जरिये आपस में खिची तलवारें जरूर म्यान में चली गई हैं।
सियाली जागीर निवासी अशफाक अली सपा से विधायक रह चुके हैं। उन्हें उस मुकाम तक पहुंचाने में मौलाना जावेद आब्दी का भी अहम किरदार रहा मगर पिछले विधानसभा चुनाव से पूर्व दोनों के बीच जुबानी जंग छिड़ गई थी। तब विधायक अशफाक अली ने मौलाना आब्दी से चुनाव मैदान में उतरने की चुनौती तक दे डाली थी, जबकि दोनों ही सपा में थे। इसके बाद मौलाना ने अशफाक का टिकट कटवाकर खुद सपा से मैदान में उतर गए थे। टिकट न मिलने से नाराज अशफाक अली ने सपा छोड़कर न सिर्फ रालोद से जुड़े बल्कि मौलाना आब्दी के खिलाफ चुनाव मैदान में भी आ गए।
चुनाव में भले ही दोनों हार गए मगर उनके बीच सियासी दुश्मनी की खाई बहुत गहरी हो गई। इस उपचुनाव में अशफाक अली सपा के गठबंधन के बूते रालोद से चुनाव लड़ने की तैयारी में थे मगर फिर मौलाना उनके रास्ते की दीवार बन गए। वह दोबारा सपा से मैदान में आ गए। इसके बाद गठबंधन के चलते रालोद भी उनकी मदद में जुटा है मगर माना जा रहा था कि मौलाना आब्दी व अशफाक एक साथ नहीं आएंगे। रविवार को इसके उलट हो गया। मौलाना जावेद आब्दी सियाली जागीर स्थित पूर्व विधायक अशफाक अली के यहां पहुंच गए। वहां उन्होंने न सिर्फ अपनी आवभगत कराई बल्कि यह भी कहा कि उन्हें चुनाव के लिए मजबूर करने वाले अशफाक ही हैं।
इसी तरह पिछले दो चुनावों में दिवंगत कैबिनेट मंत्री चेतन चौहान व पूर्व सांसद कंवर सिंह तंवर में भी तलवारें खिची रहीं मगर इस चुनाव में संगीता चौहान के साथ तंवर भी नजर आ रहे हैं। इस तरह की सियासी जुगलबंदी प्रत्याशियों के लिए कितनी लाभदायी होगी यह तो चुनाव परिणाम आने पर ही पता चलेगा मगर लोगों के बीच यह चर्चा का विषय बनी हुई है।