कुंभ में प्राकृतिक प्रकोप से बेफिक्र प्रशासन
शरद द्विवेदी, इलाहाबाद : प्रयाग कुंभ को लेकर बड़े-बड़े प्रस्ताव बनाए गए हैं। सड़कों के चौड़
शरद द्विवेदी, इलाहाबाद : प्रयाग कुंभ को लेकर बड़े-बड़े प्रस्ताव बनाए गए हैं। सड़कों के चौड़ीकरण, फ्लाईओवर, तीर्थस्थलों का जीर्णोद्धार, घाटों के सौंदर्यीकरण जैसे काम शहर में होने हैं, लेकिन मेला के दौरान बारिश व आंधी जैसी प्राकृतिक आपदा को लेकर प्रशासन अनभिज्ञ है। प्रशासन के पास प्राकृतिक आपदा से निपटने की कोई ठोस तैयारी नहीं है।
कुंभ, अर्द्धकुंभ व माघ मेला के दौरान अक्सर बारिश होने से संगम तट पर बसी तंबुओं की नगरी तबाह हो जाती है। इसके चलते अधिकतर तंबुओं में पानी भर जाता है, कुछ उखड़ जाते हैं, जिससे संत व श्रद्धालुओं को काफी दिक्कत होती है। ऐसी स्थिति में जन-धन की हानि से बचने के लिए प्रशासन का पूरा जोर होता है कि संत व श्रद्धालु अतिशीघ्र मेला क्षेत्र छोड़ दें, क्योंकि उनके पास कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं होती। जबकि संत व श्रद्धालु चाहकर भी मेला क्षेत्र नहीं छोड़ पाते, क्योंकि उन्होंने कल्पवास करने का संकल्प लिया होता है। अतीत को ध्यान में रखें तो बारिश से कुंभ 2019 में दिक्कत उत्पन्न हो सकती है, लेकिन प्लानिंग बनाते समय प्रशासन का ध्यान उस ओर नहीं गया है।
कुंभ मेलाधिकारी विजय किरन आनंद ने बताया कि प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए वाटरप्रूफ टेंट का प्रबंध कराने की तैयारी है। पंचकोसी परिक्रमा मार्ग को दुरुस्त करने, अखाड़ों के आश्रमों के मरम्मत की दिशा में जल्द उचित कदम उठाया जाएगा।
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बारिश से कब पड़ी खलल
-वर्ष 1971 के अर्द्धकुंभ में आंधी-पानी में सैकड़ों शिविर तबाह हो गए थे। जूना व निरंजनी अखाड़ा के शिविरों में घुटने भर पानी भर गया था। प्रशासन ने सबको क्षेत्र से बाहर कर दिया था। इसमें ठंड से दर्जनभर संतों व श्रद्धालुओं की मौत हुई थी।
-वर्ष 1983 के अर्द्धकुंभ में बारिश व आंधी से 125 संतों व श्रद्धालुओं के शिविर बर्बाद हुए थे।
-वर्ष 2007 के अर्द्धकुंभ में भीषण बारिश हुई, जिससे 345 संतों व श्रद्धालुओं के शिविर बर्बाद हुए व छह लोगों की मौत हुई थी।
-वर्ष 2010 में जनवरी के प्रथम सप्ताह में बारिश से मेला तय समय के बाद बसा।
-वर्ष 2013 के कुंभ पर्व में आंधी पानी में 1403 कल्पवासियों व संतों के शिविर तबाह हुए। इससे अखाड़ों को तय समय से पहले मेला क्षेत्र छोड़ना पड़ा।
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क्या होना चाहिए प्रबंध
-तंबू वाटरप्रूफ लगाए जाएं।
-आपदा प्रबंधन के लिए टीम तैनात की जाए।
-अगर टेंट उखड़े तो उसे तत्काल लगाने को टीम नियुक्त हो।
-दारागंज के पंचकोसी परिक्रमा क्षेत्र को व्यवस्थित कर वहां रैन बसेरा व आश्रम बनाए जाएं, जिससे मेला क्षेत्र के श्रद्धालुओं व संतों को वहां रुकवाया जा सके।
-अखाड़ों के आश्रमों की मरम्मत कराना चाहिए, जिससे आपात स्थिति में महंत व नागा संन्यासी वहां रुक सकें।
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कुंभ पर जूना अखाड़ा ने बुलाई निर्णायक बैठक
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : कुंभ मेला की लचर तैयारी को लेकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की नाराजगी झेल रहे प्रशासन के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। देश के सबसे बड़े जूना अखाड़ा ने दो व तीन अप्रैल को प्रयाग में निर्णायक बैठक बुलाई है। इसमें जूना अखाड़ा के सारे वर्तमान व पूर्व पदाधिकारी शामिल होंगे। दो अप्रैल को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की बैठक होने के बाद मौज गिरि मंदिर में जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारियों का जमघट होगा। जूना अखाड़ा के पदाधिकारी तैयारियों की समीक्षा करेंगे, फिर तीन अप्रैल को संगम क्षेत्र में बैठक होगी। बैठक में कुंभ में अखाड़ा में शामिल होने अथवा बहिष्कार करने की घोषणा होगी। जूना अखाड़ा के मुख्य संरक्षक महंत हरि गिरि ने बताया कि कुंभ को लेकर अधिकारियों की कार्यप्रणाली अत्यंत निराशाजनक है। मुख्यमंत्री को प्रस्ताव देने के बावजूद न अखाड़ों के आश्रमों की मरम्मत का काम शुरू हुआ, न बारह माधव मंदिरों का जीर्णोद्धार हुआ। सड़क चौड़ीकरण, प्रयाग की पंचकोसी परिक्रमा, अक्षयवट दर्शन, श्रद्धालुओं के लिए शौचालय, रैन बसेरा की दिशा में कोई ठोस काम नहीं हुआ, जिससे सारे संत-महात्मा आहत हैं। ऐसे अव्यवस्थित कुंभ मेला का हिस्सा जूना अखाड़ा नहीं बनना चाहता, जिसको लेकर कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई है। इसमें जूना अखाड़ा के 52 मौजूदा कार्यकारिणी सदस्यों के अलावा सारे पूर्व अध्यक्ष, महामंत्री, सचिव आदि शामिल होंगे।