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आकाशीय सत्‍ता में 13 अप्रैल को होगा परिवर्तन, शनि और राहु-केतु मंत्रीमंडल से रहेंगे बाहर, 'आनंदमय' होगा मंगल का राज

ज्योतिषाचार्य आचार्य अविनाश राय के अनुसार विक्रमी संवत का संबंध प्रकृति खगोल सिद्धांत और ब्रह्मांड के ग्रह व नक्षत्रों से है। भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना को दर्शाती है। इसका वर्णन ब्रह्मांड के सबसे पुरातन ग्रंथ वेदों में है।

By Rajneesh MishraEdited By: Published: Thu, 01 Apr 2021 11:10 AM (IST)Updated: Thu, 01 Apr 2021 03:43 PM (IST)
आकाशीय सत्‍ता में 13 अप्रैल को होगा परिवर्तन, शनि और राहु-केतु मंत्रीमंडल से रहेंगे बाहर, 'आनंदमय' होगा मंगल का राज
13 अप्रैल को आकाशीय सत्ता में बड़ा उलटफेर होने वाला है। सत्ता की चाबी मंगल ग्रह के हाथ रहेगी।

प्रयागराज,जेएनएन। देश के पांच राज्यों में चुनावी सरगर्मी निरंतर बढ़ रही है। सत्ता हथियाने के लिए दावों-वादों, आरोप-प्रत्यारोप का दौर  चरम पर है। कहां-किसको सत्ता मिलेगी वह दो मई को तय होगा।  लेकिन, उसके पहले आकाशीय सत्ता में बड़ा उलटफेर होने वाला है। सत्ता की चाबी मंगल ग्रह के हाथ रहेगी। अबकी मंत्रीमंडल में सिर्फ छह ग्रह मंगल, बुध, चंद्रमा, सूर्य, गुरु व शुक्र शामिल किए गए हैं। शनि व  राहु-केतु मंत्रीमंडल से बाहर रहेंगे। ज्योतिर्विद इस बदलाव को राष्ट्र के लिए कल्याणकारी मान रहे हैं। बताते हैं कि आकाशीय सत्ता का परिवर्तन पृथ्वी को रोग-शोक से मुक्त करेगा। धर्म पर आस्था रखने वालों के लिए आने वाला समय कल्याणकारी माना जा रहा है।

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संवत्‍सर के राजा व मंत्री हैं मंगल

श्रीधर्मज्ञानोपदेश संस्कृत महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि 13 अप्रैल मंगलवार को चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिप्रदा से 'आनंद' नामक नवसंत्सवर का आरंभ होगा। संवत्सर के राजा व मंत्री मंगल हैं। आयुर्वेद चिकित्सा, सेना, किले व मेघ भी मंगल के पास है। जबकि मूल्यवान रत्न, भौतिक सुख-सुविधा के स्वामी शुक्र हैं। अन्न के स्वामी गुरु, फल व नारी शक्ति के स्वामी चंद्रमा बनाए गए हैं। बुध के पास कृषि, सूर्य के पास धन-धान्य, गुरु के पास व्यवसाय, धार्मिक कार्य रहेंगे। रोहिणी नक्षत्र का वास समुद्र में है। आचार्य देवेंद्र प्रसाद बताते हैं कि मंगल अग्नि तत्व के प्रतीक माने जाते हैं। ऐसे में कोरोना संक्रमण की भयावह स्थिति से लोगों को मुक्ति मिल सकती है। भारत की सैन्य शक्ति का विकास होगा। प्राकृतिक आपदा, भूकंप आने की संभावना बनी रहेगी।

सृष्टि की हुई थी संरचना : विद्याकांत

पराशर ज्योतिष संस्थान के निदेशक आचार्य विद्याकांत पांडेय बताते हैं कि ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र मास के प्रथम दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की संरचना की थी। इसी कारण चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिप्रदा को नवसंवत्सर का आरंभ होता है। बताते हैं कि राजा विक्रमादित्य के काल में सबसे पहले पंचांग का चलन शुरू हुआ। भारतीय कैलेंडर की गणना सूर्य और चंद्रमा की चाल पर आधारित होती है। विक्रम संवत से ही 12 महीनों का एक वर्ष और सप्ताह के सात दिनों का प्रचलन माना जाता है। सनातन धर्मावलंबियों के विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश सहित समस्त शुभ कार्य इसी के अनुरूप होता है।

पांच प्रकार के होते हैं संवत्सर

आचार्य विद्याकांत बताते हैं कि विक्रम संवत को नवसंवत्सर भी कहा जाता है। संवत्सर पांच प्रकार का होता है, जिसमें सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास आते हैं। 

वेदों में है वर्णन

ज्योतिषाचार्य आचार्य अविनाश राय के अनुसार विक्रमी संवत का संबंध प्रकृति, खगोल सिद्धांत और ब्रह्मांड के ग्रह व नक्षत्रों से है। भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना को दर्शाती है। इसका वर्णन ब्रह्मांड के सबसे पुरातन ग्रंथ वेदों में है।


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