Move to Jagran APP

Sanskarshala: डिजिटलीकरण की अति ले जा रही संवेदनाओं से दूर, रिश्ते-नातो पर भी हो रहा असर

हम जिस युग में जी रहे हैं उसे डिजिटल युग कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। डिजिटलाइजेशन ने हमारे जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। कठिन लगने वाले कार्य भी सुगमता से किए जा सकते हैं। प्रौद्योगिकी ने समाज की कार्यशैली को अनेक स्तरों पर परिवर्तित कर दिया।

By Jagran NewsEdited By: Ankur TripathiPublished: Fri, 07 Oct 2022 01:53 PM (IST)Updated: Fri, 07 Oct 2022 01:53 PM (IST)
Sanskarshala: डिजिटलीकरण की अति ले जा रही संवेदनाओं से दूर, रिश्ते-नातो पर भी हो रहा असर
शिक्षा हो अथवा मीडिया, स्वास्थ्य, सेवा, व्यापार अथवा वाणिज्य, आज कहां नहीं है डिजिटलीकरण का स्पष्ट प्रभाव।

सुष्मिता कानूनगो, लेखिका गोल्डेन जुबली स्कूल की प्रधानाचार्य 

loksabha election banner

प्रयागराज, जेएनएन। शिक्षा हो अथवा मीडिया, स्वास्थ्य, सेवा, व्यापार अथवा वाणिज्य, आज कहां नहीं है डिजिटलीकरण का स्पष्ट प्रभाव। हमारा भारत परंपरागत धरोहरों व आधुनिक स्थापनाओं का सुंदर समन्वय है। यह सबसे बड़ी युवा आबादी के साथ बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में एक है। यहां डिजिटल क्रांति के साथ समाज का चेहरा बदलने के लिए विविध अवसर हैं। हम स्वयं अपने प्रत्येक कार्यों के लिए डिजिटल माध्यम पर निर्भर हैं।

इंटरनेट मीडिया के विविध प्लेटफार्मों का प्रयोग कर हर्षित एवं गर्वित भी होते हैं परंतु हमारी संवेदनाओं, भावनाओं और संस्कारों का क्या हाल है यहां? इसका उत्तर यह है कि हमारी अभिव्यक्ति में हृदय के भाव का पूर्णता अभाव परिलक्षित होता है।

डिजिटल माध्यम से हमारे कथन प्रभावशाली नहीं हो सकते

हमारा मस्तिष्क यंत्र की तरह काम करता है। इसमें बौद्धिकता तो होती है किंतु आत्मिकता नहीं। हम जब आत्महीन, हृदयहीन एवं भावहीन शब्दों को अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं तो उसका प्रभाव उस अमरबेल की तरह होता है जिसमें जड़ नहीं होती। जड़ विहीन पौधों या वृक्षों का अस्तित्व जिस प्रकार सार्थक नहीं हो सकता उसी प्रकार डिजिटल माध्यम से हमारे कथन प्रभावशाली नहीं हो सकते।

एक शिक्षक जब विद्यार्थी को शिक्षा प्रदान करते समय उसका ध्यान संदर्भित विषय की ओर आकृष्ट करता है, उस समय शिक्षक के शब्द उच्चारण के साथ- साथ उसकी भाव-भंगिमा मुद्राएं विद्यार्थी के मनो-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ती हैं। इसका प्रभाव मात्र अध्ययन पर ही नहीं अपितु व्यवहार, जीवन पर भी समान रूप से पड़ता है।

गुरु के ज्ञानात्मक, भावनात्मक और विचारात्मक तीनों प्रकार के प्रभाव से प्रभावित हो कर शिष्य संस्कारवान होता है। डिजिटल माध्यम की शिक्षा का संस्कारों से कोई सरोकार नहीं है। गुरु का सानिध्य प्राप्त किए बिना डिजिटल माध्यम की शिक्षा से कोई विद्यार्थी डाक्टर अथवा इंजीनियर तो बन सकता है परंतु संस्कारवान व सभ्य व्यक्ति नहीं हो सकता, जिसमें संस्कार नहीं होगा वह सही अर्थों में मनुष्य भी नहीं होगा। दुर्गा सप्तशती में श्लोक है

यतो हि ज्ञानिनः सर्वे पशुपक्षिमृगादयः ।

ज्ञानं च तन्मनुष्याणां यन्तेषा मृगपक्षिणाम् ।।

ज्ञानी तो पशु-पक्षी भी लेकिन मनुष्य की तरह क्रियाशील नहीं

इसका अर्थ यह है कि ज्ञानी तो पशु-पक्षी भी होते हैं किंतु वह मनुष्य की भांति क्रियाशील नहीं होते। हमारा डिजिटल ज्ञान भी कुछ इसी प्रकार का है। शिक्षा में ही नहीं सामाजिक क्षेत्रों में भी हमारे विचारों का आपस में आदान-प्रदान एक दूसरे के सन्निकट होकर ही जितने अच्छे ढंग से हो सकता है वह डिजिटल माध्यम से संभव नहीं।

वीडियो कालिंग और गले लगने में फर्क

हम वीडियो कालिंग के माध्यम से अपने स्वजन से जुड़ तो जाते हैं परंतु स्नेहपूर्वक गले नहीं लग सकते, उनके पास बैठ नहीं सकते। एक संगीतकार के संगीत की अंतरध्वनि की गूंज या नृत्यांगना के भावनृत्य की भावाभिव्यक्ति का जो प्रत्यक्ष प्रभाव दर्शक पर पड़ता है वह क्या डिजिटल माध्यम से चित्रांकित रूप में संभव है, संभवत: नहीं। प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति में वास्तविक रूप का दर्शन होता है, चित्रांकित रूप में छायाचित्र मात्र। छाया और वास्तविकता दोनों में अंतर है।

साधारण जोड़-घटाने के लिए भी डिजिटल माध्यम का सहारा

आज हम साधारण गुणा-भाग के लिए भी कैलकुलेटर, मोबाइल, टैब आदि डिजिटल साधनों पर निर्भर हैं। कितनी गंभीर बात है कि जहां हमारे पूर्वज बड़ी से बड़ी गणना हाथों की अंगुलियों पर कर लेते थे वहीं आज हम साधारण जोड़-घटाने के लिए भी डिजिटल माध्यम का सहारा ले रहे हैं। यह अभ्यास हमारे जीवन के मूलभूत गुणों को बनाए रखने के लिए अहितकर है।

हमें बौद्धिक होना चाहिए, मशीनी नहीं

डिजिटल होना अच्छी बात है परंतु स्वयं की शक्ति व सामर्थ्य को भूल कर पूरी तरह से डिजिटल साधनों पर निर्भर रहना हमारी बड़ी भूल है। हमें यह आदत सुधारनी होगी। हमें बौद्धिक होना चाहिए, मशीनी नहीं। इसके लिए हमें सतत रूप से अपनी शक्ति व सामर्थ्य का प्रयोग करना होगा, व्यावहारिक बनना होगा, वास्तविक रूप को पहचानना होगा।

डिजिटल साधन को अपनाएं अपनी आदत नहीं बनाएं

अपनी संस्कृति और अपनी पूर्व शिक्षा प्रणाली को अपनाते हुए पुरातन से अधुनातन की ओर बढ़ना होगा। हम डिजिटल माध्यम को उतना ही अपनाएं जिसका कुप्रभाव हमारी संस्कृति, संस्कार, संवेदना और शक्ति पर नहीं पड़े। हम डिजिटल साधन को अपनाएं परंतु उसे अपनी आदत नहीं बनाएं। डिजिटल माध्यम की आदत से मुक्ति ही वास्तविक रूप से मनुष्य की सृजनात्मकता, कलात्मकता और क्रियात्मकता को पुष्पित एवं पल्लवित करेगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.