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Chandra Shekhar Azad Birth anniversary: जिस दरख्त के नीचे राख हुए आजाद उसे भी उखड़वा दिया

Chandra Shekhar Azad Birth anniversary रसूलाबाद घाट पर जिस विशालकाय दरख्त के नीचे उनकी अंत्येष्टि हुई थी। कायर फिरंगियों ने उस दरख्त को भी उखड़वा दिया था।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Thu, 23 Jul 2020 12:25 PM (IST)Updated: Thu, 23 Jul 2020 04:06 PM (IST)
Chandra Shekhar Azad Birth anniversary: जिस दरख्त के नीचे राख हुए आजाद उसे भी उखड़वा दिया
Chandra Shekhar Azad Birth anniversary: जिस दरख्त के नीचे राख हुए आजाद उसे भी उखड़वा दिया

प्रयागराज,  [ गुरुदीप त्रिपाठी ] । Chandra Shekhar Azad Birth anniversary आजादी के आंदोलन में क्रांति की नई परिभाषा गढऩे वाले चंद्रशेखर आजाद क्रांति के दिनों में अक्सर प्रयाग आते थे। 27 फरवरी 1931 को अल्फ्रेड पार्क (अब आजाद पार्क) में फिरंगियों से लड़ते-लड़ते जब पिस्तौल में एक गोली बची तो उन्होंने अपनी कनपटी पर मार ली। काफी देर तक कोई ब्रिटिश अफसर उनके शव के पास नहीं गया। फिर पैर पर गोली मारी गई। मौत की पुष्टि करने के बाद ही अफसर वहां गए। रसूलाबाद घाट पर जिस विशालकाय दरख्त के नीचे उनकी अंत्येष्टि हुई थी, वहां भारतीयों ने पूजा शुरू कर दी। कायर फिरंगियों ने उस दरख्त को भी उखड़वा दिया।

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मध्य प्रदेश में झाबुआ के भाबरा नामक गांव में 23 जुलाई 1906 को सीताराम तिवारी और जगरानी देवी के घर चंद्रशेखर का जन्म हुआ था। अब यह गांव अलीराजपुर जिले का हिस्सा है। आजाद महात्मा गांधी के आह्वान पर शुरू असहयोग आंदोलन में भागीदार बने। उन्हेंं गिरफ्तार कर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। यहां उन्हेंं 14 बेतों की सजा सुनाई गई। बापू ने जब असहयोग आंदोलन को अचानक वापस ले लिया तो आजाद ने अलग राह पकड़ ली और हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) से जुड़ गए। वर्ष 1925 में वह काकोरी कांड में शामिल हुए और 1928 में भगत सिंह के साथ मिलकर एचआरए का पुनर्गठन किया।

मोतीलाल नेहरू से मिलने आते थे आनंद भवन

संगमनगरी से आजाद की काफी यादें जुड़ी हैैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी बताते हैैं कि आजाद अक्सर मोतीलाल नेहरू से मिलने अक्सर आनंद भवन आते थे। वह उनसे मिलने के लिए किसी की साइकिल मांगते थे। मोतीलाल ने गुप्त रूप से आजाद को एचएसआरए के लिए आर्थिक सहायता भी दी थी। फरवरी 1931 में जब आजाद को मोतीलाल नेहरू के निधन की खबर मिली तो वह आखिरी बार आनंद भवन गए थे। इसके कुछ दिनों बाद ही अल्फ्रेड पार्क में वीरगति को प्राप्त हो गए।

हिंदू हॉस्टल था सुरक्षित ठिकाना

इविवि के हिंदू हॉस्टल का कमरा नंबर 11 और 21 आजाद का सुरक्षित ठिकाना था। वह कॉमन हॉल में बैठक करते थे। इस हॉस्टल में 300 से ज्यादा कमरे हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय से चंद कदम की दूरी पर शहीद चंद्रशेखर आजाद का शहीदी स्थल है।

रसूलाबाद घाट पर हुई थी अंत्येष्टि

स्वतंत्रता सेनानी राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि जब उनको आजाद के मृत्यु की खबर मिली तो वह शव लेने पहुंचे। हालांकि, अंग्रेजों ने उन्हेंं शव देने से मना कर दिया। अंतिम संस्कार रसूलाबाद घाट पर किया गया। राजर्षि टंडन ने उनकी अस्थियों को स्वीकार किया।

बमतुल बुखारा से मारी थी गोली

27 फरवरी 1931 की सुबह ब्रिटिश पुलिस को मुखबिर से खबर मिली थी कि आजाद और सुखदेव राज एल्फ्रेड पार्क में हैं। ब्रिटिश इलाहाबाद में पुलिस बल के तत्कालीन अधीक्षक जॉन नॉट बॉवर ने फोर्स के साथ घेरेबंदी की। कई राउंड फायर करने के बाद आजाद ने नॉट बॉवर समेत कई पुलिस अधिकारियों को घायल कर दिया। वह सुखदेव को वहां से भगाने में सफल रहे।

लखनऊ में रखा है महत्वपूर्ण दस्तावेज

चंद्रशेखर आजाद की मौत की कहानी भी उतनी ही रहस्यमयी है जितनी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की। प्रो. तिवारी कहते हैं कि एक गोपनीय फाइल आज भी लखनऊ के सीआइडी ऑफिस में रखी है। इसमें आजाद की मौत से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें दर्ज हैं। तमाम कोशिशों के बाद सरकार ने इसे सार्वजनिक नहीं किया। एक बार भारत सरकार ने इसे नष्ट करने के आदेश भी तत्कालीन मुख्यमंत्री को दिए थे। लेकिन, उन्होंने इस फाइल को नष्ट नहीं कराया। इस फाइल में कथित तौर पर पुलिस अफसर नॉट वावर के बयान दर्ज है। उसने कहा है कि वह उस समय खाना खा रहा था तभी उन्हेंं भारत के एक बड़े नेता ने आजाद के अल्फ्रेड पार्क में होने की जानकारी दी थी। 


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