कृष्ण-सुदामा की दोस्ती मानव जीवन के लिए मिसाल
समाज को श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता से सीख लेनी चाहिए।
अमेठी : लीलाधर भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता की मिसाल संसार में आज भी दी जाती है। मित्र चाहे बड़ा हो या छोटा लेकिन मित्रवत भाव हमेशा बना रहना चाहिए। समाज को श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता से सीख लेनी चाहिए। यह वृतांत श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के सप्तम दिवस विकास खंड क्षेत्र के कटराफूलकुंवर गांव में कथा व्यास साध्वी पूजा शास्त्री ने बताया। कथा व्यास ने बताया कि संदीपनि मुनि के आश्रम में श्री कृष्ण और सुदामा ने शिक्षा ग्रहण की थी, दोनों बालसखा थे। कालांतर में श्री कृष्ण द्वारिका धीश बने और सुदामा गरीब ब्राह्मण हुए। पत्नी के हठ करने पर सुदामा अपने मित्र से मिलने द्वारिका पहुंचे। जहां नगर वासियों के तमाम तिरस्कार को दरकिनार कर सुदामा ने श्रीकृष्ण से मिलने का निश्चय किया। मित्र के आगमन का समाचार पाकर द्वारिकाधीश का विह्वल होकर अपने मित्र से मिलने नंगे पैर दौड़ पड़े। कवि नरोत्तमदास की पंक्तियों का उद्धरण कथावाचक ने संगीतमय ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि महाभारत के दौरान युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा था दुनिया में विश्वासघात का प्रायश्चित क्या है। इस पर श्री कृष्ण ने बताया कि विश्वासघात जैसे जघन्य अपराध का प्रायश्चित बना ही नहीं। आज समाज में मित्रता स्वार्थ बस हो रही है। अनेकानेक प्रसंगों का वर्णन करते हुए कथा वाचक ने यदु दत्तात्रेय संवाद, गुरु से अधिक शिष्य का महत्व, भगवान के 16108 विवाह प्रसंगों का वर्णन करते हुए परीक्षित के मोक्ष की कथा विस्तार पूर्वक सुनाई। जिसे सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। कथा का रसास्वादन मुख्य यजमान दयाराम यादव, राजेश यादव, शोभनाथ, प्रवीण, संजीत, सन्तराम, कल्पनाथ यादव व उनकी टीम के जयप्रकाश, रिकू, गुरु प्रसाद व गुड्डू आदि मौजूद थे।
श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह प्रसंग सुनकर श्रद्धालु हुए भाव विभोर :
शिवली गांव में श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। गुरुवार को छठे दिन कथा वाचक कमलेश मिश्रा महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण के विवाह प्रसंग का वर्णन किया तो श्रद्धालु भाव विभोर हो गए।
इसी क्रम में भगवान श्रीकृष्ण व रुक्मिणी विवाह की झांकी देखकर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो उठे। महिलाएं भगवान के विवाह के गीत गाने लगीं। कथा वाचक ने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा वह संजीवनी है, जिसका सांसारिक माया मोह त्याग कर रसपान करना चाहिए।