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रिटायर्ड जस्टिस एसएन शुक्ल पर चलेगा अभियोग, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने CBI को दी अनुमति

हाई कोर्ट ने मेडिकल कालेज में प्रवेश मामले में भ्रष्टाचार व षड्यंत्र के आरोपी पूर्व न्यायमूर्ति एसएन शुक्ल के खिलाफ अभियोग चलाने की मंजूरी दे दी है। 16 अप्रैल 2021 को सीबीआइ ने सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति शुक्ल के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत आपराधिक केस चलाने की अनुमति मांगी थी

By Ankur TripathiEdited By: Published: Fri, 26 Nov 2021 08:00 PM (IST)Updated: Fri, 26 Nov 2021 08:00 PM (IST)
रिटायर्ड जस्टिस एसएन शुक्ल पर चलेगा अभियोग, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने CBI को दी अनुमति
सीबीआइ ने इसी साल अप्रैल में प्राथमिकी दर्ज कर मांगी थी हाई कोर्ट से अनुमति

प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मेडिकल कालेज में प्रवेश मामले में भ्रष्टाचार व षड्यंत्र के आरोपी पूर्व न्यायमूर्ति एसएन शुक्ल के खिलाफ अभियोग चलाने की मंजूरी दे दी है। 16 अप्रैल, 2021 को सीबीआइ ने सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति शुक्ल के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत आपराधिक केस चलाने की अनुमति मांगी थी। हाई कोर्ट ने सीबीआइ को चार्जशीट दाखिल करने की अनुमति दे दी है। इस मुकदमे के अन्य आरोपित पहले ही गिरफ्तार  किए जा चुके हैं।

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आपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप

जांच एजेंसी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति शुक्ला के अलावा छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आइएम कुद्दूसी, प्रसाद शिक्षा न्यास के भगवान प्रसाद यादव और पलाश यादव, स्वयं ट्रस्ट और भावना पांडे और सुधीर गिरि को नामजद किया है। आरोपितों पर भारतीय दंड संहिता (आपराधिक साजिश) की धारा 120बी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए हैं।

सीबीआइ ने अनुमति से पहले लखनऊ, मेरठ और दिल्ली में तहकीकात

अनुमति लेने से पहले सीबीआइ ने लखनऊ, मेरठ और दिल्ली में छानबीन की। प्रसाद इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज को मई, 2017 में केंद्र द्वारा 46 अन्य मेडिकल कालेजों के साथ-साथ घटिया सुविधाओं और आवश्यक मानदंडों को पूरा करने में विफलता के कारण छात्रों को प्रवेश देने से रोक दिया गया था। डिबारमेंट के फैसले को ट्रस्ट ने एक रिट के जरिये सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। जहां से राहत नहीं मिलती देख, एफआइआर में नामित लोगों ने साजिश रची और अदालत की अनुमति से याचिका वापस ले ली गई।

जांच एजेंसी की प्राथमिकी के अनुसार, 24 अगस्त, 2017 को उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के समक्ष एक और याचिका दायर की गई थी। याचिका पर 25 अगस्त, 2017 को न्यायमूर्ति शुक्ला की खंडपीठ द्वारा सुनवाई की गई और उसी दिन संस्था के पक्ष में आदेश पारित किया गया। इसी मामले में न्यायमूर्ति शुक्ल पर भ्रष्टाचार का आरोप है। पक्ष में आदेश के लिए अवैध भुगतान की भी बात सामने आई है। शुक्ल पांच अक्टूबर, 2005 को जज बने और 17 जुलाई, 2020 को सेवानिवृत्त हुए।


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