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विश्‍व हिंदी दिवस 2022: अंग्रेजी शासन काल में हिंदी ने राष्‍ट्र को एकता के सूत्र में पिरोया था

World Hindi Day 2022 1857 के आंदोलन के दमन को अंग्रेजों ने बंगाल की दो राजधानी बना दी। एक कलकत्ता (अब कोलकाता) और दूसरी राजधानी ढाका (अब बांग्लादेश में) बनी। बंग-भंग आंदोलन का स्वरूप बढऩे पर भाषा की समस्या को समाप्‍त को हिंदी को सर्वमान्य भाषा बनाने पर सहमति बनी।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Mon, 10 Jan 2022 12:40 PM (IST)Updated: Mon, 10 Jan 2022 12:40 PM (IST)
विश्‍व हिंदी दिवस 2022: अंग्रेजी शासन काल में हिंदी ने राष्‍ट्र को एकता के सूत्र में पिरोया था
भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम में महापुरुषों ने हिंदी के उत्‍थान में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। आज विश्‍व हिंदी दिवस है। इस दिन अंग्रेजी शासन काल की बात करना समयोचित है। 1857 के बाद देश में ब्रिटिश हुकूमत का दमन बढ़ता गया। विश्वविद्यालयों, नगर पालिकाओं व समाचार पत्रों पर तमाम प्रतिबंध लगाए गए। इसके विरोध में बंगाल से अहिंसात्मक आंदोलन 'बंग-भंग' की शुरुआत हुई। इस आंदोलन का केंद्र बंगाल था।

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'बेग-भंग' आंदोलन में भाषा की समस्‍या को हिंदी ने दूर किया था

आंदोलन का प्रभाव कम करने के लिए अंग्रेजों ने बंगाल की दो राजधानी बना दी। एक कलकत्ता (अब कोलकाता) और दूसरी राजधानी ढाका (अब बांग्लादेश में) बनी। 'बंग-भंग' आंदोलन का स्वरूप बढऩे पर भाषा की समस्या खड़ी हो गई। ऐसी स्थिति में हिंदी को सर्वमान्य भाषा बनाने पर सहमति बनी। एक मई 1910 को नागरी प्रचारिणी सभा की वाराणसी में बैठक हुई। उसमें हिंदी को समर्पित राष्ट्रीय स्तर की संस्था बनाने का संकल्प लिया गया।

आजादी की लड़ाई में एकजुटता का सशक्‍त माध्‍यम थी हिंदी : आचार्य पृथ्‍वीनाथ

भाषा विज्ञानी आचार्य पृथ्वीनाथ पांडेय के अनुसार आजादी की लड़ाई में भारतीयों को एकजुट करने का सशक्त माध्यम बनी थी हिंदी। क्रांति की अलख जगाने के लिए हिंदी के जरिए देश भर के लोगों को एकजुट किया गया था। इसमें हिंदी साहित्य सम्मेलन की अहम भूमिका रही। नागरी प्रचारिणी सभा ने 10 अक्टूबर 1910 को काशी में पहला हिंदी सम्मेलन का महामना मदनमोहन मालवीय के सभापतित्व में आयोजित किया। सम्मेलन में डा. राजेंद्र प्रसाद, बाबू श्यामसुंदर दास, डा. भगवान दास, हरिऔध, माधव राव सप्रे, गणेश शंकर विद्यार्थी सरीखे अनेक विद्वान शामिल हुए।

भाषाई एकता के लिए हिंदी साहित्‍य सम्‍मेलन की हुई थी स्‍थापना

उन्‍होंने बताया कि यहीं, भाषाई एकता के लिए हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई। महामना अध्यक्ष व पुरुषोत्तम दास टंडन इसके प्रधानमंत्री बनाए गए। महामना ने कहा था कि 'हिंदी सभी भाषाओं में मां का स्वरूप है। भारत की अन्य भाषाएं तेलुगू, तमिल, कन्नड़, मराठी, बांग्ला, भोजपुरी, मैथिली सहित हर भाषाएं उसकी छोटी बहनें हैं।' हिंदी के जरिए देश भर में संवाद स्थापित करने की योजना बनी।

1911 में हिंदी साहित्‍य सम्‍मेलन का प्रयागराज बना मुख्‍यालय

आचार्य पृथ्‍वीनाथ पांडेय के अनुसार 1911 में सम्मेलन का मुख्यालय प्रयागराज में बनाया गया। गोविंद नारायण मिश्र की अध्यक्षता में प्रयागराज में पहला सम्मेलन हुआ। हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री विभूति मिश्र के अनुसार आजादी की लड़ाई में हिंदी के विकास की आवाज हिंदी साहित्य सम्मेलन के जरिए उठती रही। देश को आजादी मिलने के बाद यही राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बन गया। 1919 में हिंदी साहित्य सम्मेलन के संगठन 'राष्ट्रभाषा समिति' का इंदौर में अधिवेशन हुआ। इसमें महात्मा गांधी ने घोषणा किया कि हिंदी ही भारत की राष्ट्र भाषा है।

प्रयाग से मिला विस्तार : लेखक शरदेंदु सौरभ

युवा लेखक शरदेंदु सौरभ कहते हैं कि 10 जनवरी को मनाए जाने वाले विश्व हिंदी दिवस इस भाषा की बढ़ती स्वीकार्यता को दर्शाता है। कहा कि हिंदी के विश्वव्यापी फैलाव को चिरस्थायी रखने में प्रयाग की धरती का अतुलनीय योगदान है। सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', महादेवी वर्मा की रचनाओं से हिंदी का विस्तार विदेश में हुआ। हिंदीविद् प्रो. रूपर्ट स्नेल के शब्दों में, 'हिंदी जिंदगी है, हिंदी जिंदा है, भारत की भाषा है, हिंदी मेरी है, और हिंदी सबकी है।'


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