Kumbh mela 2019 : स्वाभिमान का प्रतीक है महानिर्वाणी अखाड़ा की पर्व ध्वजा
मुगलकाल में महंत राजेंद्र गिरि ने महानिर्वाणी अखाड़ा की स्थापना की थी। एकमात्र अखाड़ा है जिसके शिविर में दो ध्वजा लगती है। यह सम्मान, स्वाभिमान व वैभव का प्रतीक है।
शरद द्विवेदी, कुंभनगर : महानिर्वाणी अखाड़ा की पर्व ध्वजा सम्मान, स्वाभिमान और वैभव का प्रतीक है। यही एकमात्र ऐसा अखाड़ा है जिसके धर्म ध्वजा के पास पर्व ध्वजा लगी है। पर्व ध्वजा लगाने के पीछे अखाड़े के , वीरता और धर्म के प्रति समर्पण था। अखाड़ा के महात्माओं ने मुगल आक्रांताओं से मोर्चा लेते हुए प्रयाग में कुंभ पर्व की परंपरा को आरंभ कराई। साथ ही पर्व ध्वजा के नीचे दूसरे अखाड़ा के महात्माओं को संगठित किया गया।
महंत राजेंद्र गिरि ने प्रयाग में कुंभ परंपरा पुन: शुरू करने की योजना बनाई
16वीं शताब्दी में भारत में मुगलों का आतंक था। भय दिखाकर वह ङ्क्षहदुओं की आस्था को कुचलना चाहते थे, जिसके चलते कुंभ मेला की परंपरा ठप करा दी गई। इससे व्यथित महानिर्वाणी अखाड़ा के महंत राजेंद्र गिरि ने प्रयाग में कुंभ परंपरा पुन: शुरू करने की योजना बनाई। वह 1623 में मकर संक्रांति स्नान पर्व से पूर्व हजारों संन्यासियों से साथ प्रयाग आ गए। इसमें दस हजार से अधिक नागा संन्यासी थे। एक स्थान पर एकत्रित होने के बजाय सभी ग्रामीण क्षेत्रों में चारों ओर बसेरा लिया। महंत राजेंद्र गिरि अकेले मुगल शासक से संगम क्षेत्र में पर्व ध्वजा लगाकर पूजन की अनुमति मांगी। वह अकेले थे इसलिए अनुमति मिल गई। इसके बाद उन्होंने संगम क्षेत्र में पर्व ध्वजा लगाकर पूजन शुरू किया।
...मुगल रोकने की हिम्मत नहीं कर सके
महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव महंत यमुना पुरी बताते हैं कि महंत राजेंद्र गिरि ने सारे महात्माओं व नागा संन्यासियों को पर्व ध्वजा के पास आने को कहा था। अंधेरा होते ही सारे नागा संन्यासी व महात्मा त्रिशूल, तलवार, गदा, भाला और फरसा लेकर संगम की ओर कूच कर दिया। पर्व ध्वजा का पूजन करके शौर्य व वीरता का परिचय देते हुए हर-हर महादेव का उद्घोष करते हुए संगम स्नान के लिए निकल पड़े। मुगलों ने उन्हें देखा, लेकिन रोकने की हिम्मत नहीं कर सके। तब से अखाड़ा धर्म के साथ पर्व ध्वजा भी लगाता है।
शाही स्नान से पहले जगराता
महानिर्वाणी अखाड़ा के महात्मा शाही स्नान पर रातभर जगराता करते हैं। पर्व ध्वजा के नीचे सभी एकत्रित होकर मध्यरात्रि के बाद पूजन में लीन हो जाते हैं। पूजन खत्म होने पर शाही स्नान के लिए निकलते हैं।