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शैलजा रईचुरा का अनूठा है बास्केटबाल खिलाड़ी से आस्था तक का सफर

तंजानिया में जन्‍मीं शैलजा रईचुरा पहले बास्‍केटबाल की खिलाड़ी थीं। बाद में एक घटना के बाद वह योगिनी शैलजानंद गिरि बन गईं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 08 Jan 2019 03:51 PM (IST)Updated: Tue, 08 Jan 2019 03:51 PM (IST)
शैलजा रईचुरा का अनूठा है बास्केटबाल खिलाड़ी से आस्था तक का सफर
शैलजा रईचुरा का अनूठा है बास्केटबाल खिलाड़ी से आस्था तक का सफर

प्रयागराज : कभी बास्केटबॉल खिलाड़ी वॉल्ट कैंबर्लेन को आदर्श मानने वाली शैलजा रईचुरा राष्ट्रीय स्तर तक अपने खेल का प्रदर्शन कर चुकी हैं। आज भगवान दत्तात्रेय की भक्ति में लीन हैं। बदन पर भगवा वस्त्र, गले में मोटी माला इनकी पहचान है। दुनियाभर में जानी जाती हैं सहज योगिनी शैलजानंद गिरि के रूप में। जूना अखाड़ा की महामंत्री एवं त्रिमूर्ति श्रीगुरुदत्ता सेवा आश्रम ऋषिकेश की चेयरमैन शैलजानंद शिक्षा, चिकित्सा के जरिए गरीबों की सेवा करने के साथ नशाखोरी व अपराध में लिप्त लोगों को धर्म के जरिए सही राह दिखा रही हैं।

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छह वर्ष की उम्र में तंजानिया से आ गईं गुजरात

मूलत: गुजरात के राजकोट निवासी शैलजा का जन्म पूर्वी अफ्रीकी देश तंजानिया के दारेस्लाम शहर में हुआ है। वहां इनके पिता मंगल दास रईचुरा कस्टम अफसर थे। छह साल की उम्र में शैलजा गुजरात आ गईं। यहां अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में दाखिला लेकर बास्केटबॉल खेलने लगी। बास्केटबॉल में वह वॉल्ट कैंबर्लेन की तरह विख्यात होना चाहती थी। कड़ी मेहनत व लगन के बल पर उन्होंने बास्केटबॉल में राष्ट्रीय खिलाड़ी के रूप में पहचान बनाई।

1978 में शैलजा के जीवन में आया अहम बदलाव

खेल में रम चुकीं शैलजा के जीवन में अहम बदलाव 1978 में आया। तब इनकी आयु 19 साल थी, वह मां मंजूबेन के साथ राजकोट स्थित एक ध्यान केंद्र गईं। मां के साथ उन्होंने भी ध्यान लगाया तो लगातार 24 घंटे तक बैठी रहीं। ध्यान टूटा तो जीवन बदल चुका था। कभी बास्केटबॉल के लिए जान देने वाली शैलजा के जीवन में वैराग्य आ गया। खेल का मोह छोड़कर शैलजा गुरु दत्तात्रेय व श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हो गईं।

स्वत: जागृत हुई प्रेरणा

शैलजानंद गिरि ध्यान, हठ योग, कुंडलिनी, प्राणायाम की मर्मज्ञ हैं। आश्चर्य की बात यह है कि इसका प्रशिक्षण इन्होंने किसी से नहीं लिया। बल्कि सारी विद्याओं का ज्ञान स्वत: हुआ है। उन्हें 1996 में तीन माह तक समाधि लगाई, जिससे आत्मज्ञान, ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हुई।

22 साल की उम्र में छोड़ा अन्न

शैलजानंद गिरि ने 22 साल की उम्र से अन्न व नमक का त्याग कर दिया है। एक समय फलाहार व जल ग्रहण करके जीवनयापन करती हैं।

कुंभ क्षेत्र में करेंगी श्रद्धालुओं की सेवा

मेला क्षेत्र के सेक्टर 16 में त्रिमूर्ति श्री गुरुदत्त सेवा आश्रम का शिविर लगा है। शैलजानंद बताती हैं कि 11 जनवरी से शुरुआत हो जाएगी। यहां श्रद्धालुओं को योग, ध्यान, प्रणायाम का प्रशिक्षण मिलेगा। संतों व श्रद्धालुओं की आंख की जांच करके मोतियाबिंद का निश्शुल्क आपरेशन कराने के साथ चश्मा का वितरण होगा। यही नहीं सबको दक्षिण भारत, गुजराती व पंजाबी भोजन की निश्शुल्क मिलेगा।


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