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UP Assembly Elections 2022: प्रतापगढ़ में हाबी रही रियासत में मिली सियासत, जानें कारण

UP Assembly Elections 2022 आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले कालाकांकर राजघराने का राजनीति से गहरा नाता रहा है। यह कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। कालाकांकर स्टेट के राजा राम पाल सिंह कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में रहे।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sat, 27 Nov 2021 03:26 PM (IST)Updated: Sat, 27 Nov 2021 03:26 PM (IST)
UP Assembly Elections 2022: प्रतापगढ़ में हाबी रही रियासत में मिली सियासत, जानें कारण
प्रतापगढ़ राजघरानों की राष्ट्रीय स्तर की राजनीति यूपी में ही सिमट कर रह गई।

प्रयागराज, [रमेश त्रिपाठी]। रियासत और सियासत की जुगलबंदी नई नहीं है। एक दौर था, जब प्रतापगढ़ के रजवाड़ों ने देश को विदेश मंत्री और राज्यपाल तक दिए। धीरे-धीरे माहौल बदला और राजघरानों की राष्ट्रीय स्तर की राजनीति यूपी में ही सिमट कर रह गई। कुछ रियासतों की सियासत अब ब्लाक और जिला पंचायत स्तर तक सीमित हो गई है, तो कोई अभी भी लगातार कोशिशें कर रहा है। जिले की राजनीति में कालाकांकर रियासत, प्रतापगढ़ रियासत और भदरी रियासत का दबदबा रहा है।

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पिता की विरासत संभाल रहीं रत्ना

आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले कालाकांकर राजघराने का राजनीति से गहरा नाता रहा है। यह कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। कालाकांकर स्टेट के राजा राम पाल सिंह कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में रहे। राजा दिनेश सिंह वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए थे। कुंडा क्षेत्र उस समय रायबरेली क्षेत्र से जुड़ा था। राजा दिनेश सिंह पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के करीबी रहे। इंदिरा गांधी का करीबी होने के नाते उन्हें केंद्रीय मंत्रीमंडल में भी जगह मिली। कांग्रेस वाली केंद्र सरकार में विदेश मंत्री, वाणिज्य उद्योग, मानव संसाधन विकास मंत्री के साथ अंत में वह बिना विभाग के मंत्री भी रहे। उनके बाद सबसे छोटी पुत्री राजकुमारी रत्ना ङ्क्षसह ने पिता की विरासत संभाली। वह तीन बार प्रतापगढ़ से लोकसभा सदस्य चुनी जा चुकी हैं। मौजूदा समय में वह कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा में सक्रिय हैं।

प्रतापगढ़ किला-संघर्ष कर रहे अनिल

प्रतापगढ़ किले के राजा अजीत प्रताप सिंह वर्ष 1962 में जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुंचे थे। वह तीन बार कांग्रेस से विधायक व यूपी के वनमंत्री भी रहे। इसके बाद उनके पुत्र राजा अभय प्रताप सिंह राजनीति में आए। जनता दल से लोकसभा सदस्य बने। प्रदेश की सियासत के साथ राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में भी प्रतापगढ़ किला का दबदबा रहा। पिता की विरासत संभालने वाले राजा अनिल प्रताप सिंह भी विधानसभा का चुनाव लड़े, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। अब वह भाजपा में संघर्ष कर रहे हैं।

भदरी रियासत को मजबूती दे रहे रघुराज

भदरी राजघराने के राजा राय बजरंग बहादुर सिंह हिमांचल प्रदेश के गर्वनर बने थे। इसके साथ ही वह अवध फ्लाइंग क्लब के संस्थापक रहे। बाद में उस क्लब पर अमौसी एयरपोर्ट बना। बाबा की सियासत को मजबूती से आगे बढ़ाते रघुराज प्रताप सिंह राजभैया वर्ष 1993 में पहली बार निर्दल के रूप में विधान सभा चुनाव लड़े और जीत हासिल की। इसके बाद वह विधानसभा का हर चुनाव जीतते चले गए। प्रदेश की भाजपा व सपा सरकार में वह कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्य कर चुके हैं। निर्दल के रूप में अपनी पारी शुरू करने वाले रघुराज प्रताप सिंह ने अब अपनी स्वयं की पार्टी जनसत्तादल लोकतांत्रिक बना ली है।


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