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shamsur rahman Birth Annivesary: शम्सुर्रहमान फारूकी को उर्दू अदब से थी बेलौस मोहब्ब्त

shamsur rahman Birth Annivesary उर्दू अदब के ऐसे स्तंभ जिनकी ख्याति देश-दुनिया के विश्वविद्यालयों में रही उन शम्सुर्रहमान का आज 30 सितंबर को जन्मदिन है। प्रतापगढ़ के कालाकांकर में जन्मे शम्सुर्रहमान के बारे में कहा जाता है कि उनके बिना उर्दू अदब अधूरा है। प्रोफेसर नहीं वह एलाइड आइएएस थे

By amardeep bhattEdited By: Ankur TripathiPublished: Fri, 30 Sep 2022 07:00 AM (IST)Updated: Fri, 30 Sep 2022 07:11 AM (IST)
shamsur rahman Birth Annivesary: शम्सुर्रहमान फारूकी को उर्दू अदब से थी बेलौस मोहब्ब्त
प्रतापगढ़ के कालाकांकर में जन्मे शम्सुर्रहमान के बारे में कहा जाता है कि उनके बिना उर्दू अदब अधूरा है।

आज 30 जनवरी को शम्सुर्रहमान फारूकी की जन्मतिथि पर विशेष

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प्रयागराज, जागरण संवाददाता। उर्दू अदब के ऐसे स्तंभ जिनकी ख्याति देश-दुनिया के विश्वविद्यालयों में रही, उन शम्सुर्रहमान फारूकी का 30 सितंबर को जन्मदिन है। प्रतापगढ़ के कालाकांकर में जन्मे शम्सुर्रहमान के बारे में कहा जाता है कि उनके बिना उर्दू अदब अधूरा है। प्रोफेसर नहीं थे, वह एलाइड आइएएस थे और भारतीय डाक सेवा में कई जिलों में उच्च पदों पर रहे। फिर भी जहां-जहां उर्दू का जिक्र आया उनकी उपस्थिति जरूर रही। जितनी मोहब्बत उन्होंने उर्दू से की उतनी ही पालतू जानवरों, चहचहाती चिड़ियों, बिल्लियाें और खासकर फूलों से की।

देश विदेश के विश्वविद्यालयों में थी ख्याति, भारतीय डाकसेवा में की नौकरी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय की उर्दू विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शबनम हमीद बताती हैं कि शम्सुर्रहमान फारूकी ने उर्दू के लिए सर्वस्व जीवन न्यौछावर कर दिया। उनके पास जितना ज्ञान का खजाना था उतनी ही उनके बंगले पर उर्दू साहित्य से समृद्ध लाइब्रेरी है। देश-विदेश से जो भी उर्दू के अनुसंधानकर्ता आते थे उन्हें अशोक नगर स्थित अपने बंगले पर ही बुलाकर बैठक करते। शबनम हमीद बड़े गर्व से कहती हैं कि वह देश के जिन भी विश्वविद्यालयों में गईं वहां लोगों ने यही कहा कि आप बड़ी खुशकिस्मत हैं जो शम्सुर्रहमान फारूकी के शहर से आयी हैं।

कहते थे हमेशा कि हिंदुस्तानी होना गर्व की बात

अपने पिता के बारे में बारां फारूकी बताती हैं कि पिता हमेशा कहते थे हिंदुस्तानी होना गर्व की बात है। उन्होंने बेटियों (बारां और अफसां फारूकी) को अच्छी शिक्षा दिलाई। उर्दू, हिंदी के साथ अंग्रेजी भाषा का ज्ञानार्जन भी हुआ लेकिन घर में अंग्रेजी में कुछ भी लिखने पर उन्होंने पाबंदी लगा रखी थी। कहते थे कहीं पत्र भी भेजना है तो उर्दू में लिखें। उन्होंने घर में हमेशा पारिवारिक माहौल बनाए रखने, मेहनत और लगन से काम करने, तहजीब और छोटे-बड़ों का आदर करने की सीख दी। वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एमए के छात्र रहे, विदेश के तमाम विश्वविद्यालयों में उनकी किताबें चलती हैं।

प्रमुख रचनाएं

उपन्यास, नज्म, गजल, शायरी, कहानियां आदि।


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