प्रवासी श्रमिकों को बुनकरी ने मुसीबत में दिया सहारा
अनलॉक में बुनकरों के सामने व्यवसाय शुरू करना और तैयार माल को खपाना चुनौती बना। ऐसे में मास्क की जगह गमछे उपायोगी बना।
अंबेडकरनगर : वैश्विक महामारी में लॉकडाउन की पाबंदियां लगने के बाद शहरों से बेरोजगार होकर घर लौटे प्रवासी श्रमिकों को बुनकरी ने मुसीबत में सहारा दिया। अनलॉक में आवागमन की मिली छूट के दौरान शारीरिक दूरी और मास्क लगाए जाने की अनिवार्यता ने आर्थिक संकट के बादल को छांटना शुरू कर दिया। अनलॉक में बुनकरों के सामने व्यवसाय शुरू करना और तैयार माल को खपाना चुनौती बना। ऐसे में मास्क की जगह गमछे उपायोगी बना। इसके बाद मांग बढ़ी तो पावरलूमों की खटर-पटर शुरू हुई। इसमें प्रवासी श्रमिकों को काम दिया जाने लगा।
जनपद की टांडा, इल्तिफातगंज, हंसवर, बसखारी, किछौछा, जलालपुर व अकबरपुर तहसीलों में पावरलूमों पर तकरीबन पांच हजार प्रवासी श्रमिकों को काम मिला है। लॉकडाउन की पाबंदियां लगने के बाद आर्थिक स्थिति मजबूत करने मुंबई, भिवंडी, अहमदाबाद, सूरत जैसे शहरों में गए श्रमिकों के सामने संकट खड़ा हो गया। हजारों श्रमिक मजबूरी में भूखे प्यासे अपने वतन को वापस लौटे। सरकार ने संकट से उबारने के लिए आर्थिक मदद किया। दिन-रात काम करने वाले श्रमिक खाली हाथ रहे। वक्त के साथ लॉकडाउन की पाबंदियां भी हटने लगीं। एक जिला एक उत्पाद में शुमार जनपद में घरेलू उद्योग की तरह फैले वस्त्र उद्योग ने सहारा दिया। वस्त्र बुनने के करघे को चलाने, तैयार कपड़ों की तही लगाने, स्टीकर लगाने आदि कामों में प्रवासी श्रमिक लगे हैं। डूबते को तिनके का सहारा ही सही, लेकिन अब श्रमिक किसी के सामने हाथ फैलाने को मजबूर नहीं रहे।
बुनकरी के काम में तैयार कपड़ों की ताही, स्टीकर लगाना, तैयार कपड़ों की पैकिग आदि छोटे-छोटे बहुत काम है। बाहर से आए प्रवासी श्रमिक बुनकरों के साथ काम कर रहे हैं। विद्युत की समस्या से निजात नहीं मिलने से वस्त्र उद्योग संकट में है। प्रवासी श्रमिकों को काम देने वाले वस्त्र उद्योग को इस मुसीबत से निजात दिलानी होगी।
हाजी इफ्तेखार अहमद अंसारी
अध्यक्ष, बुनकर सभा