390 साल पहले ज्ञानवापी में होती थी शिवलिंग की पूजा, ब्रिटिश यात्री पीटर मंडी की किताब में है जिक्र
Gyanvapi Dispute ब्रिटिश यात्री पीटर मंडी ने अपनी किताब द ट्रेवेल आफ पीटर मंडी इन यूरोप एंड एशिया 1608-1667 में बनारस यात्रा के दौरान विश्वेश्वर शिवलिंग की पूजा का जिक्र किया है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन-आधुनिक इतिहास विभाग की 2002 में प्रकाशित शोध में यह तथ्य सामने आया है।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। ज्ञानवापी में 390 साल पहले विश्वेश्वर शिवलिंग था और इसकी लोग पूजा किया करते थे। ब्रिटिश यात्री पीटर मंडी ने अपनी किताब द ट्रेवेल आफ पीटर मंडी इन यूरोप एंड एशिया 1608-1667 में बनारस यात्रा के दौरान विश्वेश्वर शिवलिंग की पूजा का उल्लेख किया है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन-आधुनिक इतिहास विभाग की ओर से 2002 में प्रकाशित शोध में यह तथ्य सामने आया है। मुगल बादशाह शाहजहां के काल में भारत आने वाले इस यूरोपीय दार्शनिक ने कई शहरों का भ्रमण किया है और भारतीय संस्कृति और समाज पर काफी कुछ लिखा है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन-आधुनिक इतिहास विभाग में 2002 में हुआ था शोध
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के प्रोफेसर हेरंब चतुर्वेदी के दिशानिर्देश में डा. सचिंद्र पांडेय ने शोध किया था। अपने शोध में सचिंद्र पांडेय ने पीटर मंडी की पुस्तक के यात्रा वृत्तांत का उल्लेख किया है। इस पुस्तक में पीटर ने लिखा है कि यह क्षत्रिय, ब्राह्मण और बनियों की बस्ती है और यहां दूर-दूर से लोग देवजाओं की पूजा करने आते हैं। इस नगर में काशी विश्वेश्वर महादेव का सबसे बड़ा मंदिर है। मैं उसके भीतर गया, उसके बीच एक ऊंची जगह पर एक बड़ा लंबोतरा, सादा बिना नक्काशी का पत्थर है, उस पर लोग नदी का पानी, दूध और अक्षत चढ़ाते हैं। पूजा के समय ब्राह्मण कुछ बोलते हैं पर लोग उसे समझ नहीं पाते हैं। लिंग के ऊपर रेशमी चांदनी है, जिसके सहारे बत्तियां जलती हैं। इस सादी मूरत को लोग महादेव का लिंग कहते हैं। महिलाएं अपने बच्चों को निरोग कराने लाती हैं।
1632 में शाहजहां का शासन था और पीटर मंडी इस दौरान बनारस आया
इवि के प्रोफेसर हेरंब चतुर्वेदी ने बताया कि ज्ञानवापी शब्द भारतीय संस्कृति का परिचायक है। यह एक पाठशाला थी, जहां मंदिर और पुस्तकालय भी था। उन्होंने बताया कि शोध के सिलसिले में सचिंद्र पांडेय मस्जिद परिसर और काशी विश्वनाथ मंदिर का कई बार भ्रमण किया था। वहां जाकर उन्होंने कई प्राचीन दस्तावेजों को इकठ्ठा किया। इसमें अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब के फरमान भी शामिल थे। शोधकर्ता शचींद्र पांंडेय ने बताया कि 1632 में शाहजहां का शासन था और पीटर मंडी इसी दौरान बनारस आया था। उसका आगमन विश्वेवर मंदिर टूटने से 37 साल पहले का है। पीटर मंडी ने अपनी किताब में पूजा विधान के अलावा आसपास स्थित मंदिरों का भी जिक्र किया है। विश्वनाथ मंदिर के अलावा मंडी ने गणेश चतुर्भुज मंदिर और देवी मंदिर भी देखा। लिखा- मंदिर के द्वार पर अक्सर नंदी रहते हैं। पीटर मंडी ने इस दौरान 1632 में बनारस में फैली किसी भयंकर बीमारी का भी जिक्र किया है।
हालात देखकर फैसले फरमान देता था औरंगजेब
प्रो. हेरंब चतुर्वेदी ने शोध के हवाले से कहा कि औरंगजेब के दो रुप दिखते हैं। पहले वह हिंदुओं को न सताने और मंदिर न तोड़ने का फरमान देने वाला। धार्मिक सहिष्णुता दिखाते हुए पूजा पाठ में रोक न लगाने का फरमान जारी करता है। शचींद्र पांडेय बताते हैं कि यही औरंगजेब अपने बड़े भाई दारा शिकोह और छत्रपति शिवाजी के बनारस में शरण लेने की बात सुनता है तो मंदिर और स्कूलों को तोड़ने सहित पूजा-पाठ पर प्रतिबंध लगाने का फरमान जारी करने लगा। शचींद्र पांडेय के अनुसार बनारस में दारा शिकोह, छत्रपति शिवाजी और मेवाड़ शासक राज सिंह की बढ़ती सक्रियता से औरंगजेब घबराया हुआ था। दारा बनारस में संस्कृत की पढ़ाई कर रहा था। उसने 1656 में विश्वनाथ मंदिर के पंडा भीमराम को पट्टा लिखकर दे दिया। इससे औरंगजेब भड़क गया और विश्वेश्वर, कृति वासेश्वर और बिंदु माधव मंदिर गिरवाकर मस्जिदें बनवा दीं।