सर्द मौसम में चाय की चुस्कियों के बीच हो रहा सियासी गुणा-भाग
अमेठी मौसम का पारा भले ही नीचे लुढ़क गया है। सियासत का पारा चढ़ने लगा है।
अमेठी : मौसम का पारा भले ही नीचे लुढ़क गया है। सियासत का पारा चढ़ने लगा है। अलाव हो या चाय की दुकान, जहां चार लोग इकट्ठा हुए नहीं कि राजनीति की चर्चा शुरू। राजनीतिक दल अभी प्रत्याशी की घोषणा करने में पीछे हैं। चाय की दुकानों पर चुस्कियों के बीच सियासी बहस करने वाले लोग मुद्दों की बात करने के साथ उम्मीदवार भी तय कर देते है। उनकी जीत के समर्थन में तर्क दिए जाते है।
ऐसे ही एक बहस सुनने का अवसर मुझे भी मिला। सेमरा गांव के श्यामा देवी की चाय की दुकान, वक्त तकरीबन साढ़े ग्यारह का हो रहा होगा। वहां बैठे सतीश कश्यप एक घूंट चाय पीकर गंभीर हो जाते हैं। फिर बोल पड़ते हैं महामारी के दौरान लोगों को मुफ्त राशन मिला। दवाइयां मिली। निश्शुल्क टीका लग रहा है..। तबतक बजरंग बहादुर कहते हैं कि इसी से जीवन नहीं चलेगा। बच्चों की पढ़ाई लड़खड़ा गई है। अच्छी शिक्षा के साथ रोजगार पर जोर दिया जाना चाहिए। मुफ्त की चीजों से भला नहीं होने वाला है।
यह चर्चा चल ही रही है कि बूंदाबांदी शुरू हो गई। बारिश से बचने के लिए कुछ और लोग दुकान में आ गए। राजकुमार सिंह ने बहस को आगे बढ़ाया। बोले कानून व्यवस्था में सुधार हुआ है। घटनाओं पर अंकुश लगा है। तभी राम लखन कहते हैं, विकास भी होना चाहिए। सड़कों पर चलना मुश्किल है। बारिश होते ही वे तालाब में बदल जाती हैं। तभी रंजीत बोले किसान सम्मान निधि तो मिल ही रही हैं। उन्हें रोककर राकेश कहते हैं कि महंगाई आसमान पर पहुंच गई है।
जनार्दन शुक्ल ने कहा कि बेसहारा पशुओं से मुक्ति कब मिलेगी। फसलों की रखवाली करते-करते परेशान हो गए हैं। नेता जीतने के बाद जनता की समस्या को भूल जाते हैं। उसी को वोट दें लोग जो जनता दुखदर्द में शामिल हो। समस्याओं से निजात दिला विकास की बात करें। यह बहस अगली सरकार बनाने तक चलती है। अंत में सब एक दूसरे से विदा ले लेते हैं।