प्रयागराज में रामकथा शुरू, बोले स्वामी महेशानंद-श्रीराम सदाचार की प्रतिमूर्ति हैं
स्वामी महेशानंद ने कहा कि सामान्य रूप से भी विचार करने पर श्रीराम विग्रहवान् धर्म हैं। लंका सोने की बनी हुई है किष्किंधा में कामी वानर रहता है और जनकपुर में सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी विदेह जनक का निवास है। इस दृष्टि से भी र्म अर्थ काम मोक्ष के प्रतीक हैं।
प्रयागराज, जेएनएन। अरैल स्थित दंडी स्वामी आश्रम में रविवार की सुबह श्रीराम कथा की शुरुआत हुई। सनातन ज्ञान पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी महेशाश्रम ने भक्तों के समक्ष श्रीराम की महिमा का बखान किया। उन्होंने कहा कि श्रीराम सदाचार की प्रतिमूर्ति हैं। श्रीरामचरित मानस में गोस्वामीजी ने श्रीराम की अयोध्या को धर्म, स्वर्णमयी लंका को अर्थ,वानरों की किष्किंधा को काम और विदेह जनक के जनकपुर को मोक्ष प्रधान दर्शाया है। इन सभी की इससे संबद्ध पुरावृत्तात्मक स्वरूप चेतना है।
स्वामी महेशानंद ने कहा कि सामान्य रूप से भी विचार करने पर श्रीराम विग्रहवान् धर्म हैं। लंका सोने की बनी हुई है, किष्किंधा में कामी वानर रहता है और जनकपुर में सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी विदेह जनक का निवास है। इस दृष्टि से भी चारों क्रमशः धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के प्रतीक हैं। श्रीरामचरित इन चारों स्थानों से संबद्ध है। स्वामी महेशाश्रम कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने अपनी उपस्थिति से पुरुषार्थ चतुष्टय को पवित्र कर दिया।
उन्होंने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी धनुष यज्ञ के प्रसंग में लिखते हैं कि महाराज विदेह जनक श्रीराम के मधुर मनोहर रूप को देखकर सुध-बुध से रहित हो गए। पुनः धैर्य धारण कर मुनि विश्वामित्र के चरणों में सीस नवाते हुए पूछते हैं कि ये दोनों बालक मुनिकुल के आभूषण हैं या किसी राजवंश के पालक? अथवा जिसका वेदों ने नेति कहकर गान किया है कहीं वह ब्रह्म तो युगल रूप धरकर नहीं आया है। मै इन्हें देखकर असाधारण रूप से प्रेमाभिभूत हो गया हूं। मेरे मन ने जबर्दस्ती ब्रह्म सुख का परित्याग कर दिया है। मुनि ने कहा ये आपके लिए ही नहीं, संपूर्ण प्राणी जगत् के लिए प्रिय हैं। विश्वामित्र परिचय देते हैं कि स्वामी महेशाश्रम ने कहा कि ये दोनों महाराज दशरथ के पुत्र हैं। ये रूप, शील और बल के धाम हैं।