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न कोई योजना न वादा सिर्फ मोदी खौफ

अमरोहा : मौजूदा साल में तीसरी बार अमरोहा पहुंचे राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया चौ. अजीत ¨सह खाली हाथ आए थे और खाली ही लौट गए। उनके पास किसानों के लिए न कोई योजना दिखी और न ही उनके लिए वह कोई ठोस वादा कर पाए। सिर्फ भाजपा को हराने की रट ने उन पर तारी मोदी खौफ भी उजागर कर दिया। उनके लहजे से साफ हो गया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रचंड जनाधार खोने वाली रालोद ने अपनी गलतियों से कोई सबक नहीं लिया है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 17 Dec 2018 11:09 PM (IST)Updated: Mon, 17 Dec 2018 11:09 PM (IST)
न कोई योजना न वादा सिर्फ मोदी खौफ
न कोई योजना न वादा सिर्फ मोदी खौफ

अमरोहा : मौजूदा साल में तीसरी बार अमरोहा पहुंचे राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया चौधरी अजित ¨सह खाली हाथ आए और खाली ही लौट गए। उनके पास किसानों के लिए न कोई योजना दिखी और न ही उनके लिए वह कोई ठोस वादा कर पाए। सिर्फ भाजपा को हराने की रट ने उन पर तारी मोदी खौफ उजागर कर दिया। उनके लहजे से साफ हो गया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रचंड जनाधार खोने वाली रालोद ने अपनी गलतियों से कोई सबक नहीं लिया है।

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किसानों के मसीहा के रूप में प्रख्यात रहे पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण ¨सह के बेटे व रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजित ¨सह ने लम्बे वक्त तक किसानों के दिलों पर राज किया मगर सरकार में जगह पाने की ललक और अवसरवादी राजनीति ने आज उन्हें हाशिए पर खड़ा कर दिया है। धीरे-धीरे किसानों ने उनसे दूरी बना ली। इसके चलते पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी के प्रत्याशी तो दूर खुद बड़े चौधरी अपने बेटे जयंत के साथ चुनाव हार गए। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी किसानों ने उन्हें जोर का झटका धीरे से दिया।

दो चुनावों में करारी शिकस्त खाने के बाद रालोद ने अपने वोट बैंक खासकर किसानों का भरोसा दोबारा जीतने के बजाय अपना आत्मविश्वास ही खो दिया। यही वजह है कि पार्टी के मुखिया साल भर में महज तीन बार अमरोहा पहुंचे। इतना ही नहीं रविवार को जब वह यहां पहुंचे तो उनके पास किसानों से करने के लिए न कोई ठोस वादा था और न ही उन्हें अपने पाले में करने का कोई प्रभावी दांव। लगभग दो दिवसीय कार्यक्रम में वह सिर्फ मोदी को हराने की बात करते रहे। इसके लिए अन्य दलों के साथ बिना शर्त गठबंधन की हुंकार भी भरते रहे।

किसानों का भरोसा जीतकर अपने दम पर चुनाव लड़ने के सवाल पर कहा कि समय की मांग के अनुरूप गठबंधन जरूरी है। इससे साफ जाहिर हो गया कि वह अपने वोट बैंक रहे किसानों का भरोसा जीतने का हौसला खो चुके हैं। गन्ना मूल्य न बढ़ने समेत अन्य मुद्दों पर सरकार से रूठे किसानों को अपने पाले में लाने के लिए बड़े चौधरी के पास यह अच्छा मौका था।


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