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प्रतापगढ़ में खिलाडि़यों को तरासने वाले 'द्रोणाचार्य' आर्थिक संकट में, जैसे-तैसे गुजर बसर कर रहे द्रोणाचार्य

कोरोना वायरस लॉकडाउन के बाद प्रतापगढ़ के कोचों का रिन्यूअल नहीं हुआ। 25 मार्च से स्‍टेडियम बंद है और स्टेडियम में प्रशिक्षण कैंप भी नहीं चल रहा। कोच आर्थिक संकट में हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Fri, 21 Aug 2020 05:59 PM (IST)Updated: Fri, 21 Aug 2020 05:59 PM (IST)
प्रतापगढ़ में खिलाडि़यों को तरासने वाले 'द्रोणाचार्य' आर्थिक संकट में, जैसे-तैसे गुजर बसर कर रहे द्रोणाचार्य
प्रतापगढ़ में खिलाडि़यों को तरासने वाले 'द्रोणाचार्य' आर्थिक संकट में, जैसे-तैसे गुजर बसर कर रहे द्रोणाचार्य

प्रयागराज, जेएनएन। जिन खिलाडिय़ों को तराशकर देश व प्रदेश में जिले का नाम रोशन कराया, वही द्रोणाचार्य इन दिनों आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन लगा। अब लॉकडाउन के बाद रिन्यूअल न होने से वह किसी तरह गुजर बसर कर रहे हैं। यह हाल है पड़ोसी जनपद प्रतापगढ़ का। स्‍टेडियम बंद है और प्रशिक्षण भी नहीं हो रहा है। ऐसे में कोच बेहद परेशान हैं।

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स्‍टेडियम में खिलाडि़यों को प्रशिक्षित करने के लिए संविदा पर हैं कोच

जिले में एक मात्र स्टेडियम शहर के मीराभवन मोहल्ले में करीब तीन दशक पहले बना था। इस स्टेडियम में क्रिकेट, वालीबाल, एथलीट, हैंडबाल, फुटबाल, हाकी, तलवारबाजी कैंप लगता रहा है। खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण देने के लिए संविदा पर आदित्य शुक्ला क्रिकेट, अजय सिंह तलवारबाजी, मनोज पाल एथलीट, विनोद यादव कुश्ती, निशा फुटबाल, बबिता हैंडबाल, संजय यादव हाकी के कोच रखे गए थे। इनमें से भारतीय खेल प्राधिकरण से ट्रेङ्क्षनग लेने वाले अजय सिंह, मनोज पाल व संजय यादव को हर महीने 25 हजार रुपये, जबकि अन्य कोच को 20 हजार रुपये मानदेय मिलता था।

लॉकडाउन घोषित होने के साथ ही स्‍टेडियम में लटका ताला

इस मानदेय से द्रोणाचार्य यानी कोचों के परिवार का खर्च चल जा रहा था। इस बार इनका कार्यकाल फरवरी तक था, लेकिन इसे मार्च तक बढ़ा दिया गया था। 25 मार्च से लॉकडाउन घोषित हुआ तो स्टेडियम में ताला लटक गया। इसके बाद इन सभी कोच का नवीनीकरण नहीं हुआ। इससे स्टेडियम में प्रशिक्षण कैंप बंद हो गए। ऐसे में कोच निशा व बबिता अपने घर प्रयागराज और विनोद यादव वाराणसी लौट गए। जबकि इस जिले के रहने वाले अन्य कोच अपने-अपने पैतृक गांव में जाकर बस गए। तलवारबाजी कोच अजय ङ्क्षसह, एथलीट कोच मनोज पाल का कहना है कि माता-पिता का सहारा न होता तो दो जून की रोटी के लाले पड़ जाते।


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