नदी प्रदूषण से कछुआ की छह प्रजातियां विलुप्त
कछुआ की प्रजातियां नदियों में प्रदूषण की वजह से विलुप्त होती जा रही हैं। कानपुर से वाराणसी के बीच प्रदूषण के कारण इनकी संख्या कम होती जा रही है।
विमल पांडेय, इलाहाबाद : नदियों का पर्यावरणीय संतुलन सुधारने में भूमिका निभाने वाले कछुआ का जीवन नदी प्रदूषण निगलने लगा है। कानपुर से बनारस के बीच नदी का पानी इन जीवों के लिए डैंजर्स जोन बन चुका है। इलाहाबाद पहुंची वन्य जीव टीम देहरादून की टीम के सर्वे में सामने आया कि बढ़ते प्रदूषण के कारण प्रदेश में कछुओं की आधा दर्जन प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। प्रदेश में कुल 12 में करीब छह प्रजातियां समाप्त हो चुकी हैं। कछुआ कानपुर से बनारस के बीच सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है।
विश्व में पाई जाने वाली 260 प्रजातियों में से 85 प्रजातिया एशिया में पाई जाती हैं। इनमें से 28 प्रजातिया भारत में पाई जाती हैं। उत्तर प्रदेश में 12 प्रजातिया पानी में पाई जाती हैं और एक प्रजाति जमीन पर पाई जाती है। तेजी से खत्म हो रहे कछुओं की कई प्रजातियों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक एवं संरक्षण समितियों ने रेड लिस्ट व वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की सूची में शामिल किया है। नए सर्वे के मुताबिक, गंगा नदी में कछुए की महज 6 से 8 प्रजातिया ही देखने को मिल रही हैं। पहले 12 प्रजातिया पाई जाती थीं। वर्ष 2003 में कछुए की ढोर प्रजाति पूरी तरह गायब हो चुकी है। वन्य जीव टीम के सदस्य सचिन दवा के अनुसार गंगा में गंदगी खत्म करने के लिए वर्ष 1989 में गंगा एक्शन प्लान के तहत सात किमी क्षेत्र को कछुआ सेंचुरी के रूप में विकसित कर नदी में 100 कछुए छोड़े गए, लेकिन रिपोर्ट के अनुसार ये कछुए भी अब तट पर नजर नहीं आते हैं।
कानपुर से बनारस के बीच विलुप्त हुई कई प्रजातियां :
कानपुर, फतेहपुर, इलाहाबाद और बनारस के बीच गंगा और यमुना में विलुप्त हो रही कछुओं की प्रजातिया हैं। इसमें बतागुर कछुआ, बतागुर धोनगोका, निल्सोनिया गैंगेटिका, चित्रा इंडिका, हरदेला टूरजी आदि हैं। फतेहपुर के नौबस्ता और भिटौरा घाटों में भी कछुआ की कई प्रजातियां नहीं मिली हैं। गंगा और यमुना में राष्ट्रीय जलीय प्रजातियों में गागेय डाल्फिन, घड़ियाल हैं। यहा पर काफी संख्या में प्रवासी और आवासीय पक्षियों ने भी बसेरा बना रखा है।
----------
इलाहाबाद में कछुआ अभयारण्य केंद्र :
गंगा नदी में समृद्ध जलीय जैव विविधता को मानवजनित दबाव से सुरक्षा प्रदान करने के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत योजना बनाई गई। इसी के तहत इलाहाबाद में गत वर्ष कछुआ अभयारण्य विकसित करने और संगम पर नदी जैव विविधता पार्क विकसित करने को मंजूरी दी गई थी। इसके साथ ही कछुआ पालन केंद्र स्थापित करने की भी योजना बनाई गई थी। इसमें त्रिवेणी पुष्प पर स्थायी नर्सरी तथा अस्थायी वार्षिक पालन भी शामिल किया गया था। उक्त परियोजना पर काम प्रारंभ हो चुका है।
--------
खतरें में हैं यह प्रजातियां
कछुआ वैज्ञानिक नाम
हॉक्सबिल कछुए- इर्टमोकेलीसिमब्रीकाटा
लेदरबैक कछुए- डर्मोकेलीस्कोरिएसा
---------------
लुप्तप्राय कछुए और उनके वैज्ञानिक नाम
ग्रीन कछुआ - केलोनिमेडस
लाग्गरहेड कछुए- कारेट्टाकारेट्टा
-------
कमजोर कछुए और उनके वैज्ञानिक नाम
आलिव रिडले कछुए -लीपीडोकेलिसोलिवेका
------------
कोट :
'कानपुर से बनारस के बीच में पर्यावरण संतुलन बिगड़ने के कारण कई वर्षो से कछुओं की अनेक प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं। यह चिंता का विषय है। छह प्रजातियां सर्वे के दौरान देखने को नहीं मिली हैं। नदियों पर खनन और प्रदूषण पर काबू पाना अति आवश्यक है।'
सौरभ गवां रिसर्च बायोलाजिस्ट, वन्य जीव संस्थान देहरादून