कानून की सूरमा बिटिया ने मनवाया अपने ज्ञान को लोहा
दिल्ली यूपी हरियाणा व केंद्र सरकार में प्रतिनिधित्व कर चुकीं हैं। सुप्रीम कोर्ट में वकालत कर रहीं हैं।
शिवकुमार तिवारी, भीटी (अंबेडकरनगर)
अधूरे सपनों को मुकाम मिल गया। बिटिया को नाम मिला तो मां को जहान मिल गया। यह हकीकत भीटी तहसील के गांव परवरभारी के मजरे पांडेय का पूरा निवासी सुप्रीम कोर्ट की नामचीन अधिवक्ता सावित्री पांडेय की है। इनका सपना आइएएस अथवा वैज्ञानिक बनने का था। लेकिन, कानून की पढ़ाई में अपना झंडा लहराया।
पढ़-लिखकर लिखकर आगे बढ़ने की उम्मीदें कम उम्र में शादी होने पर मां इंद्रावती की आंखों में सपना बनकर रह गईं, जिसे साकार करने के लिए वह अपनी बेटी सावित्री को प्रेरणा देती रहीं। बेटी ने भी सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता बनकर सपने को हकीकत का चोला पहना दिया। बिटिया की कामयाबी पर परिवार वालों को ही नहीं बल्कि पूरे जिले को नाज है।
भीटी का चिराग दिल्ली तक फैला रहा रोशनी : भीटी तहसील का यह चिराग दिल्ली तक रोशनी फैला रहा है। सेना से सेवानिवृत्त सूबेदार मेजर पिता रामनाथ पांडेय, मां इंद्रावती, सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य मामा हरिप्रसाद त्रिपाठी तथा राधिका त्रिपाठी की प्रेरणा और सेना से रिटायर भाई नीरज पांडेय, विजय पांडेय व छोटी बहन गायत्री का उत्साहवर्धन, सावित्री को इस मुकाम तक पहुंचाने में सारथी बना।
चलता है सिक्का : सुप्रीम कोर्ट के जानकर अधिवक्ताओं में सावित्री का सिक्का चलता है। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के अलावा हरियाणा, यूपी तथा दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व कर चुकी है। वहीं, सावित्री में ज्ञान का पहला दीप जलाने वाला गांव का विद्यालय भी उसकी सफलता पर इतराता है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पैतृक गांव परवरभारी के प्राथमिक विद्यालय में हुई। हाईस्कूल शांति आश्रम इंटर कालेज सया तथा इंटरमीडिएट की पढ़ाई रामबली नेशनल इंटर कालेज गोसाईगंज से पूरी की। बीएससी और एमएससी बीएचयू से किया। एलएलबी तथा एलएलएम की पढ़ाई चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से पूरी कर तीन वर्षों तक वहां पर लेक्चरर रहीं। मन न लगने के कारण नौकरी छोड़कर वह दिल्ली शिफ्ट हो गईं। यहीं से उनकी कामयाबी का सफर शुरू हो गया।
जीवन में आए सफलता के पड़ाव : वर्ष 1982 में पहले प्रयास में ही उनका सेलेक्शन दंत चिकित्सक (बीडीएस) तथा पीसीएस परीक्षा में जिला विकास अधिकारी पद पर तथा वर्ष 1992 में दोबारा इनका चयन पीसीएस में हुआ लेकिन, उन्होंने कोई नौकरी ज्वाइन नहीं की। इसी वर्ष उन्होंने आइएएस की प्री परीक्षा पास की। लेकिन, इसी बीच उनके पिता का निधन होने से वह मुख्य परीक्षा में नहीं बैठ सकीं। इसके बाद वर्ष 2001 में वह सुप्रीम कोर्ट वकालत करने पहुंचीं। अपने दमखम पर उन्होंने वहां अलग पहचान स्थापित की।
न्याय के कदमों को कर रहीं मजबूत : सुप्रीम कोर्ट में चार वर्ष की अवधि में अपनी साख मजबूत करने के बाद वह वर्ष 2005 में सरकारी पैनल में नामित हुईं। इसके बाद 2005 से 2017 तक यूपी सरकार, वर्ष 2000 से 2014 तक हरियाणा सरकार, 2007 से 2014 तक केंद्र सरकार तथा दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व किया। इस अवधि में इनके प्रयास से एनजीटी के सैकड़ों ऑर्डर पास हुए। आज वह बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया समेत विभिन्न संस्थाओं की गवर्निंग काउंसिल हैं। उन्हें सराहनीय प्रयासों के लिए पुरस्कृत व सम्मानित भी किया जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट में गरीबों के न्याय दिलाने वाली एमाइकस में 2006 से अद्यतन वह प्रतिनिधित्व कर रही हैं। इसकी वह लाइफटाइम सदस्य भी हैं। सुप्रीम कोर्ट में सीनियर मीडिएटर भी हैं।