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रिशी बच्‍चों में शिक्षा के साथ जगा रहीं संस्कार की अलख Prayagraj News

बच्‍चों में शिक्षा और संस्‍कार की अलख जगाने की मुहिम में रिशी लगी हुई हैं। उनके प्रयास से स्‍कूल में बच्‍चों की संख्‍या भी बढ़ गई है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Fri, 04 Oct 2019 04:30 PM (IST)Updated: Fri, 04 Oct 2019 04:30 PM (IST)
रिशी बच्‍चों में शिक्षा के साथ जगा रहीं संस्कार की अलख Prayagraj News
रिशी बच्‍चों में शिक्षा के साथ जगा रहीं संस्कार की अलख Prayagraj News

 प्रयागराज, जेएनएन। रिशी तिवारी शिक्षिका हैं। उनकी कार्यप्रणाली आज के उन तमाम शिक्षकों के लिए प्रेरणादायी है,जो कुर्सी पर बैठकर अथवा घर में रहकर वेतन लेना चाहते हैं। जी हां, बच्‍चों में शिक्षा और संस्कार की अलख जगाने के लिए वह ऐसा काम कर रही हैं जो विभाग में चर्चा का विषय है।

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उनके प्रयास से प्राथमिक विद्यालय में हो गए हैं 69 बच्‍चे

रिशी दिसंबर 2011 से प्राथमिक विद्यालय बैरहना में शिक्षक हैं। पहले वह विद्यालय की इंचार्ज प्रधानाध्यापिका थीं, लेकिन इस वर्ष प्राथमिक और उच्‍च प्राथमिक विद्यालयों का संविलयन होने से वह सहायक अध्यापक हो गईं। हालांकि, कक्षाएं अभी अलग चल रही हैं। उनके प्रयास से प्राथमिक विद्यालय में कुल 69 बच्‍चे हो गए हैं। उच्‍च प्राथमिक विद्यालय में 40 बच्‍चे हैं। बच्‍चों की नियमित निगरानी के लिए उन्होंने एक अलग से रजिस्टर तैयार कराया है, जिसमें उन ब'चों के परिजनों के मोबाइल नंबर दर्ज किए गए हैं, जिनके पास मोबाइल है। इसका फायदा यह है कि बच्‍चों के स्कूल नहीं आने या विलंब से आने पर वह परिजनों से जानकारी ले लेती हैं।

बच्‍चों को स्कूल भेजने के लिए अभिभावकों को प्रेरित करती हैं

अगर कोई ब'चा दो-तीन दिन लगातार स्कूल नहीं आता है तो वह स्वयं उसके घर पहुंच जाती हैं। उनके ऐसा करने से यदि उस मुहल्ले में ब'चे इधर-उधर घूमते दिखाई दे जाते हैं तो वह अभिभावकों को उन्हें स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करती हैं। बताती हैं कि सरकार ने ब'चों के लिए निश्शुल्क किताबें, यूनिफार्म, जूते-मोजे, स्वेटर, मिड-डे-मील की व्यवस्था की है। इसका लाभ वह उठाएं। इससे उन्हें और ब'चों को जोडऩे का मौका मिलता है।

 प्रवेश बंद होने पर भी बच्‍चों को स्कूल में बैठाकर पढ़ाया

रिशी बताती हैैं, हमारे विद्यालय में मलाकराज, कीडगंज मलिन बस्तियों के ज्यादा ब'चे हैं। पिछले वर्ष विद्यालय में 41 ब'चे थे। सत्र समाप्त होने पर संख्या बढ़कर 6& हो गई। इस सत्र में 69 ब'चे हैं। चार-पांच ब'चे दो-तीन दिनों में और आए लेकिन उनका दाखिला नहीं हुआ। सितंबर के बाद प्रवेश बंद हो गया है। फिर भी उन ब'चों को कक्षा में बैठाकर पढ़ाया जाता है। इस काम में अन्य शिक्षक-शिक्षिकाएं भी उनकी मदद करती हैं।


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