...यहां कुछ विद्यालय तो खुलते हैं सिर्फ हाजिरी भरने के लिए
प्रतापगढ़ जनपद के अधिकांश संस्कृत विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में पढ़ाई का हाल ठीक नहीं है। कुछ तो सिर्फ हाजिरी भरने के लिए ही खुलते हैं जबकि मोटी तनख्वाह उठाई जा रही है।
प्रतापगढ़ : वेतन तो लाखों में है लेकिन पठन-पाठन न के बराबर है। और तो और कुछ विद्यालय खुलते हैं सिर्फ हाजिरी भरने के लिए ही। जी हां यह हाल है प्रतापगढ़ जनपद के अधिकांश संस्कृत महाविद्यालयों एवं संस्कृत विद्यालयों का।
यहां पढ़ाने वाले कुल शिक्षकों की सेलरी पर प्रतिमाह 90 लाख रुपये सरकार खर्च कर रही है। देखा जाए तो पठन-पाठन पर इसका प्रभाव ढाक के तीन पात जैसा ही है। संस्कृत स्कूलों से बच्चों की संख्या दिनोंदिन घटती जा रही है। कुछ विद्यालय तो ऐसे हैं जो सिर्फ बच्चों व शिक्षकों की हाजिरी रजिस्टर पर भरे जाने के लिए खुलते हैं। जिले में संस्कृत के एडेड 36 विद्यालय हैं। इन विद्यालयों में कुल 140 शिक्षक, शिक्षिकाओं की तैनाती है। कहीं-कहीं तो महाविद्यालयों के प्रधानाचार्यो का वेतन एक लाख तक है। इन पर सेलरी में शासन 90 लाख रुपये खर्च कर रही है। इसके सापेक्ष विद्यालयों में पढ़ाई नाम मात्र की हो रही है। कुछ ऐसे विद्यालय हैं जहां बच्चों की संख्या काफी कम है।
नियमित रूप से न खुलने के कारण बच्चे का नाम तो रजिस्टर में चलता है लेकिन वह पढऩे नहीं आते। शिक्षक भी स्कूल जाना नहीं चाहते। तत्कालीन डीआइओएस डॉ. ब्रजेश मिश्र के कार्यकाल में कुछ संस्कृत विद्यालयों के निरीक्षण में यह खामियां उजागर हुई थीं। संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी कहा गया है। आज बच्चों में इसके प्रति रुचि कम होती जा रही है। जबकि संस्कृत पढऩे वालों ने अच्छे मुकाम हासिल किए हैं। संस्कृत के विद्वानों की आज भी हर स्थान पर कद्र है। कोई भी कार्यक्रम बिना इनके मंत्रोच्चारण के सफल नहीं हो सकता।
हिंदी में भी संस्कृत के शब्द समाहित :
जो हम हिंदी बोलते हैं उसमें भी संस्कृत के शब्द समाहित हैं। अपने ही देश में हिंदी और संस्कृत की कद्र न होना चिंता का विषय है। यह कहना है जिले के रानीगंज तहसील क्षेत्र के कूराडीह गांव निवासी अवकाश प्राप्त जिला विद्यालय निरीक्षक ब्रजनाथ पांडेय का। उन्होंने कहा कि संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी कहा गया है। जागरण से बातचीत में बड़े गर्व से उन्होंने बताया कि प्रथमा से लेकर शास्त्री एवं आचार्य की शिक्षा ग्रहण करने के बाद वह शिक्षा विभाग में डायट प्राचार्य व जिला विद्यालय निरीक्षक रह कर सेवा किए।
जनसहभागिता से ही होगा उत्थान : डॉ. दिवाकर मिश्र
संस्कृत भाषा का उत्थान तब तक नहीं हो सकता, जब तक हम इसे अपनी दिनचर्या में शामिल नहीं करते। सरकार के द्वारा भी इसके उत्थान के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसमें जनसहभागिता जरूरी है। यह कहना है संस्कृत संस्थान लखनऊ उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद मंडल के भाषा प्रशिक्षक डॉ. दिवाकर मिश्र का। उन्होंने कहा कि शिक्षण विधि को रोचक बना कर संस्कृत भाषा का उत्थान संभव है। संस्कृत के प्रति रुचि तो आत्मा की अनुभूति से ही संभव है। जागरण से बातचीत में उन्होंने कहा कि संस्कृत का अपना एक अलग महत्व है।