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ये हैं वेद ज्ञाता पंडित हयात उल्ला चतुर्वेदी, संस्कृत की महिमा बखानी है Prayagraj News

पाच वक्त के नमाजी हयात उल्ला को चारों वेदों का ज्ञान है। इसी वजह से उन्हें वर्ष 1967 में एक राष्ट्रीय सम्मेलन में चतुर्वेदी की उपाधि दी गई।

By Edited By: Published: Wed, 20 Nov 2019 08:56 PM (IST)Updated: Thu, 21 Nov 2019 05:14 PM (IST)
ये हैं वेद ज्ञाता पंडित हयात उल्ला चतुर्वेदी, संस्कृत की महिमा बखानी है Prayagraj News
ये हैं वेद ज्ञाता पंडित हयात उल्ला चतुर्वेदी, संस्कृत की महिमा बखानी है Prayagraj News

प्रयागराज, प्रयागराज। बीएचयू में संस्कृत विषय के लिए असिस्टेंट प्रोफेसर फिरोज खान की नियुक्ति के हो-हल्ले के बीच हयात उल्ला के बारे में पढि़ए। वो हयात उल्ला, जो संस्कृत के साथ-साथ चारों वेदों का ज्ञान होने के कारण पंडित हयात उल्ला चतुर्वेदी नाम से पहचाने गए। वह संस्कृत के प्रचार प्रसार के लिए अमेरिका, नेपाल, मॉरीशस आदि देशों में भी गए। वहां सेमिनारों में संस्कृत की महिमा बखानी।

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फिरोज खान मामले से दुखी हयात उल्ला सेवानिवृत्त होने के बाद अब दूसरे स्कूलों में निश्शुल्क संस्कृत पढ़ा रहे हैं। 78 वर्षीय हयात उल्ला प्रयागराज से कटकर जिला बने कौशांबी के छीता हर्रायपुर के रहने वाले हैं। उनके नाम के आगे पंडित और बाद में चतुर्वेदी लिखा देख और सुनकर लोग चौंक जाते हैं। भले ही कोई चौंके, लेकिन नाम के आगे और पीछे लगी यह उपाधियां उन्हें उनके संस्कृत ज्ञान ने दिलाई। पाच वक्त के नमाजी हयात उल्ला को चारों वेदों का ज्ञान है। इसी वजह से उन्हें वर्ष 1967 में एक राष्ट्रीय सम्मेलन में 'चतुर्वेदी' की उपाधि दी गई। इतना ही नहीं, डीएम रहे अखंड प्रताप सिंह ने उनकी विद्वता से प्रभावित होकर उन्हें पंडित की भी उपाधि दी।

वर्ष 2003 में एमआर शेरवानी इंटर कॉलेज इलाहाबाद (प्रयागराज) से रिटायर पंडित हयात उल्ला चतुर्वेदी ने अर्से तक हिंदी और संस्कृत पढ़ाई। संस्कृत की मौजूदा दशा से वह चिंतित हैं। हिंदी और अंग्रेजी पर भी उनकी वैसी ही पकड़ है जैसी संस्कृत पर। दैनिक जागरण से बातचीत में बताया कि वेद और कुरान एक है। धर्म के ठेकेदारों ने भ्रमित किया है। बीएचयू का ताजा प्रकरण भी चिंता का विषय है।

मदरसे में भी दिया जाना चाहिए संस्कृत ज्ञान

पंडित हयात उल्ला चतुर्वेदी ने कहा कि यदि लोगों को संस्कृत की जानकारी नहीं है तो वह संपूर्ण नहीं हैं। बीएचयू में मुस्लिम शिक्षक की नियुक्ति पर छात्र-छात्राएं पढ़ना ही नहीं चाहते हैं। यह तो संकीर्णता का भाव है। सियासत की वजह से ही ¨हदू-मुस्लिम एक नहीं हो पा रहे हैं। कहा कि अंग्रेजों ने साजिश के तहत भारत से संस्कृत को कमजोर कर अंग्रेजी को बढ़ावा दिया। यह साजिश हमारे नेता नहीं समझ पाए और आज भी अंग्रेजों की नीति पर चल रहे हैं। वह कहते हैं कि प्रदेश के सभी मदरसे में भी संस्कृत का ज्ञान दिया जाना चाहिए। उन्होंने संस्कृत परिचारिका सहित कई किताबें भी लिखी हैं।


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