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भक्ति स्वयं को सुधारने का नाम

भक्ति, परमात्मा को याद करते हुए स्वयं को सुधारने का नाम है। दूसरों पर अंगुली उठाना, दूसरों की कमियां ढूंढना भक्ति में शामिल नहीं है। यह विचार निरंकारी संत परवेंद्र ¨सह ने सत्संग को प्रवचन सुनाते हुए व्यक्त किए।

By JagranEdited By: Published: Sun, 19 Aug 2018 11:10 PM (IST)Updated: Sun, 19 Aug 2018 11:10 PM (IST)
भक्ति स्वयं को सुधारने का नाम
भक्ति स्वयं को सुधारने का नाम

गजरौला: भक्ति, परमात्मा को याद करते हुए स्वयं को सुधारने का नाम है। दूसरों पर अंगुली उठाना, दूसरों की कमियां ढूंढना भक्ति में शामिल नहीं है। यह विचार निरंकारी संत परवेंद्र ¨सह ने सत्संग मेंव्यक्त किए।

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रविवार को हाईवे स्थित निरंकारी भवन पर साप्ताहिक सत्संग में प्रवचन सुनाते हुए संत परवेंद्र ¨सह ने भक्ति का महत्व बताया। कहा कि हमें जीवन में दुनियावी कार्य करते समय परमात्मा को याद करना चाहिए। परमात्मा का स्मरण कर नेक नियत से कार्य करें। जिससे किसी को मन को ठेस न पहुंचे। भक्ति समर्पण भाव से होती है, इसमें कोई शर्त नहीं चलती। सेवा करना, परोपकार करना, दया करना, प्रशंसा करना आदि भक्ति के वेश कीमती गुण हैं।

इस दौरान ब्रजपाल सरन, अशोक कुमार, राकेश साल्दी, सुरेश कुमार, अमन, दीपक गौतम, हिम्मत ¨सह, गजरा, वीरवती आदि सेवादल इकाई के लोग मौजूद रहे।


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