प्रयाग में संगम तीरे तर्पण कर पूर्वजों को करेंगे तृप्त
पितृपक्ष सोमवार से शुरू होगा। इन पंद्रह दिनों में अपने पितरों की स्तुति कर उनको तृत्प करने के लिए लोग प्रयाग के संगम तट पर जुटेंगे।
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : पितरों की स्तुति का पर्व पितृपक्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि सोमवार से आरंभ होगा। जो आठ अक्टूबर तक चलेगा। शास्त्रों में इसे 'महालयारम्भ:' कहा गया है। साधक स्वयं की सुख-शांति व पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तिलदान करके पूजन करेंगे। पितरों का जिस तिथि में निधन होता है उसी तिथि पर पिंडदान किया जाता है। पितृपक्ष में प्रयाग में पिंडदान करने का अधिक महत्व है।
ज्योतिर्विद आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि पूर्णिमा तिथि सोमवार की सुबह 6.32 बजे लगकर मंगलवार को प्रात: 7.41 बजे तक रहेगी। धर्म सिंधु व निर्णय सिंधु में लिखा है कि श्राद्ध में तिथि का मध्याह्नोत्तर (12 बजे के बाद) रहना जरूरी है। ऐसे में पूर्णिमा का श्राद्ध सोमवार को होना चाहिए। प्रयाग में पिंडदान करने से साधक को अश्वमेधयज्ञ कराने के समान पुण्य प्राप्त होता है। पिंडदान खीर, खोए और जौ के आटे का किया जा सकता है। खीर का पिंडदान सबसे श्रेष्ठ होता है।
क्यों आवश्यक है पिंडदान
विश्व पुरोहित परिषद के अध्यक्ष ज्योतिर्विद प्रो. विपिन पांडेय बताते हैं कि 'पिंड' का अर्थ किसी वस्तु का गोलाकार रूप है। प्रतीकात्मक रूप में शरीर को भी पिंड कहा जाता है। मृतक कर्म के संदर्भ में ये दोनों ही अर्थसंगत हो जाते हैं। पिंडदान न करने वालों को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, संतान का कष्ट प्राप्त होता है। जिस तिथि को पूर्वजों की मृत्यु हो उसी तिथि को दोपहर 11.23 के अंदर श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध में दूध, गंगाजल, मधु, वस्त्र, कुश, तिल, तुलसी पत्र के साथ पिंडदान करना चाहिए।
ये जरूर करें -ब्राह्माण भोजन से पहले गाय, कुत्ते, कौआ, देवता व चींटी के लिए भोजन सामग्री निकालें। -दक्षिणाभिमुख होकर कुश, तिल और जल लेकर गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, अनाज, गुड़, चांदी, नमक का दान काफी पुण्यकारी होता है।
दिनचर्या एवं खानपान में करें परहेज
पितृपक्ष में कुछ बंदिशें भी होती हैं जिसका पालन करना आवश्यक होता है। श्राद्ध तिथि वाले दिन तेल लगाने, दूसरे का अन्न खाने से परहेज करें। श्राद्ध में राजमा, मसूर, अरहर, गाजर, गोल लौकी, बैगन, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, महुआ, कैथा, चना का उपयोग नहीं करना चाहिए।
पितृपक्ष की महत्वपूर्ण तिथियां -
मातृनवमी (तीन अक्टूबर) : मां का श्राद्ध किया जाता है -द्वादशी (छह अक्टूबर) : साधु-संन्यासियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है। -चतुर्दशी (सात अक्टूबर) : शास्त्र से मरे लोगों का श्राद्ध होगा। -अमावस्या (आठ अक्टूबर) : पिता का श्राद्ध करते हैं।