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इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने संग्रहालय को सौंपा 'सोल्जर गन', जानिए इसकी खासियत Prayagraj News

108 साल पुराने विभाग का कायाकल्प शुरू किया। सफाई के दौरान स्वतंत्रता संग्राम के समय इस्तेमाल की जाने वाली सोल्जर गन वहां के सफाईकर्मी सैयद अली को मिली।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 04 Feb 2020 07:00 AM (IST)Updated: Tue, 04 Feb 2020 07:51 AM (IST)
इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने संग्रहालय को सौंपा 'सोल्जर गन', जानिए इसकी खासियत Prayagraj News
इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने संग्रहालय को सौंपा 'सोल्जर गन', जानिए इसकी खासियत Prayagraj News

प्रयागराज, जेएनएन। देश में पहली बार आजादी की अलख जगाने वाली 1857 की क्रांति से जुड़ी बहुत सी यादें तमाम स्थानों पर संजोकर रखी गई हैं। ऐसी ही एक ऐतिहासिक धरोहर सोल्जर गन अब आम लोग देख सकेंगे। यह इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) के मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग में तकरीबन 100 साल से रखी थी। विभाग ने यह ऐतिहासिक गन इलाहाबाद संग्रहालय को सौंप दी।

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स्वतंत्रता संग्राम के समय इस्तेमाल होती थी यह गन

चार फरवरी 2018 को इविवि के मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग का अध्यक्ष प्रो. योगेश्वर तिवारी को नियुक्त किया गया। पदभार संभालने के बाद उन्होंने 108 साल पुराने विभाग का कायाकल्प शुरू किया। सफाई के दौरान स्वतंत्रता संग्राम के समय इस्तेमाल की जाने वाली सोल्जर गन वहां के सफाईकर्मी सैयद अली को मिली। इसकी जानकारी सैयद ने प्रो. तिवारी को दी। प्रो. तिवारी ने इलाहाबाद संग्रहालय और इविवि के कुलपति रहे प्रोफेसर रतन लाल हांगलू को पत्र लिखकर जानकारी दी। साथ ही विशेषज्ञों को बुलाकर सोल्जर गन का परीक्षण कराया। विशेषज्ञों ने इसका इतिहास खंगाला तो पता चला कि यह प्राचीन बंदूक है। विभाग ने इसे सुरक्षित रख लिया। प्रो. तिवारी के अध्यक्ष पद का कार्यकाल सोमवार को पूरा हुआ।

गन के साथ दो गोले भी मिले थे

ऐसे में उन्होंने कार्यवाहक कुलपति प्रो. आरआर तिवारी से अनुमति लेकर इलाहाबाद संग्रहालय को सोल्जर गन सौंप दी। इसके अलावा इसके साथ मिले दो गोले भी संग्रहालय को सौंप दिए गए। प्रो. तिवारी ने कला संकाय की डीन प्रो. रंजना बाजपेई की उपस्थिति में ऐतिहासिक धरोहर संग्रहालय के निदेशक डॉ. सुनील गुप्त और उप संग्रहपाल डॉ. ओंकार नाथ वानखेड़े को सौंप दिया। संग्रहालय के निदेशक डॉ. सुनील ने बताया कि प्रयोगशाला में पहले गन को संवारा जाएगा। इसके बाद इसे आम लोगों के देखने के लिए रखा जाएगा। इसके अलावा जल्द ही इस पर शोध कार्य शुरू कर पुस्तक भी प्रकाशित की जाएगी। इस दौरान प्रो. एपी ओझा, प्रो. आलोक मिश्र, प्रो. ललित जोशी, प्रो. हेरंब चतुर्वेदी, डॉ. जेबा नकवी, अक्षत लाल, भावेश द्विवेदी आदि उपस्थित रहे।


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