कोरोना कहर ढाए है और हम मजमा लगाए हैं!
कोरोना कहर ढाए है। इसकी दूसरी लहर इतनी तेज है कि 20 दिनों में ही संक्रमित मरीजों की संख्या 100 को पार कर गई। एक सप्ताह के अंदर नवजात समेत पांच लोग काल के गाल में समा गए फिर भी लापरवाही नहीं जा रही।
रामानुज मिश्र, अंबेडकरनगर: कोरोना कहर ढाए है। इसकी दूसरी लहर इतनी तेज है कि 20 दिनों में ही संक्रमित मरीजों की संख्या 100 को पार कर गई। एक सप्ताह के अंदर नवजात समेत पांच लोग काल के गाल में समा गए, फिर भी लापरवाही नहीं जा रही। दुकान से दफ्तर तक न शारीरिक दूरी का ख्याल है न मास्क पहनने की चिता। बस, जहां देखिए वहीं मजमा लगाए हैं। यदि हम अब भी नहीं चेते तो हालात संभाले नहीं संभलेंगे।
संक्रमण के पहले दौर में 1895 मरीज मिलने के बाद 10 मार्च को जिला पूर्ण रूप से कोरोना मुक्त घोषित कर दिया गया था। इसके करीब सप्ताह भर बाद 18 मार्च से फिर इक्का-दुक्का संक्रमित मिलने शुरू हो गए। बेपरवाही के चलते 20 दिनों में यह आंकड़ा 100 की संख्या को पार कर गया। अब तो रोजाना 20-30 मरीज मिलने लगे हैं। इस बीच एक सप्ताह के अंदर सीएमओ दफ्तर में बाबू, रामनगर के तीन दिन के नवजात और एक वृद्ध समेत पांच लोगों की मौत भी हो गई। इस भयावह हालात के बावजूद हम सतर्क नहीं हो रहे। संक्रमण के लिहाज से सबसे अधिक संवेदनशील स्थानों में शामिल जिला अस्पताल, मेडिकल कॉलेज और ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में भी कोविड-19 गाइडलाइन का पालन नहीं हो रहा। कार्रवाई के डर से कुछ गिने-चुने लोग मास्क लगाए नजर भी आ जाते हैं, लेकिन उचित दूरी का तो जैसे किसी को ख्याल ही नहीं रहा।
सड़क से बाजार तक टूट रहे नियम: कोरोना से बचाव को लेकर छह महीने पहले तक अनुशासित रहे लोग अब बढ़े खतरों के बावजूद इस कदर लापरवाह हो चले हैं कि सड़क से बाजार तक नियम टूट रहे हैं। दुकानों पर भीड़ गुत्थमगुत्था है तो सार्वजनिक परिवहन के साधनों में लोग भूसे की तरह भरे जा रहे हैं। रोडवेज बसों में ड्राइवर-कंडक्टर से लेकर अधिकतर यात्री बिना मास्क सफर कर रहे हैं। रेलवे और बस स्टेशनों पर थर्मल स्कैनिग की सुविधा भी दिखावा भर है। जो चाहे जांच कराए, नहीं तो सीधे घर जाए। हालांकि, इन दिनों पुलिस जरूर सक्रिय हुई है और बिना मास्क के बाहर निकलने वालों के बड़े स्तर पर चालान कर रही है। जिले में रोजाना दो से तीन हजार लोगों से जुर्माना वसूला जा रहा है। सैनिटाइजेशन न जागरूकता अभियान: नागरिकों के साथ व्यवस्था में भी लापरवाही हावी है। सरकारी दफ्तरों में न नियमित सैनिटाइजेशन कराया जा रहा है और न वहां आने-जाने वाले लोगों के हाथ धुलने का कोई इंतजाम है। कलेक्ट्रेट में स्थापित कोविड हेल्पडेस्क भी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रही। जागरूकता अभियान के लिए गांव-गांव बनी समितियों को कागज पर सक्रिय जरूर कर दिया गया है, लेकिन धरातल पर कहीं उनकी मौजूदगी नहीं दिखती।