लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा आदिवासियों के हुनर का जादू
एनसीजेडसीसी में चल रहे 12 दिवसीय आदिवासी महोत्सव में लद्दाख से लेकर कन्याकुमारी और अरुणाचल से लेकर महाराष्ट्र तक जनजातीय उत्पादों का प्रदर्शनी नगरवासियों के आकर्षण का केंद्र बनी है।
By Edited By: Published: Tue, 08 Jan 2019 06:45 AM (IST)Updated: Tue, 08 Jan 2019 06:45 AM (IST)
प्रयागराज : उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र में आयोजित 'आदि महोत्सव' में देश के विभिन्न हिस्सों के आदिवासियों के हुनर का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। यहां शिल्प, संस्कृति और व्यंजनों में देश की सांस्कृतिक विरासत देखने को मिल रही है। केंद्रीय जनजाति मंत्रालय एवं भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन संघ (ट्राइफेड) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में 200 कलाकार जनजातीय सभ्यता और संस्कृति का प्रदर्शन कर रहे हैं।
जनजातीय उत्पादों की प्रदर्शनी आकर्षण का केंद्र
एनसीजेडसीसी में चल रहे 12 दिवसीय आदिवासी महोत्सव में लद्दाख से लेकर कन्याकुमारी और अरुणाचल से लेकर महाराष्ट्र तक जनजातीय उत्पादों का प्रदर्शनी नगरवासियों के आकर्षण का केंद्र बनी है। केंद्र में लद्दाख की पश्मीना की शाल, स्कार्फ, स्वेटर, दस्ताने आदि प्रमुख रूप से उपलब्ध हैं। पहाड़ी बकरियों के बाल से बनने वाले ऊन के विशेष उत्पादों लोगों की प्राथमिकता में है। लद्दाख में बोध जनजाति 'ढोलमा' दस्तकारी से जुड़े कार्य करती है। राजस्थान की भील जनजाति द्वारा तैयार विभिन्न प्रकार के बर्तन खाद्य एवं पेय पदार्थो को ठंडा रखने के लिए विशेष रूप तैयार सैंड स्टोन से बने बर्तन भी उपलब्ध कराए गए हैं।
हाबूर पत्थर के बर्तन में दूध से दही बनने का गुण
विनीता ने बताया कि जैसलमेर मे मिलने वाले 'हाबूर' पत्थर बने बर्तन में दूध से सीधे दही बनने गुण हैं। मणिपुर के उखरूल गांव के लौगपई पत्थर से बनने वाली ब्लैक पॉटरी अपनी सुंदर बनावट के कारण खासी चर्चित है। इसकी विशेषता है कि यह खाने में कुदरती सोंधी महक बिखेर देती है। एक हजार डिग्री सेल्सियस पर पकाने के बाद तैयार बरतन लोगों को खासे पसंद आ रहे हैं। राजस्थान की बेहद बारीक मिनियेचर पेंटिंग का प्रदर्शन प्राकृतिक से करीबी दर्शा रहा है।
जनजातीय उत्पादों की प्रदर्शनी आकर्षण का केंद्र
एनसीजेडसीसी में चल रहे 12 दिवसीय आदिवासी महोत्सव में लद्दाख से लेकर कन्याकुमारी और अरुणाचल से लेकर महाराष्ट्र तक जनजातीय उत्पादों का प्रदर्शनी नगरवासियों के आकर्षण का केंद्र बनी है। केंद्र में लद्दाख की पश्मीना की शाल, स्कार्फ, स्वेटर, दस्ताने आदि प्रमुख रूप से उपलब्ध हैं। पहाड़ी बकरियों के बाल से बनने वाले ऊन के विशेष उत्पादों लोगों की प्राथमिकता में है। लद्दाख में बोध जनजाति 'ढोलमा' दस्तकारी से जुड़े कार्य करती है। राजस्थान की भील जनजाति द्वारा तैयार विभिन्न प्रकार के बर्तन खाद्य एवं पेय पदार्थो को ठंडा रखने के लिए विशेष रूप तैयार सैंड स्टोन से बने बर्तन भी उपलब्ध कराए गए हैं।
हाबूर पत्थर के बर्तन में दूध से दही बनने का गुण
विनीता ने बताया कि जैसलमेर मे मिलने वाले 'हाबूर' पत्थर बने बर्तन में दूध से सीधे दही बनने गुण हैं। मणिपुर के उखरूल गांव के लौगपई पत्थर से बनने वाली ब्लैक पॉटरी अपनी सुंदर बनावट के कारण खासी चर्चित है। इसकी विशेषता है कि यह खाने में कुदरती सोंधी महक बिखेर देती है। एक हजार डिग्री सेल्सियस पर पकाने के बाद तैयार बरतन लोगों को खासे पसंद आ रहे हैं। राजस्थान की बेहद बारीक मिनियेचर पेंटिंग का प्रदर्शन प्राकृतिक से करीबी दर्शा रहा है।
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