Move to Jagran APP

गांव में नहीं मिल रहा शहर जैसा काम और मेहनताना

अंबेडकरनगर शहर के बराबर गांव में मेहनताना नहीं मिलता। योग्यता और क्षमता को यहां तरजीह देने के बजाए लोग सस्ती कीमत तलाशते हैं। ऐसे में आर्थिक जरूरत को गांव में रहकर पूरा करना कठिन है। मनरेगा में फावड़ा चलाना अब ठीक नहीं लगता। ऐसे में सबकुछ ठीक होने पर शहर वापस लौटने का इंतजार है। फिलहाल मजदूरी से काम चला रहे हैं। तमाम प्रवासी कामगारों और मजदूरों का यही कहना है। जबकि तमाम मजदूर वापस शहर नहीं जाना चाहते। मनरेगा में काम नहीं मिलने पर विवश होकर स्वरोजगार और किसानी में जुट गए हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 28 May 2020 05:22 PM (IST)Updated: Thu, 28 May 2020 05:22 PM (IST)
गांव में नहीं मिल रहा शहर जैसा काम और मेहनताना
गांव में नहीं मिल रहा शहर जैसा काम और मेहनताना

अंबेडकरनगर : शहर के बराबर गांव में मेहनताना नहीं मिलता। योग्यता और क्षमता को यहां तरजीह देने के बजाए लोग सस्ती कीमत तलाशते हैं। ऐसे में आर्थिक जरूरत को गांव में रहकर पूरा करना कठिन है। मनरेगा में फावड़ा चलाना अब ठीक नहीं लगता। ऐसे में सबकुछ ठीक होने पर शहर वापस लौटने का इंतजार है। फिलहाल मजदूरी से काम चला रहे हैं। तमाम प्रवासी कामगारों और मजदूरों का यही कहना है। जबकि तमाम मजदूर वापस शहर नहीं जाना चाहते। मनरेगा में काम नहीं मिलने पर विवश होकर स्वरोजगार और किसानी में जुट गए हैं।

loksabha election banner

केस एक : टांडा आसोपुर गांव निवासी अर्जुन पुणे की टाइल्स, मार्बल कंपनी में नौकरी करते थे। इससे 12 हजार मासिक आमदनी होने लगी। लॉकडाउन में काम बंद हो गया। दो महीने तक इंतजार कर गांव में लौट आए हैं। गांव में उनके लायक काम नहीं मिल रहा। ऐसे में शहर लौटने को महामारी के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। तबतक मजदूरी से काम चला रहे हैं।

केस दो : आसोपुर गांव निवासी विश्वनाथ बेंगलुरु की एक फाइबर कंपनी में काम करते रहे। इससे उन्हें 14 हजार रुपये महीने की आमदनी होती थी। इससे परिवार खुशहाल था। लॉकडाउन में काम बंद होने के बाद विश्वनाथ गांव लौट आए हैं। विश्वनाथ बताते हैं बेरोजगारी काटने को दौड़ती है। गांव में हुनर के अनुसार काम तलाश रहे हैं।

केस तीन : आसोपुर गांव निवासी धर्मेंद्र राजस्थान के स्टील प्लांट में मजदूरी करते थे। इससे 15 हजार रुपये मासिक आय होती थी। लॉकडाउन में काम बंद होने पर गांव लौट आए। यहां खेती के लिए भूमि नहीं और मनरेगा का जॉबकार्ड भी नहीं हैं। इससे मजदूरी नहीं मिल रही। प्रधान ने जल्द रोजगार देने का वादा किया है।

--------

-प्रवासियों मजदूरों को नहीं लुभाती मनरेगा की मजदूरी

-विवशता में किसानी और स्वरोजगार में बढ़ाते कदम


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.