सिद्ध पीठ मांडवी देवी धाम जहां श्रद्धालुओं की होती है मनोकामना पूरी, Prayagraj news
मांडवी देवी मंदिर के उत्तराभिमुख शंकर जी और हनुमान जी का मंदिर स्थित है। परिसर में ही यज्ञशाला है जहां आहुति दी जाती है। वैसे तो प्रत्येक सोमवार और नवरात्र के अवसर पर धाम में श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहता है।
प्रयागराज, जेएनएन। विंध्य पर्वत माला की कोख में स्थित सिद्ध पीठ मांडवी देवी धाम प्राचीन काल से ही लोगों के श्रद्धा और विश्वास का केंद्र रहा है जहां भक्तों की भारी भीड़ पूजा-अर्चना हेतु आती रहती है। मांडवी देवी धाम के बारे में जो प्रचलित कथा है कि राजा दक्ष प्रजापति ने एक बार यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें उनकी पुत्री सती भी शामिल हुई। भगवान शंकर जी उस यज्ञ में आमंत्रित नहीं थे और सती उनकी इच्छा के विपरीत राजा दक्ष प्रजापति के यज्ञ में आई थी। सती ने देखा कि यज्ञ में सभी देवताओं को स्थान दिया गया है किंतु शंकर जी के लिए कोई स्थान नहीं है। इससे क्रुद्ध होकर सती यज्ञशाला के हवन कुंड में कूद गई जिससे उनका शरीर जल गया और वह समाप्त हो गई। चारों ओर हाहाकार मच गया।
भगवान शिव ने 108 खंड में कर दिया था शव
इसकी जानकारी जब भगवान शंकर को हुई तो वे हवन कुंड से सती का शव निकाल कर लेकर चल दिए। कोई अनिष्ट न हो जाए, इस बात को लेकर भगवान विष्णु ने अपने धनुषबाण से सती के शव को 108 खंडों में विभक्त कर दिया। सती के शरीर के अंग 108 स्थानों पर जहां-जहां गिरे वही स्थान सिद्ध पीठ कहलाए। मांडवी देवी धाम में सती के स्तन का भाग गिरा और यह स्थान सिद्ध पीठ के नाम से जाना जाने लगा। देवी पुराण के सातवें स्कंध अध्याय 30 का 72 वां श्लोक उक्त प्रचलित कथा की पुष्टि करता है जिसमें कहा गया है' मांडवे मांडवीनाम स्वाहा माहेश्वरी पूरे।'
मांडव ऋषि की तपस्थली के हैं अवशेष
देवी पुराण के अनुसार जो 108 सिद्ध पीठ हैं उसमें प्रयाग में ललिता, विंध्याचल में विंध्यवासिनी, द्वारकापुरी में देवकी, अमरकंटक में चंद्रिका, चित्रकूट में सीता, उज्जैन में महेश्वरी, बैजनाथ धाम में आरोग्या, कोल्हापुर में महालक्ष्मी का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। मांडवी देवी धाम में जो मूर्ति है, उसका आकार भी स्तन का है। विंध्याचल में नितंभ भाग का गिरना बताया जाता है। मांडवी देवी धाम के बारे में कहा जाता है कि मांडा स्टेट इष्ट देवी हैं और राज परिवार की ओर से आज भी उनकी पूजा-अर्चना की पूरी व्यवस्था की जाती है। मांडवी देवी धाम से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर मांडव ऋषि की तपोस्थली स्थित है जहां आज भी उस के भग्नावशेष मौजूद हैं।
पौष महीने में लगता है मेला
मांडवी देवी मंदिर के उत्तराभिमुख शंकर जी और हनुमान जी का मंदिर स्थित है। परिसर में ही यज्ञशाला है जहां आहुति दी जाती है। वैसे तो प्रत्येक सोमवार और नवरात्र के अवसर पर धाम में श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहता है लेकिन पौष मास के प्रथम सोमवार को हर साल विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में कई जनपदों के लोग अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद मां के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए आते हैं। खासकर महिलाओं की भारी भीड़ इकट्ठा होती है। मंदिर के पुजारी धर्मजीत द्विवेदी बताते हैं कि जो भी भक्त मां के दरबार में सच्चे भाव से मन्नत मांगता है, माता रानी उसकी मनोकामना को पूरी करती हैं। सबसे गौरतलब बात यह है कि मेले के दिन दुकानों से वसूली गई हजारों की धनराशि व मंदिर के दानपात्र में श्रद्धालुओं द्वारा दान किया गया हजारों रुपए मांडा स्टेट के कारिंदे ले जाते हैं।
आज भी अनदेखी का शिकार
मांडवी देवी धाम आज भी प्रशासन की उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। सांसदों और विधायकों ने मांडवी देवी धाम को पर्यटक स्थल बनाए जाने हेतु कई बार आश्वासन दिया लेकिन आज तक वादा पूरा नहीं हो सका। अलबत्ता, तत्कालीन सांसद श्यामाचरण गुप्ता ने यात्रियों की सुविधा के लिए एक धर्मशाला तथा तत्कालीन विधायक गिरीश चंद पांडेय ने टीन शेड का निर्माण करा कर क्षेत्रीय जनों का विश्वास जीतने का काम किया। उधर, मांडा ग्राम पंचायत की प्रधान करुणा देवी पत्नी भोलानाथ कुशवाहा ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मांडवी देवी धाम के पास 3.69 लाख रुपए की लागत से सामुदायिक शौचालय बनवा कर परिसर को स्वच्छ रखने का संदेश दिया है।