जहां विराजमान हैं नागों के राजा नागवासुकी
इलाहाबाद : प्रयाग एकमात्र ऐसा स्थल है जहां नागों के राजा नागवासुकी का मंदिर स्थित है। गंगा त
इलाहाबाद : प्रयाग एकमात्र ऐसा स्थल है जहां नागों के राजा नागवासुकी का मंदिर स्थित है। गंगा तट पर स्थित प्राचीन नागवासुकी मंदिर सदियों से हर किसी की आस्था का केंद्र है। श्रावण मास में शिवालयों की तरह नागवासुकी मंदिर में रुद्राभिषेक, महाभिषेक व काल सर्पदोष की शांति का अनुष्ठान चलता है। देश-विदेश के ¨हदू धर्मावलंबी वर्ष पर्यत यहां दर्शन-पूजन को आते हैं। यह मंदिर इनदिनों चर्चा का केंद्र भी बना है। वह चर्चा है देश के दस स्वच्छ प्रतिष्ठित स्थल के रूप में। केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय द्वारा देशभर में कराए गए सर्वे में नागवासुकी मंदिर को प्रमुखता मिली है। इसके बाद मंदिर के जीर्णोद्धार का खाका भी तैयार होने लगा है। कुंभ मेला से पहले मंदिर को नया स्वरूप प्रदान करने की तैयारी चल रही है।
नागवासुकी मंदिर का धार्मिक व पौराणिक महत्व है। पद्म पुराण के पाताल खंड व श्रीमद्भागवत में इसका बखान है। नागवासुकी मंदिर वह स्थल है जहां काल सर्पदोष की शांति का अनुष्ठान तत्काल असर करता है। मंदिर के पुजारी श्यामधर त्रिपाठी बताते हैं कि नागवासुकी की मंदिर अपरंपार है। नागों का राजा होने के बावजूद इनमें अपार सहनशीलता है, जिस समुद्र मंथन में देखा गया। वह बताते हैं कि सतयुग में देवताओं व असुरों के बीच समुद्र मंथन में नागवासुकी को रस्सा के रूप में प्रयोग किया गया था। सुमेरु पर्वत में नागवासुकी को लपेटकर समुद्र का मंथन हुआ था। मंथन के चलते नागवासुकी के शरीर में काफी रगड़ हुई थी। जब मंथन समाप्त हुआ तो उनके शरीर में जलन होने लगी। इस पर वह मंद्राचल पर्वत चले गए। फिर भगवान विष्णु से जलन खत्म करने का उपाय पूंछा। तब भगवान विष्णु ने नागवासुकी को प्रयाग जाने का निर्देश दिया। विष्णु ने कहा था कि 'प्रयाग में सरस्वती नदी बह रही हैं तुम उनका पान करके वहीं कुछ समय विश्राम करना, इससे शांति मिल जाएगी'। नागवासुकी ने ऐसा ही किया। शरीर की जलन समाप्त हो गई।
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द वताओं ने की रुकने की विनती
शरीर की जलन समाप्त होने के बाद नागवासुकी प्रयाग से जाने लगे तो देवताओं ने उनसे यहीं रुकने की विनती की। देवताओं की विनती सुनने के बाद नागवासुकी ने यहां रुकने के लिए दो शर्त रखी।
--पहली शर्त : प्रयाग में आने वाले व्यक्ति को उनका दर्शन करना अनिवार्य होगा। बिना उनके दर्शन के यात्रा व्यर्थ रहेगी।
--दूसरी शर्त : नागपंचमी पर तीनों लोकों में उनका पूजन होना चाहिए। देवताओं ने उनकी दोनों शर्त स्वीकार कर ली, जिसके बाद नागवासुकी प्रयाग में रुक गए। परमपिता ब्रह्मा के मानसपुत्रों ने नागवासुकी को मूर्ति के रूप में स्थापित किया।
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परिक्रमा क्षेत्र में है मंदिर
ज्योतिर्विद आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि प्रयाग में सात प्रमुख तीर्थो में नागवासुकी मंदिर शामिल है। सात तीर्थो में त्रिवेणी यानी संगम, वेणी माधव, सोमेश्वर महादेव, भारद्वाज आश्रम, नागवासुकी, अक्षयवट व शेषनाग का मंदिर है। नागवासुकी मंदिर प्रयाग के परिक्रमा क्षेत्र में है। यह मंदिर त्रिकोणीय व पंचकोसी परिक्रमा के अंतर्गत आता है। बिना नागवासुकी गए प्रयाग की कोई भी परिक्रमा पूर्ण नहीं होती।
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..और बेहोश हो गया औरंगजेब
म गलकाल में अनेक मंदिरों की तरह नागवासुकी को भी क्षति पहुंचाने का प्रयास किया गया। औरंगजेब प्रयाग आया था। वह नागवासुकी मंदिर तोड़ने के लिए गंगा तट पर पहुंचा। कहा जाता है कि औरंगजेब ने जैसे ही नागवासुकी की मूर्ति पर तलवार मारी वैसे सही उनका भव्य स्वरूप प्रकट हो गया। पूरी मूर्ति से पसीना निकलने लगा। नागवासुकी का भव्य स्वरूप देखकर औरंगजेब वहीं बेहोश हो गया। फिर काफी देर बाद उसके सिपाही उसे बेहोशी की हालत में वहां से लेकर लौट गए।
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राजा श्रीधर ने कराया जीर्णोद्धार
स कड़ों साल पहले नागपुर के राजा श्रीधर भोसले ने नागवासुकी मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। उन्होंने नक्कशीदार पत्थरों से मंदिर को बनवाकर उसे भव्यता प्रदान की। इसके बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने 2001 में मंदिर की फर्श व दीवारों को ठीक कराया था।