मिसाल बना प्रतापगढ़ का यह गांव, उमरी में नीम की छांव और धुआं से ठिठका कोरोना वायरस
ज्योतिषाचार्य पं. शीतला प्रसाद तिवारी इस बात को थोड़ा गर्व के साथ बताते हैं कि हमारे यहां महामारी अब तक नहीं पहुंच पाई है। कहते हैैं कि गांव में लगभग 80 प्रतिशत दरवाजे पर नीम का पेड़ है। लोग उसकी शीतल छांव के नीचे बैठते हैं।
प्रयागराज, जेएनएन। प्रतापगढ़ सदर तहसील के विकास खंड संडवा चंद्रिका की उमरी ग्राम पंचायत में कोरोना वायरस अब तक प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा पाया है। वैसे जिला मुख्यालय से करीब 27 किमी दूर स्थित उमरी के आसपास के गांवों में कोरोना से मौतें हुई हैैं और सैकड़ों लोग संक्रमित हैं, लेकिन ईश कृपा से यहां सब ठीक है। नीम की छांव और हवन का धुआं इसकी सबसे मुख्य वजह माना जा रहा है।
लोगों की जागरूकता से संक्रमण से बचा है गांव
करीब तीन किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस गांव की आबादी लगभग तीन हजार दो सौ की है। लोगों की जागरूकता व पर्यावरण प्रेम व गांव की सुरक्षा का माध्यम कहा जा सकता है। गांव वाले कहते हैैं कि भगवान शंकर के मंदिर पर होने वाली पूजा- पाठ व हवन से अब तक महामारी नहीं फैली। रोजी-रोटी के सिलसिले में विभिन्न महानगरों में रह रहे प्रवासियों को गांव आने पर पहले स्कूल या आंगनबाड़ी केंद्र के साथ अन्य सार्वजनिक स्थानों पर 10 दिन क्वारंटाइन जाता है। उन्हें अकेलापन न महसूस हो इसके लिए मनोरंजन के साधन भी उपलब्ध कराए जाते हैं। गांव के लोग सुबह शाम स्कूल पर इकठ्ठा होकर शारीरिक दूरी के निर्देश का पालन करते हुए गपशप भी करते रहते हैं। इससे परदेशियों का मनोबल बढ़ता है।
महुए का हलवा बढ़ा रहा रहा लोगों की इम्युनिटी
ज्योतिषाचार्य पं. शीतला प्रसाद तिवारी इस बात को थोड़ा गर्व के साथ बताते हैं कि हमारे यहां महामारी अब तक नहीं पहुंच पाई है। कहते हैैं कि गांव में लगभग 80 प्रतिशत दरवाजे पर नीम का पेड़ है। लोग उसकी शीतल छांव के नीचे बैठते हैं। रात में भी सोने के लिए नीम के पेड़ के नीचे ही चारपाई बिछाई जाती है, जिससे शुद्ध हवा मिलती है। संजय मिश्रा बाबा के अनुसार लगभग हर दरवाजे पर शाम को नीम की पत्ती का धुआं किया जाता है। इससे मच्छरों के प्रकोप से बचने में मदद मिलती है। गांव के मंदिर पर सप्ताह में दो बार हवन- पूजन भी चलता रहता है। अब डीह पूजन की तैयारी है। अंबिका प्रसाद मिश्र (60) बताते हैं कि बचपन में डायरिया हैजा की बीमारी फैलती थी। गांव में ही नहीं परिवार के दो दो लोग काल के गाल में समा जाते थे। उस समय सामूहिक रूप से डीह पूजन होता था। चमरौधा नदी के किनारे गांव होने से शुद्ध हवा भी मिल रही है। वह बताते हैं कि इन दिनों महुए के पेड़ में फल आए हैं, जिसे प्रतिदिन दूध में मिलाकर या फिर हलवा बनाकर रोटी के साथ खाया जा रहा है। इससे इम्युनिटी बढ़ती है।
गांव में बनी है अनुशासन समिति
कोरोना के बचाव व उपचार के लिए गांव में बुजुर्गों की अनुशासन समिति बनी है। यह बच्चों से लेकर महिलाओं तक नजर रखती है। घर से बेवजह बाजार जाने पर लोगों को डांट फटकार कर वापस लौटा दिया जाता है। बिना मास्क के किसी को बाहर नहीं निकलने दिया जाता। आमतौर पर लोग सैनिटाइजर की छोटी शीशी जेब में रख कर ही निकलते हैं। समय- समय पर हाथ पैर धोते रहते हैं।
खान पान पर देते हैैं विशेष ध्यान
गांव के लोग खान पान पर भी विशेष ध्यान दे रहे हैं। हरी सब्जी का उपयोग करते हैं। समय पर सब्जी न मिल पाने पर दाल या फिर घर में रखी आलू की सब्जी से ही पेट भर लेते हैं। नियमित काढ़ा के साथ इलाइची की चाय व तुलसी की पत्ती चबा कर अपनी इम्युनिटी बढ़ा रहे हैं।