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Kumbh mela 2019 : संत और महात्माओं को चांदी की थाली में राजसी भोज, जानें विशेषता

कुंभ मेला का तीसरे और अंतिम शाही स्‍नान वसंत पंचमी के बाद अखाड़े चले जाएंगे। इस बीच समष्टि भोजन का आयोजन हो रहा है। चांदी की थाली में संत और महात्माओं को राजसी भोज कराया जा रहा है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Fri, 08 Feb 2019 08:43 PM (IST)Updated: Sat, 09 Feb 2019 10:49 AM (IST)
Kumbh mela 2019 : संत और महात्माओं को चांदी की थाली में राजसी भोज, जानें विशेषता
Kumbh mela 2019 : संत और महात्माओं को चांदी की थाली में राजसी भोज, जानें विशेषता

विजय सक्सेना, कुंभनगर : गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन तट पर चल रहे अलौकिक कुंभ के दौरान अखाड़ों में कई तरह की परंपराएं भी निभाई जा रही हैं। यूं तो यहां ज्यादातर शिविरों में अन्न क्षेत्र चल रहे हैं जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु व साधु-संत भोजन प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। वहीं इनके बीच कुंभ में एक ऐसा भोज भी चल रहा है, जिसमें संत-महात्माओं को चांदी की थाली में भोजन परोसा जाता है। यह है समष्टि भोज। इस राजसी भोज में आमंत्रित संत-महात्माओं की देवताओं की तरह पूजा की जाती है। उनकी आरती उतारकर तरह-तरह के पकवान परोसे जाते हैं और दक्षिणा में मोटी रकम से लेकर चांदी के सिक्के तक दिए जाते हैं।

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काफी पुरानी है समष्टि भोज की परंपरा

अखाड़ों में समष्टि भोज की परंपरा सैकड़ों बरस से चली आ रही है। अखाड़ों में छावनी प्रवेश के बाद पीठाधीश्वर की ओर से समष्टि भोज कराया जाता है। इसके बाद अखाड़ों के अन्य महामंडलेश्वरों की ओर से समष्टि भोज का आयोजन कराया जाता है। इसमें महामंडलेश्वर, श्रीमहंत, महंत से लेकर बड़ी संख्या में संत, महात्मा शामिल होते हैं। समष्टि भोज के दौरान महामंडलेश्वर, श्रीमहंत, महंत समेत अखाड़ों के पदाधिकारियों के बीच वेस्टी बैठक और समष्टि बैठकें भी होती हैं। वेस्टी बैठक में महामंडलेश्वर विभिन्न समस्याओं पर चर्चा करते हैं, जबकि समष्टि बैठक में अखाड़ों के पदाधिकारी, महामंडलेश्वर सामाजिक कुरीतियों, राग-द्वेष खत्म करने व धर्म, राष्ट्र के उत्थान आदि विषयों पर विचार विर्मश करते हैं।

विशिष्टजनों का होता है पाटला पूजन

महानिर्वाणी अखाड़े के स्वामी डॉ. बृजेश शास्त्री बताते हैं कि बैठक के बाद महामंडलेश्वर, श्रीमहंत और महंतों को राजसी भोज के लिए ले जाया जाता है। यहां पाटला पूजन होता है, जिसमें उनकी देवताओं की तरह पूजा होती है। फिर इन महात्माओं को चांदी के बर्तनों में भोजन परोसा जाता है। इन महात्माओं के साथ समष्टि भोज में बड़ी संख्या में नागा और अन्य साधु-संत भी शामिल होते हैं, जिनकी संख्या हजारों में होती है। महामंडलेश्वर, श्रीमहंत और महंतों को चांदी के बर्तनों में और नागा समेत अन्य साधु-संतों को पत्तल में भोजन परोसा जाता है। खास बात यह कि सबके लिए भोजन एक जैसा ही होता है।

कोतवाल देते हैं निमंत्रण

कुंभ में संत-महात्माओं के एकत्रित होने के बाद अखाड़ों में महामंडलेश्वर आपस में समष्टि भोज की तिथि तय करते हैं। इसके बाद अखाड़े के कोतवाल को इसकी सूचना दी जाती है। कोतवाल विभिन्न अखाड़ों में महामंडलेश्वर, श्रीमहंत, महंत एवं अन्य साधु-संतों को भोज के लिए निमंत्रण देते हैं।

भोज में खर्च होती है मोटी रकम

समष्टि भोज में मोटी रकम भी खर्च होती है। चांदी के बर्तनों में भोजन करने के साथ यह आयोजन करने वाले महामंडलेश्वर, संत-महात्माओं को दक्षिणा के रूप में मोटी रकम देते हैं। चांदी के सिक्के, शाल आदि भी दी जाती है। डॉ. शास्त्री का कहना है कि समष्टि भोज के आयोजन में आठ से 10 लाख रुपये तक खर्च होते हैं।

शुरू हो गया है समष्टि भोज

कुंभ मेला में वसंत पंचमी पर्व पर 10 फरवरी को अंतिम शाही स्नान के साथ अखाड़ों की विदाई शुरू हो जाएगी। इसलिए महामंडलेश्वरों की तरफ से समष्टि भोज का आयोजन शुरू हो गया है। महानिर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी प्रखर महाराज तथा निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी महेशानंद गिरि समष्टि भोज करा चुके हैं। कुछ दिनों में अन्य महामंडलेश्वर भी आयोजन करेंगे।


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