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एनजीटी के इंजेक्शन से भी नहीं सुधरी बगद की दशा

कुछ समय पहले की ही बात है, जब बगद नदी के प्रदूषण को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने गंभीरता से लेते हुए अमरोहा जनपद के गजरौला औद्योगिक क्षेत्र की 14 इकाईयों को एक माह के लिए बंद करा दिया था। इन इकाईयों के बारे में शिकायत थी कि यह ट्रीटमेंट प्लांट पालन नहीं कर रहे और अपना प्रदूषित पानी बाहर फेंक रही हैं। इसको लेकर टीम ने स्वयं छापेमारी तक की थी। इससे उम्मीद जागी थी कि यहां की चु¨नदा इकाईयों के प्रदूषित पानी के कारण काली नागिन सा रुप धारण कर लेने वाली बगद नदी की हालत अब सुधर जाएगी, लेकिन इसकी हालत आज की भी बद से बदतर ही बनी है, यानी बगद नदी की हालत में नाम को भी सुधार नजर नहीं आ रहा है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 10:33 PM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 10:33 PM (IST)
एनजीटी के इंजेक्शन से भी नहीं सुधरी बगद की दशा
एनजीटी के इंजेक्शन से भी नहीं सुधरी बगद की दशा

गजरौला : कुछ समय पहले की ही बात है, जब बगद नदी के प्रदूषण को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने गंभीरता से लेते हुए अमरोहा जनपद के गजरौला औद्योगिक क्षेत्र की 14 इकाइयों को एक माह के लिए बंद करा दिया था। इन इकाईयों के बारे में शिकायत थी कि यह ट्रीटमेंट प्लांट पालन नहीं कर रहे और अपना प्रदूषित पानी बाहर फेंक रही हैं। इसको लेकर टीम ने स्वयं छापेमारी तक की थी। इससे उम्मीद जागी थी कि यहां की चु¨नदा इकाईयों के प्रदूषित पानी के कारण काली नागिन सा रुप धारण कर लेने वाली बगद नदी की हालत अब सुधर जाएगी, लेकिन इसकी हालत आज की भी बद से बदतर ही बनी है, यानी बगद नदी की हालत में नाम को भी सुधार नजर नहीं आ रहा है।

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वैसे तो सच यह भी है कि औद्योगिक इकाईयों के प्रदूषित पानी को ढोने के कारण यह नदी बची हुई भी है। इकाइयों के पीछे की साइड में तो नदी का अस्तित्व ही नहीं बचा है। बता दें यह वो नदी है, जो गजरौला से निकल हसनपुर, गंगेश्वरी इत्यादि क्षेत्रों से होते हुए आगे गंगा में जाकर मिलती है। इसे प्रदूषण मुक्त कराने की लड़ाई स्वयं सेवी संगठनों, सांसद-विधायकों, मंत्रियों व किसानों इत्यादि ने लड़ी। धरने-प्रदर्शन व रैलियां तक निकाली गई। विधान सभा व लोकसभा तक में इस नदी के प्रदूषण का मुददा उठा, लेकिन समस्या जस की तस बनी है। प्रदूषण के लिए बदनाम गजरौला की चर्चित इकाईयों पाइप व अन्य तरीकों से इसमें लंबे समय तक अपना प्रदूषित पानी बहाकर इसकी रंगत ही बदल दी। इसी कारण पिछले दिनों एनजीटी की टीम ने आदेशों का पालन नहीं करने पर यहां की चर्चित छोटी बडी इकाईयों के प्लांट को एक माह के लिए बंद करा दिया था। टीम के निरीक्षण में अधिकांश इकाईयों के आरओ प्लांट बंद ही पाए गए थे। इससे जाहिर हुआ कि संबंधित इकाईयां अपना प्रदूषित पानी बाहर ही बहा रही हैं। इसके लिए लोग प्रदूषण नियंत्रण विभाग व प्रशासन को ही जिम्मेदार मानते हैं। चूंकि उनके स्तर से ही शासन व कोर्ट के स्तर से प्रदूषण की रोकथाम को जारी आदेशों का पालन सुनिश्चित नहीं कराया जाता। नदी के आसपास खेती करने वाले राम ¨सह, नरेश, तीरथ ¨सह इत्यादि ने बताया कि इन विभागों के लोग खानापूर्ति करके लौट जाते हैं, इसी कारण बगद नदी का रंग प्रदूषण के कारण आज भी काला ही है। उप जिलाधिकारी उदभव त्रिपाठी ने बताया कि इस बारे में प्रदूषण नियंत्रण विभाग को लिखा जाएगा।


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