अधूरी बात और जेब को लग रहा चूना
कमजोर नेटवर्क की समस्या से शहर व गांव के उपभोक्ता जूझ रहे। निजी कंपनियों का सहारा लेने में अतिरिक्त खर्च का बोझ बढ़ा रहा।
अरविद सिंह, अंबेडकरनगर
भारत संचार निगम लिमिटेड की सेवाओं पर बदहाली का ग्रहण लगा हुआ है। जिला मुख्यालय से ग्रामीणांचल तक उपभोक्ता इसकी लचर सेवा से परेशान हैं। खस्ताहाल संसाधनों के चलते आए दिन लैंडलाइन, मोबाइल और ब्राडबैंड सेवा बेपटरी हो जाती है। फिलहाल इसमें सुधार होने की खास उम्मीद नहीं दिख रही है। ऐसे में निजी संचार कंपनियों का सहारा लेने में उपभोक्ताओं को अतिरिक्त खर्च का बोझ उठाना पड़ रहा है। हालांकि निजी कंपनियों की संचार सेवा का हाल भी कुछ ज्यादा ठीक नहीं हैं।
बीएसएनएल के अलावा निजी कंपनियों का कमजोर नेटवर्क उपभोक्ताओं को चूना लगा रहा है। सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं में कामकाज भी इससे काफी प्रभावित होते रहते हैं। सुबह-शाम नेटवर्क की समस्या बढ़ जाती है। आए दिन ब्राडबैंड के खराब होने से उपभोक्ता दूसरे नेटवर्क का सहारा लेने को विवश होते हैं। इससे दोहरा खर्च झेलना पड़ता है। बातचीत के बीच नेटवर्क गायब होते फोन कट जाता है। ऐसे में दोबारा कॉल लगाना और निर्बाध बात करने से भरोसा उठ चुका है। यह तब है जब मोबाइल का डाटा और बैलेंस कटने के बाद भी संतोषजनक सुविधा नहीं मिल रही है।
जर्जर संसाधनों को बदलना जरूरी : शहर से गांव तक बीएसएनएल के केंद्रों पर जर्जर संसाधनों को बदलना बेहद जरूरी है। हालांकि आर्थिक कमजोरी से जूझते निगम के सामने आने उपभोक्ताओं को बचाए रखना और इन्हे बेहतर सेवा देना चुनौती बना है।
आधे भी नहीं रह गए उपभोक्ता : जनपद में कभी बीएसएनएल ही संचार का माध्यम रहा है। उस समय दो लाख से अधिक उपभोक्ता थे। फिलहाल खस्ताहाल संचार सेवा के कारण बीएसएनएल की मोबाइल सेवा के उपभोक्ताओं की संख्या एक लाख भी नहीं रह गई है। ब्राडबैंड के 900 तथा लैंडलाइन के महज 1640 उपभोक्ता हैं।
एसडीओ वीरेंद्र कुमार मौर्य ने बताया कि संसाधन जर्जर होने के साथ ही खर्च में कटौती से दिक्कत है। बिजली आपूर्ति होने तक संचार सेवा चलती रहती है। बिजली कटते ही परेशानी होती है। जेनरेटर चलाने के लिए खर्च नहीं मिलता है।