नवरात्र आज से, घर-घर पूजी जाएंगी मां शक्ति
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : मां शक्ति स्तुति महापर्व चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिप्रदा से नवरात्र एवं भारतीय स
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : मां शक्ति स्तुति महापर्व चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिप्रदा से नवरात्र एवं भारतीय संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक नवसंवत्सर 'विरोधकृत' रविवार से आरंभ हो रहा है। नवमी तिथि का क्षय होने के चलते अबकी नवरात्र आठ दिनों की रहेगी। नवरात्र को लेकर सिद्धपीठ मां अलोपशंकरी, मां ललिता देवी, मां कल्याणीदेवी, खेमा मायी सहित हर देवी मंदिरों की पुष्पपत्तियों व विद्युत झालरों से सजावट की गई है। मइया के दरबार में नवरात्र भर भजन, पूजन, यज्ञ व कीर्तन का दौर चलेगा।
ज्योतिर्विद आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि रामनवमी का व्रत 25 मार्च को रहेगा। जबकि अष्टमी तिथि पर होने वाली निशा पूजा 24 मार्च की रात की जाएगी। रविवार की सुबह 6.02 बजे के बाद घट स्थापित कर मां भगवती के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री स्वरूप का पूजन करना कल्याणकारी रहेगा।
---------
प्रकृति से जोड़ती है नवरात्र
ज्योतिर्विद आशुतोष वाष्र्णेय बताते हैं कि नवरात्रों का ऋतुओं की दृष्टि से विशेष महत्व माना गया है। ऋतु के क्रम में आराधना, उपासना, उपवास आदि करने से मनुष्य को शारीरिक व मानसिक शक्ति मिलती है। वासंतिक एवं शारदीय नवरात्र पर ऋतुओं का भी परिवर्तन होता है, जिसका वातावरण पर असर पड़ता है। इसमें नवचंडी, सहस्त्रचंडी, सतचंडी, लक्ष्यचंडी यज्ञ एवं धार्मिक अनुष्ठान अत्यंत कल्याणकारी होता है, क्योंकि साधक का अध्यात्म के साथ प्रकृति से जुड़ाव भी होता है।
----------
संकल्प ले, स्थापित करें कलश
ज्योतिर्विद आचार्य अविनाश राय बताते हैं कि कलश स्थापना के बिन मां भगवती की उपासना अधूरी रहती है। व्रती साधकों के साथ हर भक्त को पूजन स्थल पर अच्छे कार्य का संकल्प लेकर कलश की स्थापना करनी चाहिए। कलश की स्थापना किसी अच्छे कार्य का संकल्प लेकर करना चाहिए, तभी व्रत पूर्ण होता है। वह बताते हैं कि कलश में संपूर्ण सृष्टि समाहित होती है। इसकी स्थापना मांगलिक, ब्रह्मांड व सृष्टि का प्रतीक है। इसमें ब्रम्हा, विष्णु, महेश, सभी देवताओं चर्तुवेद, जल तत्व तथा पृथ्वी का वास होता है। जबकि कलश पर रखे जाने वाला आम्र पल्लव प्रकृति का प्रतीक है। जबकि शुद्ध मिट्टी पृथ्वी तत्व व अग्नि सोमात्मक तत्व है। सोम औषधियों का स्वामी है और उसी से जीवन है। यह औषधियां आयु वर्धक है इसलिए अग्निसोमात्मक की उपासना की जाती है।
---
इंद्रियों व विचार करें नियंत्रित
नवरात्र में साधकों को इंद्रियों व विचार नियंत्रित रखने की सीख देते हैं। कहते हैं कि व्रत में आचार-व्यवहार शुद्ध होना चाहिए। चोरी, झूठ, क्रोध, ईष्र्या, राग, द्वेष, छल, छद्म आदि से दूर रहने वालों की साधना पूर्ण होती है। बताया कि मां शक्ति की उपासना में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना अनिवार्य होता है। दुर्गा सप्तशती में 13 अध्याय हैं। अगर कोई इसे पूरा नहीं कर सकता तो पंचम और 11 वां अध्याय का पाठ करके मां भगवती की स्तुति करें। यदि साधक नौ दिन का व्रत रखने का समर्थ न हों, तो नवरात्र की प्रतिपदा, सप्तमी, अष्टमी और नवमी में किसी एक या दो दिन का व्रत अपनी श्रद्धा एवं शक्ति के अनुसार रखना चाहिए।
---------------
वास्तु के अनुसार करें आराधना
ज्योतिर्विद आदित्यकीर्ति त्रिपाठी बताते हैं कि महिलाओं को वास्तु अनुसार भगवती का पूजन करना चाहिए। इससे उन्हें पूजा का पूर्ण फल प्राप्त हो सके। नवरात्र में भक्त मां भगवती की प्रतिमा के समक्ष अखंड ज्योति जलाए। अखंड ज्योति के दीपक को वास्तुशास्त्र के अनुसार दक्षिण-पूर्व अग्निकोण में स्थापित करना करें। मां को चढ़ने वाले फूल ताजे और सुगंधित हों। कटे-फटे या किसी प्रकार से दूषित पुष्प न चढ़ाएं। मां की पूजा गीले अथवा फटे-पुराने वस्त्र पहनकर न करें। मां को गूगुल की धूप और लाल गुड़हल के फूलों की माला अर्पण करने से मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं।