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शिक्षक पिता के अनुशासन ने रंजना को बनाया आइएएस

शिक्षक पिता के ²ढ़ भरोसे पर बचपन से ही आइएएस बनने का सपना रंजना राजगुरु का साकार हो गया।

By JagranEdited By: Published: Sun, 18 Oct 2020 11:27 PM (IST)Updated: Mon, 19 Oct 2020 05:09 AM (IST)
शिक्षक पिता के अनुशासन ने रंजना को बनाया आइएएस
शिक्षक पिता के अनुशासन ने रंजना को बनाया आइएएस

अंबेडकरनगर : शिक्षक पिता के ²ढ़ भरोसे पर बचपन से ही आइएएस बनने का सपना रंजना राजगुरु ने सफल कर दिखाया। अंबेडकरनगर जिले की यह बेटी अब अपने कर्मपथ पर आगे बढ़ते हुए उत्तराखंड के विकास में बतौर जिलाधिकारी सहभागी बन रही हैं। मौजूदा समय में रंजना राजगुरु उत्तराखंड के उधम सिंह नगर की जिलाधिकारी हैं। पढ़ाई के लिए अपने गांव के स्कूल से लेकर दिल्ली तक का सफर तय किया। परिवार का पूरा सहयोग मिला तो लक्ष्य पाने की राह आसान हो गई।

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अनुशासन से मजबूत हुई शिक्षा की डगर : मालीपुर थाना क्षेत्र के गांव कालेपुर महुवल निवासी गणित शिक्षक कायाराम वर्मा का अनुशासन अनुकरणीय है। इसी की बदौलत उन्होंने अपने बच्चों को बुलंदियों के शिखर तक पहुंचाया। आइएएस रंजना वर्मा बताती हैं कि दोनों भाइयों और दोनों बहनों की पढ़ाई पर पिता के साथ गृहणी मां कृष्णावती वर्मा का पूरा ध्यान रहता था। हम सब रात में देर तक पढ़ाई करते थे। इस दौरान माता-पिता जागते रहते थे।

बचपन से होनहार रही बेटी : शिक्षा के क्षेत्र में रंजना वर्मा बचपन से ही होनहार रहीं। प्राथमिक स्तर की पढ़ाई गांव के पास मिशनरी स्कूल से की। इसके बाद होनहार रंजना ने वर्ष 1995 में बाकरगंज के स्कूल से मैट्रिक महज 14 वर्ष की आयु में ही पास कर लिया। वर्ष 1997 में इंटरमीडिएट और वर्ष 2000 में परुइया आश्रम कॉलेज के महिला प्रखंड से स्नातक किया। इसके बाद लक्ष्य साधने के लिए रंजना वर्मा इलाहाबाद विश्वविद्यालय पहुंच गईं।

हर कदम पर मिले रहनुमा : खुशकिस्मती कहें या लक्ष्य को पाने की ललक, रंजना वर्मा को कदम-कदम पर रहनुमा मिलते गए। रंजना वर्मा बताती हैं कि घर से बाहर जाकर पढ़ाई करने के बारे में उस वक्त सोचना भी कठिन था, जब लोग बेटियों को दूर जाने से रोकते थे। उस समय मेरे माता-पिता ने अच्छी पढ़ाई व लक्ष्य पाने के लिए मुझे इलाहाबाद जाने को कहा। पिताजी को मुझ पर पूरा भरोसा था कि मैं आइएएस जरूर बनूंगी। कॉलेज में दाखिला लेने से लेकर कोचिग करने तक मददगार मिलते गए। खास तौर पर भूपेंद्र कुमार मिश्र और शास्त्री जी के गाइडेंस को रंजना खूब सराहती हैं। यहां से पढ़ाई के बाद दिल्ली में कोचिग करते हुए उन्होंने तीसरे प्रयास में वर्ष 2010 में संस्कृत विषय से आइएएस बनने का लक्ष्य हासिल कर लिया। खास बात रही कि रंजना ने कभी संस्कृत की कोचिग नहीं ली।

रिश्तेदारों को देख जगी ललक : परिवार व रिश्तेदारों को आइएएस और आइपीएस के उच्च पदों पर देखकर रंजना के मन में बचपन से आइएएस बनने की ललक जाग उठी थी। दिल्ली में कोचिग के दौरान रंजना वर्मा के जीवन में आइपीएस रामचंद्र राजगुरु आए। परिवार के प्रस्ताव पर वर्ष 2012 में दोनों ने विवाह कर लिया। इसके साथ ही वर्मा से रंजना राजगुरु हो गईं। इनके भाई विनय वर्मा भी आईईएस हैं।

गांव के गणेश बाबा खूब आते याद : हाईस्कूल स्तर की पढ़ाई के लिए गांव से दूर जाते समय गणेश बाबा को रंजना खूब याद करती हैं। उस समय चलने वाले टेंपो वाहन को गणेश बाबा ही कहा जाता था। इसके अलावा इलाहाबाद की टिक्की और समोसे को वह आज भी मौका मिलने पर पहुंच कर खाती हैं।

सम्मान की होती रही बारिश : आइएएस बनने के बाद से रंजना राजगुरु पर सम्मान की बारिश जारी है। वर्ष 2010 बैच की आइएएस रंजना पहली बार 2013 में देहरादून की ज्वाइंट मजिस्ट्रेट बनीं। इसके बाद 2014 में हरिद्वार की मुख्य विकास अधिकारी रहीं। वर्ष 2015 से महानिदेशक शिक्षा, अपर सचिव बेसिक व माध्यमिक शिक्षा, राज्य परियोजना निदेशक राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान और सर्व शिक्षा अभियान का कार्यभार शासन में संभाला। वर्ष 2016 में मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविद के गृह जनपद रुद्रप्रयाग की डीएम रहते हुए विधानसभा चुनाव कराया। वर्ष 2017 में जिलाधिकारी बागेश्वर बनकर लोकसभा और त्रिस्तरीय चुनाव कराया। मौजूदा समय में ऊधम सिंह नगर की जिलाधिकारी हैं। डीएम रहते हुए रंजना राजगुरु को राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने वर्ष 2017 में कुशल नेतृत्व कर चुनाव कराने पर सम्मानित किया। इसके अलावा इन्हें जनपद को ओडीएफ कराने का भी सम्मान मिला है।


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