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प्रख्यात उर्दू शायर अनवर अहमद हो गए अनवर जलालपुरी

जलालपुर में पैतृक स्थल होने के कारण उन्होंने अपने नाम के आगे जलालपुरी नाम जोड़ा। जिससे कि उनके नाम से साथ उनके कस्बे का भी नाम रोशन रहे।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Tue, 02 Jan 2018 12:34 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jan 2018 12:34 PM (IST)
प्रख्यात उर्दू शायर अनवर अहमद हो गए अनवर जलालपुरी
प्रख्यात उर्दू शायर अनवर अहमद हो गए अनवर जलालपुरी

अंबेडकरनगर (जेएनएन)। उर्दू शायरी में श्रीमद्भगवद्गीता का अनुवाद करने वाले मशहूर शायर अनवर जलालपुरी अंबेडकरनगर जिला के निवासी थे। बचपन से ही वह बेहद प्रतिभाशाली थे। अंबेडकरनगर के जलालपुर कस्बे के रहने वाले अनवर अहमद के नाम में शुरू से ही अपनी प्रतिभा के धनी थे। जलालपुर में पैतृक स्थल होने के कारण उन्होंने अपने नाम के आगे जलालपुरी नाम जोड़ा। जिससे कि उनके नाम से साथ उनके कस्बे का भी नाम रोशन रहे। 

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अनवर अहमद की शुरू से ही किसी भी विषय के तुलनात्मक अध्ययन में खासी दिलचस्पी रही है। दशकों से पूरे हिंदुस्तान व खाड़ी देशों में मुशायरों के संचालन के लिए विख्यात थे। शायरी में अनवर जलालपुरी नाम अख्तियार करने वाली इस शख्सियत को प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रदेश के सर्वोच्च पुरस्कारों में शामिल यश भारती पुरस्कार से नवाजा था।

पत्नी का भी इस काम में था अहम योगदान

अनवर जलालपुरी की पहचान ने नई शक्ल उस समय ली जब उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता को उर्दू शायरी में उतारने का मुश्किल काम किया। उनकी अर्धांगिनी 65 वर्षीया आलिमा खातून चार साल तक चले इस उपक्रम की कदम-कदम की गवाह हैं। रात-रात भर जगकर एक-एक लफ्ज, मिसरे और शेर को सुनकर पहली श्रोता के रूप में यथास्थान उन्होंने तब्दीली भी कराई। उन्होंने उमर खय्याम की 72 रुबाइयों और टैगोर की गीतांजलि का भी इतनी ही आसान जबान में अनुवाद पेश कर दिया। फिलहाल वे गीता के अलावा और किसी पहलू पर बात करने को तैयार नहीं।

एक इंटरव्यू में उन्होंने  कहा था कि दस वर्ष पहले मैंने (जलालपुर में) अपने कॉलेज में कहीं यह बात कह दी थी। किसी चैनल वाले ने इस पर लखनऊ में शियाओं के सबसे बड़े आलिम कल्बे सादिक और सुन्नी आलिम खालिद रशीद, दोनों से राय ली।  दोनों ने कहा कि बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, यह समय की जरूरत है. मुस्लिम इंटेलेक्चुअल्स ने भी ताईद की। मैं तय कर चुका था कि इसे इतना आसान बना दूंगा कि हिंदी और उर्दू वाले, दोनों इसे अपनी ही भाषा का कहें। एक शब्द आया असरार, यानी रहस्य। मुझे लगा हिंदी वालों को समझने में दिक्कत होगी, तो मैंने राज का इस्तेमाल किया। 

सोच थी हिंदू धर्म की किताबें भी पढऩी चाहिए 

अनवर जलालपुरी ने बीए में फॉर्म भरते वक्त अंग्रेजी, उर्दू और अरबी लिटरेचर भर दिया था। यानी अंदर कहीं स्वभाव में यह बात बैठी हुई थी। उन्होंने एक चैनल को दिए गए इंटरव्यू में कहा कहा था कि इस्लाम को पढ़ा तो सोचा कि हिंदू धर्म की किताबें भी पढऩी चाहिए। तो गीता, रामचरितमानस व उपनिषदों के कुछ हिस्से पढ़े। गीता पढ़ते वक्त लगा कि इसमें बहुत-सी बातें ऐसी हैं जो कुरान और पैगंबर के हदीसों में भी हैं। पिछले 150 वर्ष में गीता के 24 तर्जुमे हुए हैं, पर वो जमाना पर्शियनाइज्ड उर्दू का था। मुश्किल से 8-10 किताबें मिल पाईं। सोचा क्यों न मैं इसे जन सामान्य की भाषा में ढाल दूं। लगा कि आसान जबान में इसे हिंदू और मुसलमान, दोनों को पढ़वाया जा सकता है।

जलालपुर कस्बे में हाफिज मोहम्मद हारून के पुत्र के रूप में 6 जुलाई 1947 को जन्मे अनवर जलालपुरी वास्तव में विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। प्राथमिक शिक्षा स्थानीय स्तर पर ग्रहण करने के बाद गोरखपुर विश्वविद्यालय से 1966 में अंग्रेजी अरबी, और उर्दू विषय के साथ स्नातक किया। इसके बाद 1968 में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एमए और अवध विश्व विद्यालय से उर्दू में एमए और दिल्ली के जामिया मिलिया विश्वविधालय  से अदीब कामिल की डिग्री हासिल करने के बाद परूइया आश्रम सहित कई शिक्षण संस्थानों में प्राइवेट शिक्षक के रूप में शिक्षा दी। 

इसके बाद नरेन्द्र देव इंटर कालेज जलालपुर का रुख किया। जहां वह छात्र हुआ करते थे। वहीं अंग्रेजी के प्रवक्ता नियुक्त हुए। तब उनके जीवन में स्थायित्व आया। यहीं से जागृत हुआ  उनके अंदर के अदब का विरवा विशाल वट वृक्ष का रूप लिया। अनवर जलालपुरी के अंदर का साहित्य मेगा सीरियल अकबर द ग्रेट में उभर कर सामने आया जब उन्होने इस प्रख्यात सीरियल के लिए गीत और संवाद लेखन का कार्य 1996 में किया। इसी के साथ हिन्दी फिल्म डेढ इश्किया में नसीरूद्दीन शाह और माधुरी दीक्षित के साथ शायर और मंच संचालक की भूमिका निभा कर शोहरत बटोरी।

शोहरत का यह सिलसिल अनवर जलालपुरी के जीवन के साथ चलता रहा है। बीते 35 वर्ष राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय स्तर पर होने पर कवि सम्मेलन और मुशायरों में अनवर जलालपुरी आवश्यक अंग हुआ करते थे। अरब राष्ट्र के भारतीय दूतावासों में आयोजित मुशायरों का संचालन अनवर जलालपुरी के बिना फीका पड जाता था। उन्होने अपने जीवन के इस सफर में अमेरिका, कनाडा, पाकिस्तान, इग्लैण्ड सहित अरब राष्ट्र में भारतीय मूल के नागरिकों के सहित्यिक सम्मेलनों का संचालन कर अपने देश का नाम ऊंचा किया। 

नरेन्द्रदेव इण्टर कालेज के अंग्रेजी प्रवक्ता के पद से रिटायर होने के बाद लखनऊ में रह रहे इस शायर ने जब पवित्र ग्रंथ गीता का काव्यात्मक अनुवाद उर्दू में किया तो देश के साहित्य जगत में एक नई चर्चा छिड गई। तत्कालीन  मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें यशभारती पुरस्कार देने का एलान करके सिर्फ अनवर जलालपुरी को ही सम्मानित करने का निर्णय नहीं लिया बल्कि भारती साहित्य का सम्मान किया।

इसके पहले अनवर जलालपुरी ने तोश-ए-आखिरत, उर्दू शायरी में गीताजंलि,  उर्दू शायरी में रूबाईयाते खय्याम, जागती आंखे, खुशबी की रिस्तेदारी, खारे पानियों का सिलसिला, रोशनायी के सफीर, अपनी धरती अपने लोग, जरबे लाइलाह, जमाले मोहम्मद, बादअज खुदा, अरफे अब्जद, राहरौ से रहनुमा तक पुस्तके साहित्य जगत को दी है। इसके अलावा अदब के अक्षर, कलम का सफर, और सफीराने अदब से अपनी लेखनी से साहित्य जगत को झकझोरा। अनवर जलालपुरी को अब तक उत्तर प्रदेश गौरव, फिराक सम्मान, माटी रत्न सम्मान सहित दर्जनों सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हो चुके है। उन्होंने सिर्फ साहित्य के क्षेत्र में ही काम किया हो ऐसा नहीं, बल्कि जलालपुर में मिर्जागालिब इंटर कालेज की स्थापना करके शिक्षा की भी लौ जलायी है। जिसके वह ही संस्थापक प्रबंधक थे।


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