दिव्यागों के जीवन में फैला रहे ज्ञान का उजियारा
सिंहपुर (अमेठी) : हर रोज गिरकर भी मुकम्मल खड़े हैं, ऐ जिंदगी देख मेरे हौसले तुझसे भी बड़
सिंहपुर (अमेठी) : हर रोज गिरकर भी मुकम्मल खड़े हैं, ऐ जिंदगी देख मेरे हौसले तुझसे भी बड़े है। एक हादसे में अपनी आखें गवा चुके फू ला गाव निवासी चंद्रशेखर कु छ ऐसे ही बड़े जज्बे के साथ नेत्रहीन बच्चों के जीवन का सहारा बने हुए हैं। वे ऐसे दिव्यागों के जीवन पथ में ज्ञान का उजियारा फैला रहे हैं, जिनकी अंधेरी दुनिया मायूसी से घिर गई थी। चंद्रशेखर भले ही इन बच्चों को दुनिया के चकाचौंध भरे रंग न दिखा पा रहे हो, लेकिन ज्ञान और हुनर के बलबूते उनके जीवन में खुशिया भरने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। इनके द्वारा खोले गए जीवन पथ दिव्याग विद्यालय में तालीम हासिल कर चुके सैकड़ों नौनिहालों का जीवन स्वावलंबन की रोशनी से जगमग हो चुका है। क्षेत्र के एक इंटर कालेज में में बतौर शिक्षक की चंद्रशेखर शुक्ल की आखें 1991 परिवारिक झगड़े की भेट चढ़ गई। आखों की रोशनी खो देने के बाद भी कुछ कर गुजरने की तमन्ना लिए उन्होंने अपना जीवन नेत्रहीनों की सेवा में समर्पित कर दिया।
-2003 में डाली विद्यालय की नीव
26 जून 2003 को उन्होंने जीवन पथ दिव्याग विद्यालय की नीव रखी। छह बच्चों के साथ शुरू किए गए इस स्कूल में वर्तमान में 32 नेत्रहीन बच्चे तालीम हासिल कर रहें हैं, जिन्हें अक्षर ज्ञान के साथ, गायन, वादन और शारीरिक शिक्षा दी जा रही है।
गैर प्रांतों के भी हैं छात्र
मौजूदा सत्र में 32 छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। जिनमें तीन बिहार और एक मध्य प्रदेश से हैं। इन छात्र छात्राओं के रहने से लेकर खाने पीने की व्यवस्था विद्यालय परिसर में ही की जाती है।
कम्प्यूटर शिक्षा की खास व्यवस्था
विद्यालय में दो शिक्षक बच्चों को तालीम दे रहें हैं। नेत्रहीन शिक्षक राममूर्ति ब्रेनलिपि से छात्रों को पढ़ाते हैं। बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा के अलावा मोबाइल चलाना भी सिखाया जा रहा है।