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जूना अखाड़ा में तैयार हो रहा संन्यासिनियों का अलग शिविर

जूना अखाड़ा में संन्यासिनियों का अलग शिविर तैयार किया जा रहा है। मकर संक्रांति पर शिविर में धर्मध्‍वजा लगाई जाएगी।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Fri, 28 Dec 2018 11:59 AM (IST)Updated: Fri, 28 Dec 2018 11:59 AM (IST)
जूना अखाड़ा में तैयार हो रहा संन्यासिनियों का अलग शिविर
जूना अखाड़ा में तैयार हो रहा संन्यासिनियों का अलग शिविर

प्रयागराज : राजनीतिक दल महिलाओं की नुमाइंदगी करते हुए उन्हें बराबरी का दर्जा देने की बात तो करते हैं, लेकिन बात जब धरातल पर आती है तो ऐसा नजर नहीं आता। बात धार्मिक क्षेत्र की करें तो यहां जरूर स्थिति सकारात्मक है। इसकी झलक कुंभ मेला क्षेत्र के सेक्टर 16 में बसे अखाड़ा नगर में जूना अखाड़ा के शिविर में दिखती है। यहां उनके लिए अलग 'जूना दशनामी संन्यासिनी अखाड़ाÓ शिविर बन रहा है। मकर संक्रांति पर उनकी अलग धर्मध्वजा लगेगी। प्रवचन के लिए सिंहासन, पूजाघर, शयन कक्ष का विशेष प्रबंध है।

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जूना दशनामी संन्यासिनी अखाड़ा की अध्यक्ष कहती हैं

जूना दशनामी संन्यासिनी अखाड़ा की अध्यक्ष श्रीमहंत आराधना गिरि बताती हैं कि संन्यास के बाद संन्यासिनियों की सुरक्षा, सम्मान व अधिकार की रक्षा की जिम्मेदारी अखाड़ा की होती है। इसके लिए जूना अखाड़ा में बिना किसी भेदभाव के काम होता है। यहां पुरुष व महिला में कोई भेद नहीं है। श्रीमहंत अन्नपूर्णा पुरी बताती हैं कि संन्यास में महिला-पुरुष नाम की कोई चीज नहीं होती। न ही कोई भेदभाव है। सबका लक्ष्य सनातन परंपरा का प्रचार-प्रसार करना है, जिसके लिए सब त्याग तपस्या करते हैं।

संन्यास से पहले होती है जांच

महिलाओं के संन्यास लेने की प्रक्रिया काफी कठिन होती है। संन्यास से पहले संबंधित अखाड़ा की ओर से महिला की कई स्तर पर जांच होती है। उसके बाद ही अखाड़ा में शामिल किया जाता है।

-संन्यास लेने वाली महिला कहां से आयी है?

-संन्यास लेने का कारण?

-पारिवारिक पृष्ठभूमि, इतिहास क्या है?

-पढ़ाई-लिखाई कहां तक हुई है?

-सामाजिक व चारित्रिक दोष तो नहीं है।

ये है संन्यास की प्रक्रिया

सामान्य रूप से कुंभ, महाकुंभ में संन्यास दिलाया जाता है। सूर्य उत्तरायण होने पर भी यह प्रक्रिया होती है। संन्यास लेने वाले को तीन दिन उपवास रखवाया जाता है। पहले दिन जल पीकर रहना पड़ता है। दूसरे दिन दूध पीकर, फिर अंतिम 24 घंटा खुले आसमान के नीचे निर्जला रहकर 'ऊं नम: शिवाय' का जप करने की परंपरा है। इसके बाद गंगा तीरे छौरकर्म (मुंडन) होता है। फिर पिंडदान कराया जाता है, जिसमें वह मोहमाया से मुक्त होने के लिए परिजनों एवं खुद का पिंडदान करती हैं। इसके बाद विजयाहवन में हर शुभकर्म से स्वयं को दूर रखने का संकल्प लेना होता है।  

आचार्य महामंडलेश्वर देते हैं वस्त्र

संन्यासिनी महिला को उनके गुरु यानि संबंधित अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर भगवा वस्त्र अपने हाथों से देते हैं। फिर उनका नया नामकरण होता है। इसके बाद ज्ञान के अनुसार जिम्मेदारी दी जाती है।

काशी के पुरोहित बताते हैं मुहूर्त

संन्यास दिलाने के लिए विशेष मुहूर्त निकाली जाती है। मुहूर्त का फैसला काशी के पुरोहित करते हैं। हर अखाड़ा के अलग-अलग पुरोहित अपने अनुसार ग्रह-नक्षत्र को देखकर तिथि तय करके संस्कार कराते हैं।

कहते हैं जूना अखाड़ा के महंत

जूना अखाड़ा के मुख्य संरक्षक महंत हरि गिरि कहते हैं कि जूना अखाड़ा में हर संन्यासी को बराबर अधिकार व सम्मान मिलता है। वह चाहे पुरुष हो या महिला। हम किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करतें।


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