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Subhash Chandra Bose ने आज ही के दिन प्रयागराज में अपने सहपाठी को भेजा था पत्र, जानिए पत्र में लिखा क्‍या था

इतिहासकार प्रो. हेरंब चतुर्वेदी बताते हैं कि क्षेत्रेश चंद्र चट्टोपाध्याय और सुभाष चंद्र बोस काफी घनिष्ठ मित्र थे। 1920 व 21 में कैंब्रिज एवं आक्सफोर्ड से बोस ने चट्टोपाध्याय को लिखे विभिन्न पत्रों में राजनीति तथा संस्कृति पर प्रकाश डाला था। बोस ने पत्र 12 फरवरी 1921 को लिखा था।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Fri, 12 Feb 2021 08:36 AM (IST)Updated: Fri, 12 Feb 2021 08:36 AM (IST)
Subhash Chandra Bose ने आज ही के दिन प्रयागराज में अपने सहपाठी को भेजा था पत्र, जानिए पत्र में लिखा क्‍या था
क्षेत्रेश चंद्र चट्टोपाध्याय और सुभाष चंद्र बोस काफी घनिष्ठ मित्र थे। वे प्रयागराज में पढ़ाई करने आए थे।

प्रयागराज, जेएनएन। आजादी के पहले इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में बंगाल से काफी संख्या में लोग यहां आए थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की ख्याति बढऩे की वजह से विभिन्न प्रांतों से छात्रों ने यहां आकर दाखिला लिया था। इन्हीं में एक थे क्षेत्रेश चंद्र चट्टोपाध्याय थे। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक की शिक्षा ग्रहण करने आए थे। प्रेसीडेंसी कालेज में 1913 में इंटर करने के दौरान चट्टोपाध्याय और सुभाष चंद्र बोस सहपाठी बने। इनकी निकटता हमेशा बनी रही। कैंब्रिज और आक्सफोर्ड में पढ़ाई के दौरान सुभाष चंद्र बोस प्रयागराज पढऩे आ गए। अपने सहपाठी चट्टोपाध्याय से संवाद बनाए रखा। वे उन्हें पत्र लिखते थे। बोस ने एक पत्र 12 फरवरी 1921 को लिखा था। इस पत्र मे उन्होंने असहयोग आंदोलन का उल्लेख किया था।

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राजनीति एवं संस्कृति पर डाला था प्रकाश

इतिहासकार प्रो. हेरंब चतुर्वेदी बताते हैं कि क्षेत्रेश चंद्र चट्टोपाध्याय और सुभाष चंद्र बोस काफी घनिष्ठ मित्र थे। 1920 व 21 में कैंब्रिज एवं आक्सफोर्ड से बोस ने चट्टोपाध्याय को लिखे विभिन्न पत्रों में राजनीति तथा संस्कृति पर प्रकाश डाला था। बोस ने एक पत्र 12 फरवरी 1921 को लिखा था। इस पत्र में उल्लेख किया था कि ...साधारण अंग्रेज युवक भारत के बारे में बहुत अधिक नहीं जानता है। वह जानता है कि अंग्रेज एक महान जाति है। भारतवासियों को सभ्य बनाने के लिए अपनी हानि सहकर भी अंग्रेज भारत गए हैं। इस धारणा के लिए हजारों एंग्लो-इंडियन अफसर एवं पादरी लोग जिम्मेदार हैं। क्रिश्चियन मिशनरी हमारी संस्कृति की महान शत्रु है। यह बात मैंने इस देश में आकर समझी...।

सुभाष चंद्र बोस ने गांधीजी को समय की उपज बताया था

प्रो. हेरंब चतुर्वेदी बताते हैं कि सुभाष चंद्र बोस ने अपने पत्र में गांधी जी को अपने समय की उपज बताया था। असहयोग आंदोलन को लेकर उन्होंने लिखा था कि गांधी जी यदि ना होते तो कोई दूसरा व्यक्ति इस मंत्र का प्रचार करता। मैं वैसे से भी नहीं कहता कि गांधी जी के आदेश के कारण असहयोग आंदोलन का वरण करना उचित है। प्रत्येक को स्वचिंतन के बल पर कर्तव्य निश्चित करना चाहिए। यदि कोई यह निश्चित करता है कि असहयोग ही प्रकृष्ट उपाय है तो उसे तदनुरूप ही कार्य करना चाहिए। मेरी समझ में असहयोग आंदोलन हमारे देश मेें छात्र और जनसाधारण के बीच अधिक बलवान होगा क्योंकि वे ही त्याग स्वीकार कर पाएंगे।


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