यादें और सवाल, इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्रा ने कोरोना के माहौल पर लिखी यह पाती, आप भी पढ़िए
न जाने क्यों आज कुछ ज्यादा ही याद आयी विश्वविद्यालय कैंपस की भूगोल विभाग के गार्डेन की घास पर लगी महफ़िल में दोस्तों के बैग से निकलते टिफिन बाक्स की की छीना-झपटी की वो गार्डेन भी क्या हमारी शैतानी बहस पढ़ाई और साहित्यिक चर्चा की कमी को महसूस करता होगा
प्रयागराज, जेएनएन। यादें और सवाल, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में तृतीय वर्ष की स्नातक छात्रा समरोज जहां नूर ने लिखी है यह पाती। उनका यह लेख कोरोना काल में लगातार बंद विश्वविद्यालय की वीरानी पर आधारित है। मौजूदा माहौल में तमाम छात्र-छात्राओं के मन की थाह लेती यह रचना आपको भी भाएगी जरूर।
याद अपने विश्वविद्यालय की
न जाने क्यों आज कुछ ज्यादा ही याद आयी हमारे विश्वविद्यालय के कैंपस की, भूगोल विभाग के गार्डेन की घास पर लगी महफ़िल में दोस्तों के बैग से निकलते टिफिन बाक्स की की छीना-झपटी की, वो गार्डेन भी क्या हमारी शैतानी, बहस, पढ़ाई और साहित्यिक चर्चा की कमी को महसूस करता होगा जैसे हम उसकी कमी को करते हैं...? लाइब्रेरी के बाहर खड़े निराला जी भी सोचते होंगें, ये कैसा निराला जमाना आ गया है? क्या क़िताबें नहीं रहीं जो लोग अब पढ़ने नहीं आते ? प्रेमचंद जी भी तन्हा गेट को निहारते होंगे के शायद कोई आ जाए... महामना मालवीय जी जो कुछ वक़्त पहले ही हमारे यहां आए हैं वो भी क्या सोचते होंगे कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पठन-पाठन ही नहीं होता !
चिंता उन श्वानों की भी
वो जो बेजुबान कुत्तों का झुंड हमारे टिफिन खोलते ही दौड़ पड़ता था अब उन्हें खाना कौन देता होगा ? सुंदर फूलों की सुंदरता का बखान करने वाला और आश्चर्य करने वाला भी कोई न होगा ! क्या मुस्कुरा के खिलते होंगे वो फूल या वक़्त की मार ने उन्हें भी रुलाया होगा ? पेड़ों की घनी छांव और शीतल हवा सदाएं देकर थक गई होंगी लेकिन कोई बच्चा आंखों में सपने लिए उनके तले बैठ कहां पढ़ता होगा! अब बरगद के साए में किताबों के पन्ने नहीं बस पत्तियां फड़फड़ाती होंगी....!
FCI भवन में अब दोस्ती की किलकारियां सीढ़ियां नहीं चढ़ती होंगी, ब्लैक बोर्ड चॉक के लिए और व्हाइट बोर्ड मार्कर के लिए तरस्ते होंगे ! क्लासरूम छात्र-छात्राओं और अध्यापकों के बिना कितना बीरान होगा? क्या अंग्रेजी विभाग की सीढ़ियों और Psychology department के वाटर कूलर को भी हम याद होंगे? क्या इतिहास विभाग इस ऐतिहासिक घटना को अपने पन्नों पर लिख रहा होगा? क्या अर्थशास्त्र विभाग ने ठप पड़े काम से हुए घाटे का हिसाब लगाया होगा? संस्कृत विभाग के छोटे से कमल वाले तालाब का पानी सूख तो नहीं गया होगा? सीनेट हाल मेमोरियल लेक्चर की याद में जी रहा होगा। संगीत विभाग में चिड़ियों के संगीत तो होंगे ना?
बगैर पढ़ाई के कैसा लगता होगा शिक्षा शास्त्र विभाग
शिक्षा शास्त्र विभाग बगैर पढ़ाई के कैसा लगता होगा ? राजनीतिक विज्ञान विभाग को क्या राजनीति और विज्ञान में से किसी पर भी भरोसा बचा होगा ? अरबी विभाग की ढ़ाल वाली इमारत के ढ़ालनुमा होने की वज़ह ढ़ूंढ़ने वाला कोई उत्सुक दिल नहीं होगा ! कला विभाग के पास वो भैंस को देख असली और प्रतिमा में क्या कोई भ्रमित होने आता होगा? उर्दू और हिंदी विभाग अपने आगोश में पलते नये क़लमकारों के बिना कितना सूना होगा! समाजशास्त्र विभाग को क्या समाज के हालात की ख़बर होगी?
विश्वविद्यालय की ऊंची-ऊंची इमारतों की अलग-अलग छोर से अब तस्वीरें कौन उतारता होगा ? मीनार पर लगी वो बंद घड़ी भी इस घड़ी पर तरस खाती होगी। कैंपस भी खुद से सवाल करता होगा क्या? उसे जवाब मिलता होगा या वो भी 'नूर' की तरह सवालों में उलझकर रह जाता होगा..... !
~समरोज जहां 'नूर'