Swami Vivekananda Birth Anniversary: स्वामी विवेकानंद ने कहा था- 'कालचक्र घूमेगा...सबको मिलेगा अक्षयवट का दर्शन'
Vivekananda स्वामी विवेकानंद 21 दिसंबर 1889 को संगमनगरी आए थे और 17 जनवरी 1890 तक रुके थे। शहर में रामकृष्ण मिशन की स्थापना का ख्याल इसी प्रवास के दौरान उनके मन में आया था। वह प्रतिदिन पैदल संगम स्नान करने जाते थे।
प्रयागराज,जेएनएन। दुनिया में सनातन संस्कृति का परचम लहराने वाले स्वामी विवेकानंद का संगमनगरी से भी आत्मीय नाता था। यमुना तीरे ऐतिहासिक किले में कैद अक्षयवट के लिए उन्होंने बहुत पहले ही यह भविष्यवाणी कर दी थी कि एक दिन सब इसका दर्शन कर सकेंगे। यह भविष्यवाणी जनवरी 2019 कुंभ के दौरान फलीभूत हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झूंसी में हुई जनसभा में अक्षय वट सबके लिए खोले जाने की घोषणा की।
विवेकानंद की विद्वता से प्रभावित होकर अंग्रेज अफसर ने करवाया था अक्षयवट का दर्शन
स्वामी विवेकानंद 21 दिसंबर 1889 को संगमनगरी आए थे और 17 जनवरी 1890 तक रुके थे। शहर में रामकृष्ण मिशन की स्थापना का ख्याल इसी प्रवास के दौरान उनके मन में आया था। वह प्रतिदिन पैदल संगम स्नान करने जाते थे। किले में बंद अक्षयवट का दर्शन भी किया था। उनकी विद्वता से प्रभावित एक अंग्रेज अफसर खुद उन्हेंं दर्शन कराने लेकर गया था। स्वामी विवेकानंद वहां 35 मिनट तक ध्यान लगाए बैठे रहे। वहां से लौटकर संतों के बीच भविष्यवाणी की कि 'कालचक्र घूमेगा, दिन बदलेगा और अक्षयवट का दर्शन सबको मिलेगा..., लेकिन इंतजार करना होगा, क्योंकि इंतजार अभी बाकी है...लेकिन इंतजार खत्म होगा...।'
रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम के अध्यक्ष स्वामी अक्षयानंद बताते हैं कि स्वामी विवेकानंद प्रयागराज प्रवास के दौरान नियमित रूप से संगम स्नान करते थे। उन्होंने अक्षयवट, भगवान वेणीमाधव व मां अलोपशंकरी का दर्शन-पूजन किया था। साहित्यिक चिंतक प्रो. एमसी चट्टोपाध्याय कहते हैैं कि स्वामी विवेकानंद का अधिकतर समय संतों के बीच बीतता था। एक दिन किले के पास से गुजर रहे थे वहां अंग्रेज अफसर ने उन्हें रोकने का प्रयास किया। विवेकानंद से उसकी 15 मिनट वार्तालाप हुई। वह अफसर विवेकानंद की विद्वता से प्रभावित हुआ। तब विवेकानंद ने अक्षयवट व सरस्वती कूप दर्शन की इच्छा जताई, इस पर उसने गेट खुलवा दिया। उस समय अक्षयवट बड़ी-बड़ी झाडिय़ों से घिरा था। उसके बाद पुन: अक्षयवट का द्वार बंद हो गया।
सरस्वती पत्रिका के सह संपादक अनुपम परिहार बताते हैं कि देश को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिलने के बाद तंत्र-शास्त्र के विद्वान देवीदत्त शुक्ल की प्रेरणा से उनके शिष्य न्यायमूर्ति शिवनाथ काटजू ने 1950 में किले में बंद अक्षयवट की खोज की। चंडी पत्रिका में लेख छपे, तब आम लोगों को इसकी जानकारी मिल सकी। स्वामी विवेकानंद के गुरुभाई स्वामी विज्ञानानंद इंजीनियर थे। उन्होंने स्वामी विवेकानंद की प्रेरणा से संगमनगरी में रामकृष्ण मिशन मठ की स्थापना कराई थी। मठ का नक्शा विज्ञानानंद ने बनाया था। स्वामी विवेकानंद की स्वीकृत मिलने पर नक्शे के अनुरूप 1910 में रामकृष्ण मिशन मठ की स्थापना हुई। अब यह रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम युवाओं को ध्यान और ज्ञान की सनातनी परंपरा से जोड़ रहा है। विद्याॢथयों को वैदिक के साथ अंग्रेजी व कंप्यूटर का ज्ञान दिया जाता है।