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Swami Vivekananda Birth Anniversary: संगमनगरी में बनी अध्यात्म को सामाजिक सरोकारों से जोडऩे की भूमिका

Vivekananda अध्यात्म को सरोकारों से जोडऩा होगा तभी समाज और राष्ट्र का कल्याण संभव है। इस घटना के परिप्रेक्ष्य में ही सात साल बाद 1897 में चेन्नई के अपने भक्त को उन्होंने पत्र लिखा। इसमें देशभर में पांच मठ स्थापित करने का उल्लेख किया।

By Rajneesh MishraEdited By: Published: Tue, 12 Jan 2021 07:00 AM (IST)Updated: Tue, 12 Jan 2021 11:49 AM (IST)
Swami Vivekananda Birth Anniversary: संगमनगरी में बनी अध्यात्म को सामाजिक सरोकारों से जोडऩे की भूमिका
अध्यात्म को सरोकारों से जोडऩा होगा तभी समाज और राष्ट्र का कल्याण संभव है।

प्रयागराज, जेएनएन। स्वामी विवेकानंद ऋग्वेद के श्लोक, आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च को प्राय: उद्धृत करते थे। इस वाक्य का अर्थ स्वयं के मोक्ष के लिए तथा जगत के कल्याण के लिए कार्य करना। यही वाक्य रामकृष्ण मिशन का ध्येय वाक्य भी बना। केंद्रीय विद्यालय बमरौली के शिक्षक रहे व स्वामी विवेकानंद पर गहन अध्ययन करने वाले अनुराग पाठक कहते हैं कि अध्यात्म को सामाजिक सरोकारों से जोडऩे की प्रेरणा स्वामी विवेकानंद (नरेंद्र दास) को संगम नगरी से मिली।

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1890 में वह अपने गुरु भाई योगानंद को देखने प्रयागराज आए थे। वह किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त थे। स्वामी जी के आने से पहले ही योगानंद स्वस्थ हो चुके थे। ऐसा स्थानीय लोगों की सेवा से संभव हुआ था। इस बात से वह बहुत प्रभावित हुए। कहा कि अध्यात्म को सरोकारों से जोडऩा होगा तभी समाज और राष्ट्र का कल्याण संभव है। इस घटना के परिप्रेक्ष्य में ही सात साल बाद 1897 में चेन्नई के अपने भक्त को उन्होंने पत्र लिखा। इसमें देशभर में पांच मठ स्थापित करने का उल्लेख किया। तत्कालीन परिस्थितियों में देश भौतिक पराभव से जूझ रहा था। उससे निपटने के लिए अध्यात्म की शक्ति अपनाने पर बल दिया। उनका मानना था समाज को लेकर ही आगे बढ़ा जा सकता है।

एकाग्रता को सफलता की कुंजी मानते थे

रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम के युवा प्रभाग के प्रभारी स्वामी करुणानंद कहते हैं कि स्वामी विवेकानंद से संबंधित साहित्य के अध्ययन से पता चलता है कि वह एकाग्रता पर जोर देते थे। इसे सफलता की कुंजी मानते थे। पांच जनवरी 1890 को इलाहाबाद से योगेश्वर भट्टाचार्य को लिखे पत्र में कहा, प्रिय फकीर, एक बात मैं तुमसे कहना चहता हूं, इसका सदा तुम ध्यान रखना कि मेरे साथ तुम लोगों को पुन: साक्षात्कार नहीं भी हो सकता है...। कायरपन, पाप, असत तथा दुर्बलता तुममें एकदम नहीं रहनी चाहिए...। राम को कभी नाटक देखने के लिए या अन्य ऐसे किसी प्रकार के खेल तमाशे में, जिससे चित्त की दुर्बलता बढ़ती हो, स्वंय न ले जाना या जाने न देना।


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