वर्दी पहनकर आत्मनिर्भर और सशक्त बनीं बेटियां
दूसरों की सुरक्षा कर रहीं। नेतृत्व क्षमता से लेकर निर्भीकता की मिसाल बनीं।
अरविद सिंह, अंबेडकरनगर
कोमल हैं, कमजोर नहीं, शक्ति का नाम नारी है। दुनियाभर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाली शक्ति स्वरूपा यह नारियां खुद सबल बनकर दूसरों की सुरक्षा में मुस्तैद हैं। कर्मपथ पर पुरुषों से कंधा मिलाकर बुलंदी पर पहुंचने वाली बेटियां नेतृत्व क्षमता के साथ निर्भीकता का परिचय देती हैं। ऐसे में पुलिस महकमे में थाने एवं चौकियों की कमान संभाले महिला दारोगा और गांवों में सुरक्षा का जिम्मा संभाले महिला आरक्षी प्रेरणा का पुंज बनी हैं।
कानून का राज कायम कर रहीं 318 बेटियां : जनपद के पुलिस महकमे में सात महिला उप निरीक्षक तथा 311 महिला आरक्षी समेत कुल 318 बेटियां कानून का राज कायम करने में लगी हैं। थानाध्यक्ष की कमान संभालने से लेकर गांवों तथा शहर में सुरक्षा व्यवस्था में लगी हैं। कोरोना महामारी काल में भी घर पर बेटी, बहू, मां और पत्नी का कर्तव्य निभाने के साथ कर्मपथ पर अपने दायित्वों को पूरा करने में डटी हैं।
प्रियंका पांडेय, थानाध्यक्ष
महिला थाना, अंबेडकरनगर ने बताया कि पिताजी स्वर्गीय महेश चंद्र पांडेय पुलिस सेवा में रहे तो घर के माहौल से नौकरी की ओर मेरा रुझान रहा। ऐसे में मानसिक और शारीरिक तौर पर मैंने खुद को तैयार कर रखा था। पुलिस की नौकरी में महिलाओं के लिए फील्ड और ऑफिस का दोहरा विकल्प रहता है। हालांकि वर्दी पहनने के बाद सशक्त होने का अहसास होता है। इसमें जनता की सेवा तथा असहायों की मदद करने का बेहतर मौका मिलता है।
देविका सिंह, उप निरीक्षक ने बताया कि चुनौतियों से हार मानने के बजाए इसे स्वीकार करने में दम दिखाना है। दो साल की सेवा में कई ऐसे चैलेंज मिले जब सामने हार दिखती थी लेकिन, मैंने हमेशा मन में ठाना कि मैं सब कुछ कर सकती हूं। बेटियों पर भरोसा करते हुए उनका आत्मबल बढ़ाने की जरूरत है। मेरी मां विमला सिंह ने ऐसा ही मनोबल मुझमें भरा है। इसी की बदौलत निर्भीक रहकर दायित्वों और कर्तव्यों का निर्वहन कर रही हूं।
शिवांगी त्रिपाठी, उप निरीक्षक ने बताया कि बेटियों को कमजोर कहना गलत है। समाज में अब काफी कुछ बदलाव आया है। इसी का नतीजा है कि बेटियां हर कर्मपथ पर अपनी धाक दिखा रही हैं। पुलिस की नौकरी कठिन जरूर है लेकिन, यह सोचकर पीछे हटना गलत है। बेटियों को खुद अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालनी होगी। इसके लिए आत्मनिर्भर बनने के साथ सशक्त होना है। मुझे बचपन से ही पुलिस में सेवा करने की इच्छा थी, ताकि बेटियां कमजोर नहीं हैं, इसे सच साबित करके दिखा सकूं।
वंदना अग्रहरि, उप निरीक्षक ने बताया कि बचपन से वर्दी पहनने का सपना मैंने अपने मजबूत हौसलों व परिवार की मदद से सफल कर दिखाया। महिलाओं पर होते उत्पीड़न तथा कमजोर समझकर परेशान करने के मसले देखकर मैं हमेशा परेशान हो जाती थी। सोचा था, पुलिस बनकर कानून की मदद से इस कमजोर शब्द की सशक्त पहचान बनूंगी। आज मैं अपने कर्मपर पर पहुंचकर अडिग हूं।
प्रियंका मिश्रा, उप निरीक्षक ने बताया कि पुलिस की नौकरी में खुद को सबल दिखाने से ज्यादा साबित करने का मौका मिलता है। मैंने बेटियों के आत्मनिर्भर बनने और निर्णायक क्षमता से सफल साबित होने का सपना सच किया है। ऐसी सभी बेटियां को खुद पर भरोसा करके मजबूत बनाना होगा।
प्रियांशु भट्ट, उप निरीक्षक ने बताया कि समाज को सुरक्षा देने के साथ ही खुद की रक्षा और माता पिता का गौरव बढ़ाने के लिए मैंने पुलिस सेवा का चयन किया। आज इस नौकरी से मैं संतुष्ट हूं। मन में जनता सेवा की भावना लेकर आई थी और इसे पूरा कर रही हूं।
ममता यादव, उपनिरीक्षक ने बताया कि सिपाही पिता से मिले सबक ने मुझे पुलिस में अफसर बनने में मदद की। पुलिस सेवा की कठिनाई से मैं पहले से परचित थी। इसलिए नौकरी ज्वाइन करने से पहले तैयारी पूरी कर रखी थी। पुलिस में आने के बाद सम्मान के साथ आत्मबल लगातार बढ़ता गया।