त्रिजटा स्नान कर लौटने लगे कल्पवासी स्नान, दान का सिलसिला
माघ मेला क्षेत्र में संत व कल्पवासी त्रिजटा का स्नान के बाद सूर्यदेव को जलांजलि अर्पित की और मंत्रोच्चार के बीच पूजन-अर्चन करके घरों को रवाना हुए।
By Nawal MishraEdited By: Published: Fri, 02 Feb 2018 06:13 PM (IST)Updated: Fri, 02 Feb 2018 07:38 PM (IST)
v>इलाहाबाद (जेएनएन)। माघ मेला क्षेत्र में रुके संत व कल्पवासियों ने फाल्गुन कृष्णपक्ष की द्वितीया तिथि पर त्रिजटा का स्नान किया और सूर्यदेव को जलांजलि अर्पित की। इसके बाद मंत्रोच्चार के बीच पूजन-अर्चन करके घरों को रवाना हो गए। हालांकि स्नान-दान का सिलसिला संगम तट पर दोपहर बाद तक जारी रहा। माघ मेला खत्म होने के साथ हा संगम को उदास छोड़ने की सोच बदलने पर चर्चा चलने लगी है। दरअसल कुंभ अब दुनिया की सांस्कृतिक धरोहर है। वैसे तो सरकार कुंभ की ब्रांडिंग में जुटी है लेकिन,माघ मेला खत्म होने के साथ संगम क्षेत्र की रौनक घटने लगी है। यदि संगम क्षेत्र में सुविधा को व्यवस्थित कर दिया जाए तो यह सब कुंभ की ब्रांडिंग के ध्वजवाहक बन जाएंगे।
त्रिजटा स्नान से बढ़ता कल्पवास का पुण्य
त्रिजटा स्नान गंगा, यमुना व सरस्वती के साथ भगवान शिव व सूर्य को समर्पित माना गया है। मान्यता है कि त्रिजटा स्नान करने से कल्पवास का पुण्य बढ़ जाता है। साधक को अश्वमेघ यज्ञ कराने के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है, जिससे उसे सारे मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। मेला क्षेत्र में अभी भी काफी संत व श्रद्धालु रुके हैं, वह संगम में महाशिवरात्रि का स्नान करने के बाद रवाना होंगे।
पूर्वजों से मनौतियां मांगी
चांद्रमास के अनुसार वैसे तो माघी पूर्णिमा पर कल्पवास समाप्त हो जाता है, परंतु कुछ श्रद्धालु प्रतिप्रदा पर यात्रा नहीं करते। वह प्रयाग में रुककर प्रतिप्रदा व द्वितीया तिथि पर स्नान करते हैं। यही कारण है कि माघी पूर्णिमा स्नान पर्व के बाद कुछ संत व श्रद्धालु प्रयाग में रुके थे। उन्होंने संगम, गंगोली शिवाला, ओल्ड जीटी रोड, काली मार्ग, रामघाट आदि गंगा घाटों पर डुबकी लगाकर पूर्वजों व आराध्य का स्मरण कर मनौतियां मांगी। शिविर में ध्यान-पूजन कर पूर्वजों का स्मरण किया। प्रसाद स्वरूप तुलसी का बिरवा व जौ का पौधा लेकर तपस्थली को प्रणाम कर सुखद स्मृतियों के साथ घर की ओर कूच किया।
जानें क्या है त्रिजटा स्नान
शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु के चरणकमल से निकलीं मां गंगा को भगवान शंकर ने अपनी जटाओं में बांध लिया था। वहीं से गंगा तीन धारा में बदल गईं। एक आकाश में रह गई, जिन्हें आकाश गंगा कहते हैं जबकि एक पाताल में चलीं गई और गंगा की एक धारा पृथ्वी पर आयी। फाल्गुन कृष्णपक्ष द्वितीया तिथि पर संगम स्नान से गंगा के तीनों स्वरूपों में डुबकी लगाने का पुण्य प्राप्त होता है। इसी कारण इसे त्रिजटा स्नान कहा जाता है।
दुनिया भर में कुंभ की ब्रांडिंग
हर साल माघ मेला समाप्ति के बाद संगम क्षेत्र लावारिस छोड़ दिया जाता है। उसकी सुध न अधिकारी लेते हैं न नेता और न स्वयंसेवी संस्थाएं, जबकि संगम में प्रतिदिन श्रद्धालु स्नान करने आते हैं। इसमें स्थानीयों के साथ देश-विदेश के श्रद्धालु रहते हैं। यहां आने वाले मन में अच्छी छवि लेकर नहीं लौटते। जगद्गुरु स्वामी महेशाश्रम कहते हैं कि सरकार कुंभ की ब्रांडिंग करने में जुटी है, अगर संगम क्षेत्र की सुंदरता, स्वच्छता, सुरक्षा व प्रकाश की सुविधा कायम रखे तो प्रयाग आने वाले पर्यटकों का संगम से बेहतर जुड़ाव होगा।
सुविधा बनाने से आएंगे पर्यटक : नरेंद्र गिरि
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि का कहना है कि प्रशासन को संगम क्षेत्र की सुंदरता एवं श्रद्धालुओं की सुविधा को लेकर काम करना चाहिए। इससे कुंभ की बड़ी ब्रांडिंग होगी। कुंभ मेलाधिकारी विजय किरन आनंद का कहना है कि जून तक संगम तट की सुंदरता बनाए रखने को हम गंभीर हैं। घाट पर स्वच्छता, प्रकाश, शौचालय व पेयजल का उचित प्रबंध जारी रखा जाएगा, ताकि श्रद्धालुओं को दिक्कत न होने पाए।
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