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रन बहादुर का नदी किनारे यह किला जहां बनती थी अंग्रेजों के विरोध की रणनीति, पढ़िए प्रतापगढ़ के क्रांतिवीर की गाथा

रन बहादुर के दिल में अंग्रेजों के प्रति गहरा आक्रोश था। उन्होंने अंग्रेजों को धूल चटाने के लिए गरीब किसान मजदूर की एक टोली तैयार की थी। उसके द्वारा गांव-गांव अंग्रेज शासन के खिलाफ पर्चे बांटे जाते थे। रात में बैठक करके आंदोलन की रणनीति तय की जाती थी।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Thu, 11 Aug 2022 01:06 PM (IST)Updated: Thu, 11 Aug 2022 01:06 PM (IST)
रन बहादुर का नदी किनारे यह किला जहां बनती थी अंग्रेजों के विरोध की रणनीति, पढ़िए प्रतापगढ़ के क्रांतिवीर की गाथा
देखरेख न होने से यह किला वीरान, धीरे-धीरे अस्तित्व खोता जा रहा है अस्तित्व

प्रयागराज, जेएनएन। आजादी की लड़ाई में प्रतापगढ़ के संडवा चंद्रिका का रन बहादुर का किला भी अग्रणी भूमिका में होता था। अंग्रेज शासन द्वारा किसानों पर लगाए गए कर (Tax) की प्रतियां जलाकर रन बहादुर ने अंग्रेजों से लोहा लिया था। इसके बदले उन्हें यातनाएं भी झेलनी पड़ीं, लेकिन वह झुके नहीं। आजादी मिलने के बाद इस स्थल को सरकारों ने संवारा नहीं। इस कारण यह धीरे-धीरे खंडहर की शक्ल लेता जा रहा है।

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किसानों पर थोपे गए टैक्स के फरमान की प्रतियों को जलाकर किया था विरोध

रन बहादुर के दिल में अंग्रेजों के प्रति गहरा आक्रोश था। उन्होंने अंग्रेजों को धूल चटाने के लिए गरीब, किसान, मजदूर की एक टोली तैयार की थी। उसके द्वारा गांव-गांव अंग्रेज शासन के खिलाफ पर्चे बांटे जाते थे। रात में बैठक करके आंदोलन की रणनीति तय की जाती थी। रन बहादुर के नाम से ही दांदूपुर रन सिंह ग्राम पंचायत का नामकरण किया गया था। रन बहादुर गांव के जमींदार थे। सई नदी के तट पर उनका किला बना हुआ था। वहां गरीब-दुखियों की मदद की जाती थी। विवाद होने पर रन बहादुर के पंचायत में मामला सुलटाया जाता था। उन्हीं की कोर्ट अंतिम कोर्ट मानी जाती थी। यहां जो फैसला हो जाता था, सभी उसको मानने के लिए बाध्य थे।

यह परिवार अंग्रेज शासन के समक्ष कभी नहीं झुका। बुजुर्ग बताते हैं कि अंग्रेजों द्वारा किसानों से कर की वसूली की जाती थी। इसका यह विरोध करते थे। इनका परिवार सदैव अंग्रेजों से लोहा लेता था। परिवार के कुछ लोग दांदूपुर रनसिंह से हंडौर के पास गहरी में जाकर बस गए। रनबहादुर के नाती ने आइएफएस में नौकरी की तो वह भी भोपाल में बस गए। परिवार के लाल आदित्य प्रताप सिंह दांदूपुर रन सिंह में रह गए। अब उनका परिवार मुश्किल दौर से गुजर रहा है।

किले में था राधा-कृष्ण का मंदिर

दांदूपुर रन सिंह के किले में राधा-कृष्ण व शिव मंदिर था। 1970 में सई नदी में आई बाढ़ से शंकर मंदिर डूब गया। बाद में गांव के लोगों ने सामूहिक सहयोग से शंकर जी का तारकेश्वर नाथ मंदिर का निर्माण कराया। जहां मंदिर है वहां करीब एक किलोमीटर दूरी तक सई नदी पूरब से पश्चिम की ओर बहती हैं। यह राज आज तक कोई जान न सका।

जानिए क्या बताते हैं पुराने लोग

किले में भूखे को भोजन व गरीबों को न्याय मिलता था। किले के आस पास नदी के किनारे सैकड़ों बीघे जमीन वीरान है। उस पर वन विभाग द्वारा पौधे लगवाकर हरियाली लाई जा सकती है।

-शिव कुमार सिंह

किले व मंदिर तक पिच रोड का निर्माण करके इसे ऐतिहासिक स्थल के रुप में विकसित किया जा सकता है। वीरान किले को सरकार चाहे तो स्वतंत्रता स्मारक बना सकती है।

-लाल संतोष सिंह


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